दिल्ली की सत्ता का रास्ता वाया पूर्वांचल जाता है…

पूर्वांचली वोट दिल्ली विधानसभा की 70 में से कम के कम 30 सीटों पर खेल बदलने की हैसियत रखता है.  

दिल्ली की आबादी का अगर गहन विश्लेषण करें तो पाएंगे कि यहां कि करीब 45 फीसदी आबादी बिहार और उत्तर प्रदेश के पूर्वांचलियों की हो चुकी है जिसमें कानुपर से शुरू करके बिहार तक की आबादी शामिल है. मेरठ, अलीगढ़, आगरा और आसपास को जोड़ लिया जाए तो संख्या कहीं और अधिक हो जाती है. माना जाता है कि इनमें से भी सबसे ज्यादा संख्या बिहार के लोगों की है. इस बात को दिल्ली की पार्टियां तो समझ ही रहीं थीं अब बिहार के हर दल को दिल्ली में संभावना नजर आती है. वह अपने हिस्से का बिहार दिल्ली में हासिल करने को बेचैन है.  

फरवरी में हो रहे दिल्ली विधानसभा चुनाव में बिहार के कई राजनीतिक दल अपनी जमीन तलाशने की कोशिशें करना चाह रहे हैं. इसके लिए माथापच्ची चल रही है. पूर्वांचल के वोटों में से अपने कैडर वोट की आस पर नीतीश कुमार की जनता दल युनाइटेड (जेडीयू), जीतन राम मांझी का हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा या ‘हम’ और लालू की राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और राम बिलास पासवान की लोकजनशक्ति पार्टी (लोजपा) जैसी बिहार की पार्टियां खासतौर से उत्साहित हैं. इसके अलावा मुकेश सहनी की नवोदित पार्टी सन ऑफ मल्लाह के भी इस चुनाव में अपनी राजनीतिक जमीन तलाशने की कोशिशों की चर्चा है. बिहार में सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में जेडीयू ने जहां दिल्ली में अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है, वहीं बिहार की मुख्य विपक्षी पार्टी आरजेडी के कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव मैदान में उतरने की उम्मीद जताई जा रही है. लोजपा भी एनडीए का अंग है लेकिन अभी तक बहुत साफ नहीं है कि वह अकेली उतरेगी या किसी के साथ गठबंधन में. लोजपा के दिल्ली में पहले भी विधायक रहे हैं. मटियामहल के शोएब एकबाल एकबार लोजपा के टिकट पर जीतकर दिल्ली विधानसभा पहुंचे थे. हालांकि अब वह आम आदमी पार्टी में हैं. जेडीयू का अब तक कोई विधायक तो नहीं रहा है लेकिन पार्टी ने 2013 और 2015 का चुनाव भी लड़ा था.

जदयू के महासचिव के सी़ त्यागी के मुताबिक दिल्ली में जदयू की तैयारी करीब 30 से 35 सीटों पर लड़ने की है. कुछ समय पहले नीतीश कुमार ने दिल्ली के बदरपुर में एक सभा भी की थी. बिहार के जल संसाधन मंत्री संजय झा को दिल्ली में जदयू के चुनाव संचालन की जिम्मेदारियां सौंपी गई हैं. संजय झा नीतीश कुमार के विश्वस्त सलाहकारों में से हैं. एक दिलचस्प बात यह भी है कि जदयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और कुछ समय पहले तक नंबर दो कहे जाते रहे प्रशांत किशोर दिल्ली में सत्ताधारी आम आदमी पार्टी के कैंपेन की जिम्मेदारियां संभाल रहे हैं. किशोर की कंपनी आईपैक को आप पार्टी ने चुनाव प्रबंधन की जिम्मेदारी सौंपी है. इसके अलावा किशोर कांग्रेस से लगातार सीएए के मुद्दे पर दिल्ली में सड़कों पर उतरने को कह रहे थे. फिर उन्होंने राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को सीएए के मुद्दे को दिल्ली में मजबूती से उठाने के लिए धन्यवाद भी किया है. इसको लेकर बहुत भ्रम बना हुआ है कि आखिर प्रशांत किशोर किधर हैं और किसके लिए काम कर रहे हैं.

बिहार की मुख्य विपक्षी आरजेडी भी दिल्ली में ताल ठोंकने की तैयारी कर चुकी है. आरजेडी प्रवक्ता और राज्यसभा सांसद मनोज झा ने कुछ समय पहले इसके संकेत दे दिए थे कि पार्टी का नेतृत्व दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ने को तैयार है. माना जा रहा है कि आरजेडी 12 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार सकती है. हालांकि कांग्रेस के साथ भी उसकी बात चल रही है और पार्टी कांग्रेस को झारखंड के फॉर्मूले पर काम करने को राजी कर रही है. लेकिन अगर कांग्रेस के साथ गठबंधन हो भी जाता है तो लगता नहीं कि कांग्रेस, राजद के लिए एक से ज्यादा सीटें छोड़ने को तैयार हो. पार्टी के सूत्र बताते हैं कि ऐसी स्थिति में पार्टी चार सीटों पर कांग्रेस के साथ फ्रेंडली फाइट में उतरेगी. यानी राजद पांच सीटें लड़ने का तो मन बना ही चुकी है. मांझी की हम पार्टी को भले ही पहले बिहार और इसके बाद झारखंड में बड़ी पराजय का सामना करना पड़ा हो, मगर मांझी के हौसले पस्त नहीं हुए हैं. अब मांझी दिल्ली विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमाने की तैयारी कर रहे हैं.

जहां तक बात उत्तर प्रदेश के क्षेत्रीय दल समाजवादी पार्टी की बात है तो उसने चुनाव लड़ने से मना कर दिया है और आम आदमी पार्टी को अपना समर्थन देने की बात कही है.

2013 से पहले पूर्वांचली कांग्रेस के वोट बैंक रहे थे और उनके बूते शीला दीक्षित तीन बार लगातार मुख्यमंत्री बनीं. 2015 में यह वोट बैंक कांग्रेस से छिटककर आप पार्टी में चला गया और पार्टी ने 70 में से 67 सीटें जीत लीं. पार्टी के दिल्ली में 9 विधायक पूर्वांचल से ताल्लुक रखते हैं. इसी वोट शिफ्ट को देखते हुए भाजपा ने 2016 में मनोज तिवारी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया जिसका उसे फायदा भी मिला. पार्टी ने एमसीडी चुनाव लगातार तीसरी बार जीता था. अब देखना है कि पूर्वांचली वोटों की मारामारी में किसके हाथ कितना हिस्सा आता है.   

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