ऐसे ही नहीं बन जाता कोई ‘बिग बी’

एक ऐसा नाम जो फिल्म इंडस्ट्री और सफलता का पर्याय है. बॉलीवुड में अमिताभ बच्चन (बिग बी) के 50 साल लंबे करियर और उनके निजी जीवन की झलक.

07 नवंबर 1969. एक ऐसा दिन जब हिंदी सिनेमा ने एक करवट ली थी. इस दिन भी थियेटर में सिनेमा प्रेमियों के सामने एक और मनोरंजक फिल्म आई. एक दुबला-पतला, बेडौल, भावशून्य- कुल मिलाकर फिल्मों के लिए एक बड़े असामान्य लुक वाला हीरो पर्दे पर नजर आया जिसने कोलकाता से आकर जब अपनी तस्वीरें निर्माताओं को दिखानी शुरू कीं तो बहुतों ने खिल्ली उड़ाते हुए घोड़े जैसा कह दिया. कई हीरोइनों ने तो इस बेड़ौल अभिनेता के साथ काम करने तक से मना कर दिया था. तब किसी को रत्तीभर भी अंदाजा नहीं था कि जिसे वे ‘घोड़े जैसा’ कह रहे हैं वह बॉलीवुड में इतनी लंबी रेस का घोड़ा साबित होगा कि उसके आगे सब बौने हो जाएंगे. उस दिन पर्दे पर दिखे थे सदी के महानायक अमिताभ बच्चन (बिग बी) और फिल्म थी- सात हिंदुस्तानी.

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अमिताभ (बिग बी) को ‘सात हिंदुस्तानी’ मिलने के पीछे एक दिलचस्प कहानी है. ‘सात हिंदुस्तानी’ की कहानी गोआ मुक्ति आंदोलन से प्रेरित थी, जिसके लिए ख्वाजा अहमद अब्बास को सात अभिनेताओं की आवश्यकता थी. अमिताभ (बिग बी) मुंबई आए तो उन्हें इस फिल्म के बारे में पता चला. फिल्मों में काम करने के लिए उन्होंने कोलकाता की अपनी 1600 रुपए की नौकरी छोड़ दी. अब्बास ने अमिताभ के सामने दो किरदारों का विकल्प रखा- एक पंजाबी और दूसरा मुस्लिम. अमिताभ ने मुस्लिम किरदार अनवर अली को चुना, क्योंकि इस किरदार में अभिनय के कई स्तर थे.

अब्बास ने उनसे पूछा कि अगर उन्हें यह भूमिका नहीं मिली तो वह क्या करते क्योंकि नौकरी भी छोड़ चुके हैं? बिग बी ने जो कहा वह केवल उनके जैसे आत्मविश्वास का एक व्यक्ति ही कह सकता है- ‘कुछ जोखिम उठाने पड़ते हैं.’ जिस अंदाज में अमिताभ (बिग बी) ने यह कहा, वह अब्बास के दिल को छू गया. इस फिल्म के लिए, अमिताभ को पांच हज़ार रुपए की पेशकश की गई थी, जो उस समय की उनकी नौकरी से होने वाली आय की तुलना में बहुत कम था. लेकिन सात हिंदुस्तानी उनके लिए सिर्फ एक फिल्म नहीं थी, बल्कि उनके सपने को पूरा करने की दिशा में पहला कदम थी.

अमिताभ ने अपने नाम के साथ अपना उपनाम ‘बच्चन’ नहीं बताया था. ख्वाजा अहमद अब्बास की अमिताभ (बिग बी) के पिता डॉ. हरिवंश राय बच्चन के साथ अच्छी पहचान थी, लेकिन अमिताभ (बिग बी) ने इसका उल्लेख तब तक नहीं किया जब तक कि उन्हें यह जाहिर करना जरूरी नहीं हो गया. फिल्म के लिए कॉन्ट्रैक्ट पेपर तैयार करने के लिए पिता का नाम बताना जरूरी थी. इस तरह अब्बास को उनके पिता का नाम पता चला. अब्बास के लिए यह उलझन हो गई.

