आतंक की नई मशीन…

सउदी अरब में ड्रोन हमलों और पाकिस्तान की ओर से भारत में लगातार ड्रोन्स के जरिए भेजे जा रहे हथियारों ने एक नए खतरे की घंटी बजा दी है. आतंक का काम करने का अंदाज बदल गया है. अब हमले के लिए आतंक भेजने की जगह मशीनें भेजी जा सकती हैं. कितना बड़ा है ड्रोन हमले का खतरा और कितनी है तैयारी, न्यूजऑर्ब360 की खास रिपोर्ट…

आतंक की नई मशीन, आपने हॉलीवुड की फिल्में देखी होंगी जिसमें छोटी-मोटी तस्करी से लेकर दूसरे ग्रहों तक पर हमले का खेल मशीनों से खेला जाता है. इसमें भी वही मशीनें इस्तेमाल होती हैं जो वास्तव में इंसान ने अपनी जरूरतों के लिए बनाई थी. विज्ञान वरदान तो है लेकिन उसे कभी भी अभिशाप में बदला जा सकता है. पाकिस्तान की सीमा से लगे पंजाब के तरनतारन में सितंबर के आखिर में हुई एक घटना से अफरा-तफरी मच गई. पाकिस्तान की ओर से दो हेक्साकॉप्टर ड्रोन ने एके-राइफलें, गोला-बारूद, पिस्तौल और नकली नोटों सहित लगभग 80 किलोग्राम हथियार और गोला-बारूद की खेप भारत में पहुंचाने के लिए एक के बाद एक लगातार कई उड़ानें भरी थीं.

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इस घटना ने पुलिस, अर्धसैनिक बलों और सेना की चिंता को बढ़ा दिया. सरकार ने हजारों करोड़ रुपए खर्च करके पिछले एक दशक में अंतरराष्ट्रीय सीमा पर कंटीले तारों की बाड़ तो खड़ी की है लेकिन बाड़ तो केवल घुसपैठियों को अंतरराष्ट्रीय सीमा पार करने से रोका सकती है, ड्रोन को नहीं. यानी आतंकयों ने तू डाल-डाल, मैं पात-पात की रणनीति अपनाई है. अगर आतंक घुसपैठ या हमले के लिए ड्रोन का इस्तेमाल करें तो फिर मुकाबला कैसे होगा? यदि किसी जहांज के टेक ऑफ या लैंड करते समय विस्फोटक से भरा कोई ड्रोन उसके रास्ते में आ जाए तो क्या होगा? कुंभ मेले में अथवा किसी वीआईपी की जनसभा के बीच विस्फोटकों से लदा कोई ड्रोम दुर्घटनाग्रस्त हो जाए तो क्या होगा?

क्या ये चिंताएं फिजूल हैं? यदि आप ऐसा मानते हैं तो जरा इन घटनाओं पर आपका ध्यान आकृष्ट करा दूं. पिछले अगस्त में वेनेजुएला के राष्ट्रपति निकोलस मादुरो एक सैन्य परेड में हिस्सा ले रहे थे. प्लास्टिक विस्फोटकों से भरे दो ड्रोनों में भाषण स्थल से कुछ ही मीटर दूरी पर विस्फोट हुआ. मादुरो इस हमले में बाल-बाल बचे. इस साल जनवरी में हूती विद्रोहियों ने एक यमन सैन्य परेड पर हमला करने के लिए क्वाडकॉप्टर का इस्तेमाल किया जो बाजार में उपलब्ध है. उस घटना में छह लोग मारे गए थे. इसी साल 14 सितंबर को हूती विद्रोहियों ने विस्फोटकों से भरे ड्रोन का इस्तेमाल करके सऊदी अरब की कंपनी अरामको की रिफाइनरियों पर हमला किया. इस हमले से हुई तबाही के कारण दुनिया की इस सबसे बड़ी तेल उत्पादक कंपनी का तेल उत्पादन घटकर आधा रह गया और बाजार में उथल-पुथल मच गई. ये सब हमले तो छोटे ड्रोनों से हुए थे. प्रीडेटर जैसे फिक्स्ड-विंग ड्रोन जो लंबे समय तक और बहुत तेजी से उड़ान भरते हैं अगर आतंक उसका इस्तेमाल करने लगें तो क्या होगा?

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तरनतारन में जो हुआ उसने भारत की रक्षा व्यवस्था के सामने चिंता की एक ऐसी लकीर खींच दी है जिसके लिए देश की तैयारी शैशव काल में है. ऐसा नहीं है कि भारत ने इस चुनौती को अबतक पूरी तरह नजरअंदाज किया था. प्रयास तो हुए हैं लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में ज्यादा असरदार नहीं नजर आते.

