अस्त हो गया है दलित राजनीति का एक चमकता सितारा

दलित राजनीति, राम विलास पासवान और नरेंद्र मोदी में अगर कोई समानता देखने की कोशिश की जाए तो  कई दिख जाएंगी पर सबसे बड़ी समानता है कि दोनों ही बहुत सामान्य पृष्ठभूमि से आने के बावजूद राजनीति की आकाशगंगा के चमकते सितारे बने. दलित राजनीति की वर्तमान पीढ़ी के एक चमकता सितारे राम विलास पासवान अस्त हो गए. स्व. पासवान जी ने उस दौर में उत्तर भारत के दलित नेता के तौर पर अपनी पहचान और धमक बनाई जब उन्हीं के गृह प्रदेश बिहार से आने वाले बाबू जगजीवन राम दलित राजनीति के वटवृक्ष की तरह स्थापित थे. स्व. जगजीवन राम जी छह विभागों के कैबिनेट मंत्री और उप-प्रधानमंत्री बने तो पासवान ने छह प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया.

जिन मोदी के विरोध के नाम पर उन्होंने वाजपेयी जी की कैबिनेट छोड़ी थी उन्हीं मोदी ने उनके पार्थिव शरीर पर श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए कहा कि अपने मंत्रिमंडल का एक अनुभवी और ऐसा भरोसेमंद साथी खो दिया जिनकी भरपाई असंभव है. राम विलास पासवान को राजनीति का अजातशत्रु कहा जाए तो गलत न होगा. सभी दलों के नेताओं के साथ उनके आत्मीय संबंध थे. सियासत की नब्ज पर उनकी पकड़ ऐसी थी कि लालू प्रसाद ने उनको ‘मौसम विज्ञानी’ का नाम दिया था और रामविलास पासवान ने भी कभी इसे स्वीकारने में हिचक नहीं दिखाई. उन्होंने स्वीकारा कि वे जहां रहते हैं सरकार उन्हीं की बनती है. चुनाव के पहले ही हवा का रुख भांप लेने की उनमें अद्भुत क्षमता थी.

खगड़िया के शहरबन्नी गांव में एक साधारण दुसाध परिवार में जन्मे पासवान जी ने कभी खुद को एक जाति या वर्ग तक सीमित नहीं रखा. राजनीति में सभी वर्गों को साधने के प्रयोग करते रहे. ऐसा ही एक प्रयोग फरवरी 2005 के बिहार विधानसभा चुनाव के बाद उन्होंने करने की कोशिश की जब सत्ता की चाबी उनके हाथ में थी और नीतीश कुमार उनके पास मुख्यमंत्री बनने का प्रस्ताव लेकर गए लेकिन उन्होंने किसी मुसलमान को मुख्यमंत्री बनाने की जिद नहीं छोडी और बिहार को फिर से चुनाव में जाना पड़ा. यह एक बड़ा रिस्क लिया था उन्होंने जो नुकसानदेह भी रहा पर प्रयोगों ने ही तो पासवान को राजनीति में पांच दशक से अधिक समय तक प्रासंगिक रखा है.

रामविलास पासवान देश के एकमात्र ऐसे नेता थे, जिनका नाम दो दो बार गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल हुआ. राजनरायन, जयप्रकाश नारायण, कर्पूरी ठाकुर जैसे सोशलिस्ट नेताओं के काफी करीबी रहे पासवान 1969 में पहली बार संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से विधायक बने. विधायक बनने से पहले उन्होंने बिहाल लोकसेवा आयोग की परीक्षा भी दी थी और रिजल्ट आया तो उनके नंबर अच्छे थे. उनका डीएसपी के लिए चयन हुआ था. माता-पिता चाहते थे कि बेटा बड़ा पुलिस अधिकारी बनकर समाज का काम करे. पर साथियों ने पूछा कि राजा बनकर सेवा करनी है या सेवक बनकर, सोच-विचारकर बताएं. पासवानजी के दिमाग का सारा भ्रम दूर हो गया और उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.