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साइन करने से पहले उन्होंने बच्चनजी की अनुमति लेने का फैसला किया और खुद से एक टेलीग्राम भेजकर पूछा कि क्या वह अमिताभ (बिग बी) को अपनी फिल्म में ले सकते हैं? हरिवंश राय बच्चन की स्वीकृति के बाद ही अमिताभ सात हिंदुस्तानी का कॉन्ट्रैक्ट साइन कर सके. तारीख थी 15 फरवरी 1969. फिल्म करीब सात महीने बाद नवंबर में रिलीज हुई. सात हिंदुस्तानी व्यवसायिक दृष्टिकोण से सफल तो नहीं रही, लेकिन इसने सिनेमा जगत को एक ऐसा सितारा दिया जिसकी रोशनी आज भी बरकरार है.

इस तरह मिले अमिताभ ….

अमिताभ बच्चन- एक ऐसा नाम जिनके इर्द-गिर्द पूरा फिल्म उद्योग चक्कर काटता था. 1970 और 1980 के दशक में, उन्हें वन-मैन इंडस्ट्री माना जाता था, जिन पर हिंदी सिनेमा न केवल अपना सबसे ज्यादा दांव लगाया था. अमिताभ (बिग बी) के साथ कोई दुर्घटना या बीमारी का मतलब था पूरे फिल्म उद्योग पर बड़े संकट के बादल घिर आना. जिस दौर में वीडियो और केबल टेलीविज़न के कारण दर्शक सिनेमाघरों से दूरी बनाने लगे थे उस समय भी अमिताभ ही ऐसे नायक थे जो दर्शकों को थियेटर तक खींच लाते थे और इस तरह उन्होंने फिल्म उद्योग को बचाए रखा.

अलग धर्म से ताल्लुक रखने वाले, अलग-अलग भाषाएं बोलने वाले और अलग-अलग-अलग सामाजिक पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखने वाले माता-पिता की संतान अमिताभ का जन्म 11 अक्टूबर 1941 को हुआ. रूढ़िवादी परिवेश में उनकी उदार परवरिश हुई. एक बार एक इंटरव्यू में अमिताभ ने बताया था, “मेरे पिता डॉ. हरिवंशराय बच्चन उत्तर प्रदेश के एक गरीब और परंपरा पसंद परिवार से थे जबकि मेरी माँ तेजी, कराची के एक अमीर, सिख परिवार से. इसलिए मुझे बचपन से ही पूर्व और पश्चिम का अच्छा संगम मिला है.”

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इस महानायक के लिए, यह सफर बहुत सरल नहीं रहा है. उन्होंने प्रेस के बहिष्कार का सामना किया, एक एक्शन सीन की शूटिंग के दौरान लगभग काल के गाल में ही समा गए थे, नसों के एक लाइलाज मर्ज से पीड़ित हुए और राजनीति में प्रवेश भी एक दुःस्वप्न ही रहा. फिर भी हर विपरीत परिस्थितियों का उन्होंने जोरदार मुकाबला किया शानदार वापसी की.

“एंग्री यंगमैन” की उनकी छवि ने आने वाली पीढ़ियों के लिए अदाकारी का एक ऐसा पैमाना तय किया जहां से बेशुमार रास्ते खुलते नजर आते थे. पर्दे पर के उनके किरदारों को इस प्रकार गढ़ा गया कि वे बहुत अच्छे और सच्चे व्यक्ति दिखें जो अक्सर परिस्थितियों के कारण बुराई के दलदल में फंस जाता है और जो इन पापों का प्रायश्चित अक्सर खुद को किसी अच्छे उद्देश्य के लिए मिटाकर, कर देते थे. जंजीर से शुरू हुआ यह सफर दीवार,शोले, मुकद्दर का सिकंदर, शहंशाह, इंद्रजीत, अग्निपथ और अकेला से लेकर खुदा गवाह तक अमिताभ एक खास तरह की छवि के बीच भी अपने किरदार में विविधता की एक झलक दे पाने में कामयाब रहते थे. अमिताभ अपनी भूमिकाओं को अत्यंत आत्मविश्वास और दृढ़ विश्वास के साथ निभाते गए और सफलता के नए-नए आयाम गढ़े जाते रहे. अपनी अदाकारी से किसी मेलोड्रामा को यथार्थ के करीब विश्वसनीय बना देते हैं. निश्चित रूप से, किसी अन्य भारतीय अभिनेता के पास बोलने वाली आंखें नहीं थीं और न ही मंत्रमुग्ध कर देने वाली वैसी आवाज जो एक जैसे दिखते किरदारों में भी स्पष्ट रूप से विविधता के रंग भर देती हो. उन्होंने खुद को हास्य की विधा में भी बहुत आसानी से और बहुत खूबी के साथ ढाल लिया और समय-समय पर उसका परिचय देते रहे (परवरिश, चुपके-चुपके, अमर अकबर एंथनी). निर्देशक गोविंद निहलानी कहते हैं, “उन्हें खराब से खराब लाइन्स दे दीजिए, वह उसे स्वीकार्य बना देंगे.” एक्टर जितेंद्र ने एक बार कहा था कि अमिताभ भारतीय सिनेमा के नंबर1, नंबर 2, नंबर3, नंबर 4 सब हुआ करते थे. और उनकी बात अतिशयोक्ति भी नहीं लगती.

