बैंकों के बैंक रिजर्व बैंक

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बैंकों के बैंक रिजर्व बैंक ने सरकार को 1.76 लाख करोड़ की मदद क्या की, चारों तरफ हंगामा बरपा हो गया. राहुल गांधी रो रहे हैं कि यह तो ऐसा ही है कि किसी को गोली लगी है और आपने किसी दुकान से बैंड एड चुराया, बांधा और बोल दिया जा तू मिल्खा सिंह बन जा. कुछ लोग अलाप रहे हैं कि देश का अर्जेंटीना हो गया. अब बहुत से लोगों को अर्जेंटीना का पता नहीं तो सोच रहे कि ये कौन सी गाली या कौन सा नया घोटाला है. होते हैं, ऐसे लोग भी होते हैं जिनको सब नहीं पता होता. और सब पता रखने की जरूरत भी क्या है? और जिसे पता है उसने क्या उखाड़ लिया? आपको पता रखने की जरूरत नहीं है ज्यादा क्योंकि NewsOrb360 है न आपके लिए सब पता-ठिकाना रखने को. आप बस इससे जुड़े रहिए. आगे का काम हम देख लेंगे.

आज हम सब बताएंगे सरकार ने बड़े वाले बैंक से पैसे क्यों लिए, बैंक ने दिए क्यों? दिए तो सही पर उसके पास आए कहां से? इस पैसे का मालिक कौन विपक्ष के पेट में दर्द क्यों हो रहा है? सरकार को उधार-सुधार की जरूरत काहे पड़ी? और उसके बाद सबसे बड़ा सवाल जो टेंशन देता है- गुरु पैसे का करेगी क्या सरकार, चोरी चकारी तो नहीं हो जाएगा? बहुत से किंतु परंतु, क्या-क्यों हैं. NewsOrb360 पर आपको समझाता हूं एकदम गांव-घर की भाषा में, मौज-मौज में समझिए. और हां, अर्जेंटीना न कोई गाली है न घोटाला. एक ठो देश है भाई, बढ़िया फुटबॉलर पैदा करता है लेकिन अभी वहां पैसा-कौड़ी का कुछ प्रॉब्लम चल रहा है.

रिजर्ब बैंक ने अपने डिविडेंड और सरप्लस फंड से सरकार को 1.76 लाख करोड़ रुपए ट्रांसफर कर दिए. अब यह क्या आफत है? जैसे मान लीजिए कि आपके घर का रुपए-पैसे का इंतजाम पिताजी देखते हैं. घर-खर्च के लिए माताजी को कुछ पैसे दे देते हैं. अब सब्जी वाला आया. पिताजी जानते हैं कि बाजार में 20 रुपए किलो आलू है, लेकिन माताजी ने मोल भाव किया और 20 रुपए में सवा किलो ले लिया. यानी पांच रुपए की बचत. अब पिताजी को रोज-रोज का आलू-प्याज का खर्च बचाने की जरूरत तो है नहीं. सो उन्होंने वह पांच रुपया रख दिया आटे के डब्बे में आड़े वक्त पर काम आएगा. वह पैसा भी घर में ही काम आने वाला है लेकिन सुरक्षित फंड जैसा है. मान लीजिए कि धीरे-धीरे माताजी के पास जमा हो गए 20,000 रुपए. उन्होंने उसमें से 10 हजार रुपए का कोई गहना बनवा लिया और 10 हजार रुपए कहीं चिटफंड या कमेटी बोलते हैं उसमें लगा दिया. अब जो गहना है उसे आप रिजर्व बैंक का गोल्ड रिजर्व समझ लीजिए और जो पैसा कमेटी में लगाया उसे प्रतिभूति समझ लीजिए. इन दोनों निवेश पर उन्हें आमदनी हो सकती है. कैसे? मान लीजिए सोने का भाव बढ़ा और 10 हजार वाले की कीमत 15 हजार हो गई. उन्होंने पांच हजार का सोना बेच दिया और उसको फिर से कहीं और लगा दिया. उसी तरह कमेटी में जो पैसा लगाया उसमें उन्हें कुछ फायदा हो गया. धीरे-धीरे पैसा जमा होता रहा. इसी बीच एक दिन पिताजी की कार कहीं ठुक गई. 10हजार का खर्चा आया. इंश्योरेंस वाले ने बोल दिया कि आपकी गलती से हुआ हम नहीं देंगे. पिताजी ने कहा कि जब पैसा होगा तब देखेंगे मरम्मत का काम, फिलहाल तो बस से जाते हैं ऑफिस. माताजी को लगा कि इससे तो शान पर बट्टा आएगा और समय भी खराब होगा. उन्होंने धीरे से बता दिया कि 10 हजार रुपए का इंतेजाम हो जाएगा आप गाड़ी की मरम्मत करा लीजिए. पिताजी की आंखें चमक उठीं. पूछा कहां से आया? जवाब मिला घर-खर्च से बचाया है. अब पिताजी को लगा कि पैसा तो मेरा ही है, बस बचाया इन्होंने है. इसलिए पैसे में पूरा हक मेरा है. जरा पता किया जाए इन्होंने अंटी में माल कितना दबा रखा है. किसी तरह पता चल गया कि 20 हजार से ज्यादा हैं.