बिहारी अंदाज और बिहारी तेवर में उन्होंने संजय गांधी को संसद में ललकारा था, “आप बहुत जूनियर हैं हमसे राजनीति में. हमारी किसी बात का जबाव देने की हैसियत आपमें नहीं है, आपकी माता जी देंगी. आपको फरियाना हो हमसे तो जहां चाहे फरिया लीजिए- चांदनी चौक, क्नॉट प्लेस या आप जहां चाहें. ये लंठई संसद में नहीं चलेगी आपकी.”

इस तेवर से इंदिरा गांधी तक घबरा गईं और तुरंत उनसे शांत रहने और यह कहते हुए संजय को माफ करने की प्रार्थना की कि “संजय आपके छोटे भाई जैसा है. इसे अभी संसदीय परंपरा की समझ नहीं है. आप अनुभवी नेता हैं. क्षमा बड़न को चाहिए, छोटन को अपराध.” जिस संजय गांधी से बड़े-बड़े नेता घबराते थे उस संजय गांधी को झुकते संसद ने देखा था, देश ने सराहा.  

1974 में उन्हें लोकदल का महासचिव बनाया गया था. उसी साल जयप्रकाश नारायण अपनी सम्पूर्ण क्रान्ति का बिगूल फूंकने की तैयारी कर थे. पासवान भी उस आन्दोलन में कूद पड़े और जेल भी गए. जेपी को कितने प्रिय थे इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 1977 के चुनाव में जेपी ने जनता दल के आधिकारिक प्रत्याशी की जगह राम विलास पासवान के लिए अपील कर दी. जेपी ने कहा पार्टी ने प्रत्याशी जिसे भी बनाया हो जेपी का प्रत्याशी तो रामविलास है. नतीजा हुआ कि हाजीपुर संसदीय सीट को करीब सवा चार लाख से अधिक वोटों से जीतकर गिनीज बुक में अपना नाम दर्ज कराया. फिर 1989 में कांग्रेस के महावीर पासवान को 5 लाख से अधिक वोटों से हराकर गिनीज बुक में अपना ही रिकॉर्ड तोड़ा.

मृदुभाषी रामविलास पासवान देश के छह प्रधानमंत्रियों की कैबिनेट में मंत्री रहे. राजनीति की नब्ज पर उनकी पकड़ इस कदर रही कि वह अपने वोटबैंक को इधर से उधर ट्रांसफर करा सकते थे और इसी वजह से बिहार की राजनीति के एक अपरिहार्य नायक बने रहे.

2000 में उन्होंने जनता दल छोड़ दिया और अपनी लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) नाम से अपना राजनीतिक दल बनाया. 2004 के लोकसभा चुनावों के बाद पासवान यूपीए में शामिल हो गए. सोनिया गांधी खुद उनके पास मंत्री बनने का प्रस्ताव लेकर गई थीं. यूपीए सरकार में वे रसायन एवं उर्वरक और इस्पात मंत्रालय में केंद्रीय मंत्री बनाए गए.

जिस हाजीपुर सीट से उन्होंने रिकॉर्ड जीत दर्ज की उसी हाजीपुर से 2009 में जनता दल के रामसुंदर दास से चुनाव हार गए. ऐसा 33 वर्षों में पहली बार हुआ था. तब उनका लालू प्रसाद के राजद के साथ गठबंधन था. उनकी पार्टी लोजपा 15वीं लोकसभा में कोई भी सीट जीतने में सफल नहीं हो सकी. लालू के सहयोग से वह राज्यसभा पहुंचे. बाद में हाजीपुर क्षेत्र से 2014 के चुनाव में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में वह फिर से एनडीए में आ गए और संसद में पहुंकर मंत्री बने. उसी चुनाव में उनके बेटे चिराग भी पहली बार जमुई से सांसद बने.

कब किस विभाग के बने केन्द्रीय मंत्री

  • 1989 में केन्द्रीय श्रम मंत्री
  • 1996 में रेल मंत्री
  • 1999 में संचार मंत्री
  • 2002 में कोयला मंत्री
  • 2014 में खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री
  • 2019 में खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री

राम विलास पासवान अपने पीछे एक राजनीतिक विरासत छोड़ गए हैं. न्यूजऑर्ब360 स्व. राम विलास पासवान के निधन पर उनके परिवार के प्रति अपनी संवेदना प्रकट करता है.

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