अमिताभ का रक्षक बना कौन बनेगा करोड़पति
जब रास्ते मुश्किल होने लगते हैं, तब जिनके हौसले मजबूत हों उनका इरादा पक्का होता जाता है! कहावत श्री बच्चन को पसंद है. अपने मुश्किल दिनों के दौरान उन्होंने हार नहीं मानी, बस अपना रास्ता बदल दिया और टेलीविजन की ओर चले गए. उन पर अलग-अलग लोगों की 90 करोड़ रुपये की देनदारी थी जिसे उन्होंने धीरे-धीरे करके चुका दिया. उन दिनों को याद करते हुए, अमिताभ ने कहा, “मैंने दूरदर्शन समेत हर देनदार का पैसा चुकाया. जब उन्होंने उस पैसे के ब्याज की बात की, तो मैंने उनके लिए विज्ञापनों में काम किया. मैं कभी नहीं भूल सकता कि लेनदार किस तरह हमारे दरवाजे पर पहुंचते थे, पैसे लौटाने के लिए धमकाते थे और हमारे बंगले प्रतीक्षा की ‘कुर्की’ के लिए चले आए थे.

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यह बच्चन के लिए न केवल आर्थिक रूप से बल्कि भावनात्मक रूप से भी मुश्किल दौर था. आखिरकार, हिंदी और भारतीय सिनेमा में पीठासीन देवता की हैसियत वाला कोई अभिनेता लगभग दिवालिया हो चुका था. हालांकि उनका हौसला टूटा नहीं, और बढ़ गया. हू वांट्स टू बी ए मिलियनेयर पर आधारित उनका नया टीवी शो कौन बनेगा करोड़पति आया और बहुत लोकप्रिय रहा.

बच्चन अपने जीवन में केबीसी की भूमिका को स्वीकार करते हैं. उन्होंने बताया, “केबीसी ऐसे समय में आया जब मुझे इसकी एक बूस्टर शॉट की तरह सबसे ज्यादा जरूरत थी. पेशेवर और आर्थिक दोनों तरह से, इसने उत्प्रेरक जैसा काम किया. मेरा विश्वास करें, इस शो से मुझे अपना सारा उधार चुकाने में मदद मिली. इस शो का यह वह ऋण है जिसे मैं हमेशा याद रखता हूं.” शायद यही वजह है कि बच्चन अपने पूरे उत्साह के साथ केबीसी शो में जाते हैं.

राजनीति और बच्चन
उनके पास अपने राजनीतिक अनुभव के बारे में कहने के लिए कुछ भी नया नहीं है, सिवाय इसके कि यह एक भावनात्मक निर्णय था. वह कहते हैं, “जब मैंने महसूस किया कि मैं राजनीति के खेल के योग्य नहीं, तो मैंने मतदाताओं पर अपनी अयोग्यता को थोपने के बजाय उसे छोड़ देना बेहतर समझा.”

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यश चोपड़ा ने दो बार अमिताभ को उबारा …
सत्रह फिल्मों के बाद अमिताभ बच्चन के फिल्मी करियर को कुछ सहारा मिला. हालांकि, पहली बार जब अमिताभ बच्चन का करियर अधर में लटका दिख रहा था, तब यह यश चोपड़ा ही थे जिन्होंने रातों-रात उन्हें सितारों को बदलकर तो रख दिया लेकिन वह फिल्म एक प्रकार से उनके लिए बहुत उलझन वाली भी साबित हुई. यश चोपड़ा ने अमिताभ, जया बच्चन और रेखा को एक साथ एक फिल्म ‘सिलसिला’ में साइन किया. यह फिल्म बॉलीवुड की इस किंवदंती की शोहरत को शिखर तक लेकर जाने में काफी कारगर साबित हुई. लेकिन यह एकमात्र मौका नहीं था जब चोपड़ा उनके लिए संकटमोचक बनकर आए.
वर्षों बाद, 1999 में भारतीय औद्योगिक और वित्तीय पुनर्निर्माण बोर्ड ने अमिताभ बच्चन कॉरपोरेशन लिमिटेड को 1.4 करोड़ अमेरिकी डॉलर के ऋण के साथ एक ‘बीमार’ कंपनी घोषित कर दिया था.