नागरिक उड्डयन मंत्रालय के तहत काम करने वाला ब्यूरो ऑफ सिविल एविएशन एंड सिक्योरिटी (बीसीएएस) वर्तमान में फील्ड ट्रायल कर रहा है. ड्रोन द्वारा किसी संभावित हमले की स्थिति में सुरक्षा एजेंसियों को क्या करना चाहिए और मानव रहित हवाई प्रणाली (यूएएस) से संवेदनशील प्रतिष्ठानों को कैसे बचाया जाए, इसको लेकर एक मानक संचालन प्रक्रिया तैयार की जा रही है. जनवरी 2018 में भारत के गणतंत्र दिवस परेड कार्यक्रम में पहली बार सुरक्षा बलों को विशेष रूप से दुष्ट ड्रोन का मुकाबला करने के लिए रडार और विमान भेदी बंदूकों से लैस किया गया था.

क्या है मुख्य चुनौती
इसमें कोई शक नहीं कि ड्रोन हवाई युद्ध के क्षेत्र में हुए आज के दौर के सबसे बड़े बदलावों में से एक हैं. अमेरिका ने सबसे पहले साधारण टोही ड्रोन्स को मिसाइलों से लैस करके उसकी मदद से अफगान-पाक क्षेत्र में तालिबान और अल-कायदा पर हमले करके दुनिया को दिखाया कि ड्रोन का इस्तेमाल किलिंग मशीनों की तरह भी किया जा सकता है. भारतीय सुरक्षा एजेंसियां जिस चीज को लेकर चिंतित हैं वह है सस्ते, व्यावसायिक रूप से निर्मित मिनी-हेलिकॉप्टर जैसे क्वाडकोप्टर और हेक्साकोप्टर-ड्रोन जो विमानों की तरह ही लैंड और टेक ऑफ कर सकते हैं और बाजार में आसानी से उपलब्ध हैं. पंजाब में इन्हीं का इस्तेमाल हुआ है.

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जीपीएस युक्त ‘टैरो 680 प्रो’ ड्रोन एक चीनी कंपनी द्वारा बनाए गए थे और व्यावसायिक रूप से उपलब्ध हैं. इसके निर्माता एक हवाई फोटोग्राफी उपकरण के रूप में इसके उपयोग का विज्ञापन करते हैं, लेकिन इसकी क्षमताएं इसे दोहरे उपयोग वाले आदर्श वाहन बनाती हैं. इसका उपयोग विस्फोटक पेलोड ले जाने के लिए आसानी से किया जा सकता है. एक डीजेआई एम600 मैट्रिस कमर्शियल ड्रोन, टैरो का एक और अधिक परिष्कृत संस्करण है, जिसकी कीमत सिर्फ 5,000 डॉलर (3.5 लाख रुपये) है और यह 6 किमी से अधिक दूरी तक 7 किलो पेलोड लेकर जा सकता है. इसकी तकनीक बहुत सरल है और इसलिए यह हमलावरों को गुमनाम और दूर से हमला करने में सक्षम बना देती है.


इस अगस्त में फिक्की और अर्न्स्ट एंड यंग द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट ‘काउंटरिंग रोग ड्रोन्स’ के खतरों पर प्रकाश डालती है. रिपोर्ट कहती है ड्रोन्स को वायरलेस लिंक पर नियंत्रित किया जाता है, जिसमें सामान्यतः नियंत्रण 2 किमी से अधिक होता है. यानी 13 वर्ग किलोमीटर- भारतीय शहरी उपनगर से बड़े इलाके- के भीतर कहीं से भी इसे नियंत्रित किया जा सकता. ड्रोन छोटे होते हैं जिनका पता लगाना काफी कठिन होता है और ये 20 मीटर प्रति सेकेंड की तीव्र गति से उड़ते हैं. आपको उनका पता लगाने के बाद मुकाबले के लिए बहुत कम समय मिलता है- लगभग 90 सेकंड या उससे थोड़ा ही ज्यादा.