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महान अभिनेता उन दिनों को याद करते हुए आगे बताते हैं, “हर समय मेरे सिर पर तलवार लटकी रहती थी. मैंने कई रातें जागते हुए काटी हैं. एक दिन, मैं सुबह जल्दी उठा और सीधे यश चोपड़ाजी के पास गया और उनसे कहा कि मैं दिवालिया हो चुका हूं. मेरे पास कोई फिल्म नहीं थी. मेरा घर और नई दिल्ली में मेरी एक छोटी सी संपत्ति अटैच कर दी गई थी. यशजी ने शांत मन से सारी बातें सुनी और फिर मुझे उनकी फिल्म ‘मोहब्बतें’ में एक भूमिका की पेशकश की. मैंने तब कमर्शियल, टेलीविजन और फिल्में करना शुरू कर दिया. मुझे आज यह कहते हुए खुशी हो रही है कि मैंने अपना पूरा 90 करोड़ रुपये का कर्ज चुका दिया है और नई शुरुआत कर रहा हूं.”

सिनेमा में अपने 50 वर्षों के सफर में, अमिताभ बच्चन ने 15 साल तक मीडिया के अघोषित प्रतिबंध का सामना किया है. श्री बच्चन के हवाले से एक बार कहा गया, “मेरे काम को स्वीकार करने के शुरुआती दौर के बाद, पूरा प्रेस मेरे खिलाफ हो गया, क्योंकि उन्हें ‘सूत्रों’ द्वारा यह बताया गया था कि वह मैं ही था जिसने आपातकाल और प्रेस पर प्रतिबंध लगाने जैसे विचार दिए थे! इससे ज्यादा हास्यास्पद और कुछ नहीं हो सकता था. लेकिन उन्होंने मुझ पर भरोसा नहीं किया और प्रतिबंध लगा दिया; उस दौरान किसी भी तरह के मीडिया में मेरा कोई साक्षात्कार, कोई जिक्र या तस्वीर, या मेरे बारे में कोई खबर कभी नहीं छापी गई थी. उस 10-15 साल की अवधि के दौरान, प्रेस ने लगातार मेरी मौजूदगी को नकार दिया, मेरे साथ एक अस्तित्वहीन इंसान जैसा व्यवहार किया! उस दौरान मैंने अपनी सबसे बड़ी हिट और उस दौर की सबसे दिलचस्प फिल्में की थीं. मैं ‘कुली’ के दौरान घायल हो गया और उस समय मेरी हालत पर मीडिया में एक वास्तविक चिंता दिखी. स्टारडस्ट के मालिक नारी हीरा ने मुझसे बाद में कहा कि वे चाहते थे कि मैं असफल तो हो जाऊं, लेकिन वे मौत कभी नहीं चाहते थे. उसके बाद चीजें थोड़ी सामान्य हुईं और आज उन्हें स्वीकार कर लिया गया है.”

प्रेम प्रसंग या अफवाहें
जया भादुड़ी के साथ अमिताभ बच्चन की शादी के बाद कई तरह की अफवाहों के बावजूद, पति-पत्नी ने कभी मीडिया में कोई प्रतिक्रिया नहीं दी हैं. दोनों में से किसी ने भी कभी, अपने निजी जीवन के बारे में प्रेस में टिप्पणी नहीं की है. दो साथी कलाकारों-परवीन बॉबी और रेखा- के साथ अफेयर को लेकर मीडिया में खूब चर्चा होती रही है.