इन्हें कैसे रोका जाए
भारत के नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने एक ड्रोन नीति की घोषणा की है जिसमें इस उद्योग को विनियमित करने की मांग की गई थी, जिसके बारे में गोल्डमैन सैश का अनुमान है कि 2020 तक 100 बिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगा. नीति, सभी ड्रोन को पंजीकृत करने और सबको एक युनिक आइडेंटिटी नंबर जारी कराने के निर्देश देती है. 50 फीट से ऊपर उड़ने वाले सभी ड्रोनों को उड़ाने के लिए परमिट लेना जरूरी है. हवाई अड्डों और संवेदनशील सैन्य क्षेत्रों के पास उड़ने की अनुमति नहीं है. ड्रोन उड़ाने वालों को मोबाइल ऐप्प में मौजूद ‘नो परमिशन, नो टेकऑफ़’ (एनपीएनटी) नामक प्रणाली के माध्यम से इसे उड़ाने की अनुमति लेनी होगी. यदि अनुमति नहीं दी जाती है, तो एक ड्रोन उड़ान नहीं भर सकता है.

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लेकिन सवाल यह है क्या कोई आतंक वादी आतंक हमले के लिए रजिस्टर्ड ड्रोन उड़ाएगा और क्या एनपीएनटी द्वारा रोका जा सकता है. मजेदार बात कि अगस्त 2018 में जब ड्रोन नीति आई उससे पहले से ही भारत में करीब 50,000 ड्रोन सक्रिय थे, उनका क्या? भारत इजरायली वायु रक्षा प्रणाली ‘आयरन डोम’ के आयात पर विचार कर रहा है जिसमें शहरों को रॉकेट, यूएएस और तोप के गोले से होने वाले हमलों से बचाने के लिए मिसाइलों और राडार के नेटवर्क का उपयोग होता है. फिर भी अमेरिकी के रक्षा अनुसंधान विभाग का मानना है कि शरारती तत्वों ने ड्रोन में इतने तरह की नई-नई तकनीक का इस्तेमाल कर लिया है कि अभी तक उपलब्ध रक्षा उपाय आसानी से बेअसर हो सकते हैं. जोखिम और डर एक नए स्तर पर पहुंच चुका है जिससे निपटने के लिए अभी कोई ठोस उपाय नहीं है.

ड्रोन को मात देने के लिए दुनियाभर में क्या उपाय किए गए हैं.
आतंक की नई मशीन, उभरती प्रौद्योगिकी ने एक यूएएस हमले को रोकने के लिए बहुत से उपाय दिए हैं. उनमें से एक है प्रोटोकॉल बेस्ड कंट्रोल जो ड्रोन की संचार प्रणाली को हैक करके उसे निष्प्रभावी बना देता है लेकिन इसके साथ परेशानी है कि इसका इस्तेमाल तभी हो सकता है जब ड्रोन का जल्द पता लग जाए.

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दूसरा उपाय है सेंसर-बेस्ड कंट्रोलः- यूएवी के विभिन्न उड़ान सेंसरों को बाधित कर दिया जाए ताकि इसे गलत संकेत प्राप्त होने लगें. इससे ड्रोन या तो दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है या फिर सुरक्षित रूप से उतरने के लिए इसके अंदर लगाया गया आंतरिक सुरक्षा तंत्र सक्रिय हो जाता है जिससे यह सुरक्षित लैंड कर जाए. पर इसके साथ जोखिम कि अगर खोजकर रोकने की कोशिश की जाती है तो यह विस्फोट कर सकते हैं.

तीसरा उपाय है सिग्नल को जाम कर देना
ड्रोन और उसके ऑपरेटर के बीच फ्रीक्वेंसी लिंक को बाधित करने के लिए जैमर का उपयोग कर दिया जाए. एक बार आरएफ लिंक टूट जाए तो फिर यूएवी या तो जमीन पर उतर जाएगा या फिर उसका वापस लौटने का सिस्टम काम करने लगेगा और वह लौट जाएगा. इसके साथ जोखिम है कि ऑटोनोमस ड्रोन्स में यदि पहले से ही इलाके का पूरा मानचित्र डेटा फीड किया गया हो तो, यह सुरक्षा सिस्टम निष्प्रभावी हो जाएगा.

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मार गिराया जाए
एक विकल्प है कि विशेष गोला बारूद का उपयोग करके यूएवी को मार गिराया जाए. या फिर हाईएनर्जी लेजरबीम से उन्हें जला दिया जाए. कुछ सी-यूएएस यूएवी में कुछ फायर नेट लगाते हैं जो उनके प्रोपेलरों को उलझाकर उन्हें नीचे गिरा देता है. लेकिन इसके साथ जोखिम है कि यह आत्मघाती भी हो सकता है क्योंकि गिरता हुआ यूएवी भी एक खतरनाक आग के गोले जैसा हो सकता है और बड़ा नुकसान पहुंचा सकता है.

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