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परवीन बाबी अपने समय की सबसे हॉट, सबसे बोल्ड और सबसे मोहक अभिनेत्री थीं. वह टाइम मैगज़ीन के कवर पर आने वाली पहली बॉलीवुड अभिनेत्री थीं. डैनी डेन्जोंगपा, कबीर बेदी और महेश भट्ट के साथ उनके प्रेम संबंधों की खबरें भी समय-समय पर मीडिया में तैरा करती थीं. उन्होंने अमिताभ के साथ ‘अमर अकबर एंथनी’, ‘नमक हलाल’, ‘दो और दो पांच’, ‘दीवार’, ‘मजबूर’ और ‘काला पत्थर’ जैसी कई फिल्मों में काम किया, जिनके कारण उनके अफेयर की अफवाह उड़ी. परवीन बाबी ने एक बार दावा किया था कि श्री बच्चन ने उन्हें मारने की कोशिश की थी लेकिन बाद में पता चला कि वह सिज़ोफ्रेनिया से पीड़ित थीं. उसके डॉक्टर के अनुसार, वह प्यार में असफलता और अपने परिवार की ओर से किसी तरह का साथ नहीं मिलने के कारण पैरानॉयड सिज़ोफ्रेनिया से पीड़ित थीं. अगर उनके साथ उनसे कोई प्रेम करने वाला या उनका ख्याल रखने वाला होता, तो शायद उनकी बीमारी का इलाज संभव हो गया होता और उनका जीवन अलग होगा. जब उनकी मृत्यु हुई, तो अमिताभ ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि वह एक महान शख्सियत थीं और वह अक्सर उनके घर जाते थे क्योंकि दोनों का सामाजिक दायरे एक जैसा रहा है. जान से मारने के आरोपों पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने लिखा, “उनकी बीमारी की प्रकृति ऐसी थी कि वह लोगों से घबरा जाती थीं. बीमारी के कारण उनमें किसी भी प्रकार के भ्रम और मतिभ्रम के उच्च सीमा तक पहुंच जाने का खतरा था.”

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लेकिन जिस प्रेम प्रसंग की चर्चा आज तक होती है वह है रेखा के साथ. दोनों के बीच प्रेम था या नहीं यह तो दोनों ने कभी नहीं स्वीकारा लेकिन दोनों के अच्छे दोस्त और विश्वासपात्र, यश चोपड़ा ने बातों-बातों में इस राज को जाहिर कर दिया था कि रेखा और अमिताभ वास्तव में प्रेम में थे. उन्होंने कहा था कि निश्चित रूप से दोनों के बीच यह प्रेम उनके ‘सिलसिला’ फिल्म पर काम शुरू करने से पहले से चल रहा था. यह संयोगमात्र है कि पर्दे पर बन रही फिल्म की कहानी भी वास्तविक जीवन से मिलती-जुलती थी. यश चोपड़ा ने कहा था, “मैं हमेशा तनाव में और डरा रहता था (सिलसिला बनाने के दौरान) क्योंकि पर्दे पर जीवन की वास्तिवकता आने वाली थी. फिल्म में जया उनकी पत्नी हैं और रेखा उनकी प्रेमिका हैं- वही कहानी अमिताभ के साथ चल रही थी (वास्तविक जीवन में) इसलिए कुछ भी हो सकता था क्योंकि वे दोनों एक साथ काम कर रहे थे और यही मेरे डर की वजह थी.”

इस विषय पर जितना कुछ कहा गया उतना ही कहने को बाकी भी रह गया. सच क्या है और कितना है यह तो दोनों ही जानें लेकिन दो बातें ऐसी हैं जो इस कहानी को हमेशा जिंदा रखती हैं. रेखा की मांग में सिंदूर चमकता रहता है उन्होंने कभी भी अमिताभ बच्चन के लिए अपने जज्बातों के इजहार से किनारा नहीं किया है.

एक टेलीविजन शो में, रेखा ने कहा था, “मैं कभी भी साधारण चीजों से प्रभावित नहीं होती हूं. और अमितजी में ऐसी बात थी जो मैंने पहले कभी किसी में नहीं देखी थी. मुझे अब तक ऐसा कोई पुरुष, महिला या बच्चा नहीं मिला जो अमिताभ से मिले और उसे तुरंत अमिताभ से प्यार न हो जाए और उनके लिए दीवाना न हो जाए. तो फिर मैं इससे कैसे बच सकती थी?”

आज, कई साल बीत जाने के बावजूद, श्री बच्चन ने लगातार एक साफ सुथरी छवि और सोशल मीडिया पर अपनी उपस्थिति एक ऐसे शख्स के रूप में बनाए रखने की कोशिश की है, जिसका कोई प्रतिद्वंद्वी नहीं है, कोई शत्रु नहीं है, कोई द्वेषी नहीं है. फिर भी, उनका बहुत सारा समय अफवाहों के खंडन में लगता है. महान हस्तियों के पीछे-पीछे कई बड़ी अफवाहें अपने आप चली आती हैं, कई बार बिन बुलाए ही

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