अब पिताजी की नजर लगी कि दस क्यों बीस का जुगाड़ लगाया जाए. केवल जरूरी मरम्मत क्यों गाड़ी में जो म्युजिक सिस्टम है उससे भी मजा नहीं आ रहा. क्यों न उसे भी बदलवा लें. अपने लिए एक गोगल्स भी ले लें, धूप आँख पर चमकी थी इसीलिए तो हुआ था एक्सीडेंट. सो उन्होंने फरमान सुनाया कि मुझे तो पूरे बीस के बीस चाहिए. अब माताजी को खटक गया. क्या माजरा है. लालच ठीक बात नहीं है. काम भर लो और काम चलाओ. पर पिताजी भी अड़े कि लूंगा तो बीस. आपने देखा और सोचा चलो बीच का रास्ता निकलवा देते हैं. दोनों मान गए और आपने 15 हजार दिला दिए. दोनों खुश.

अब यहां जो माताजी हैं वह रिजर्व बैंक है, पिताजी जो हैं वह सरकार और आप खुद को समझ लीजिए पूर्व आरबीआई गवर्नर बिमल जालान जिनकी कमेटी ने कहा कि 1.76 लाख करोड़ दिया जा सकता है. पिताजी मांग तीन लाख करोड़ के आसपास रहे थे. मोटी भाषा में समझ गए तो तकनीकी भाषा में समझना आसान हो जाएगा क्योंकि रिजर्ब बैंक का मामला है.     

आरबीआई ने सरकार को जो पैसा दिया है उसका बड़ा हिस्सा यानी 1.23 लाख करोड़ रुपये उसके सरप्लस फंड से आया है. मतलब जो पैसा कमेटी या इसी तरह से आ रहा था. बाकि 52,637 करोड़ रुपये दिया सरप्लस रिजर्व से यानी जो पैसा उन्होंने सोना बेचकर फायदे का मिला था.  

दो साल पहले आरबीआई के खाता-बही में 36.2 लाख करोड़ रुपये था. रिजर्व बैंक को अपनी कुल संपत्ति का 26 फीसदी हिस्सा रिजर्व के रूप में रखना ही होता है. यह नियम है. बैंक इसी पैसे को विदेशी के और भारत सरकार की प्रतिभूतियों और सोने में निवेश कर देता है. जैसे माताजी ने पैसे लगाए थे. आरबीआई के गोदाम में 566 टन से थोड़ा ज्यादा सोना पड़ा है. इसके अलावा रिजर्व बैंक में विदेशी मुद्रा जैसे डॉलर, यूरो, येन आदि का भी बड़ा भंडार रहता है. बैंक को यह पैसा रखना होता है ताकि वह उन देशों से सरकार द्वारा आयात करने में काम आए. तो अगर सोना और विदेशी मुद्रा दोनों को जोड़ दें तो ये दोनों मिलकर बैंक की कुल संपत्ति का 77% बैठता है. बैंक कितना रिजर्व बना कर रखेगा इसका फैसला पूरी तरह बैंक का होता है हालांकि सरकार सलाह देती है और उससे कहती रहती है इस बैलेंस को कम-ज्यादा करने को. पर बैंक की मर्जी माने या न माने. 

आरबीआई की कमाई कहां से होती है? 

माताजी की कमाई तो मोलभाव, सौदेबाजी से हो गई. आरबीआई के पास पैसा कहां से आता है. रिजर्व बैंक की आमदनी का तीन रास्ता है.

ऊपर बताया था न कि बैंक अपने पैसे से देसी-विदेशी सरकारी बॉन्ड खरीदता है. पहले तो जानिए कि सरकारी बॉन्ड क्या होता है. सरकारी बॉन्ड एक वचन जैसा होता है जिसके लिए सरकार कुछ पैसा चुकाने का वचन लिखित में देती है. जैसे आपके पिताजी आपको लिखित में दें कि 90 परसेंट मार्क्स आएं तो स्कूटी दिला देंगे. आप उनकी बात को गांठ बांधकर पढ़ने में पिल जाते हैं. सरकार जब खुले बाजार में अपने सरकारी बॉन्ड बेचती है तो रिजर्व बैंक उसे खरीद लेता है. यह करार होता है कि बॉन्ड पर इतना ब्याज सरकार रिजर्व बैंक को देगी. यह ब्याज रिजर्व बैंक की आमदनी का बड़ा स्रोत है.

दूसरा है रिजर्व बैंक से सरकार या बैंकों द्वारा उधार लेने पर होने वाली कमाई. अब मान लीजिए कि आपके पिताजी ने माताजी से 15 हजार तो ले लिए लेकिन वह ऐसे ही थोड़े न दे देंगी. उन्हें क्या मिला? तो पिताजी वादा करेंगे कि पंद्रह हजार रुपए के बदले 3 महीने में 20 दूंगा. और अगर न दिए तो जितना बचा उस पर हर महीने के हिसाब से हजार रुपए और जोड़कर. उसी तरह सरकार को अपना काम चलाने के लिए बैंक से पैसा लेना पड़ता है और जो आपके आसपास बैंक दिखते हैं जिसका आपकी जेब में डेबिट-क्रेडिट कार्ड चमकता है, उन बैंकों को भी पैसे की जरूरत होती है. इन बैंकों को कमर्शियल बैंक कहा जाता है. (एसबीआई, पीएनबी, बड़ौदा, एचडीएफसी, वगैरह, वगैरह सारे बैंक) वे बैंक भी रिज़र्व बैंक से उधार लेते हैं. जैसे आप कोई लोन लेते हैं बैंक से तो कुछ न कुछ रकम वह लोन प्रोसेसिंग चार्ज के रूप में लेता है उसी तरह रिजर्व बैंक भी सरकार और कमर्शियल कर्ज देने की फीस और ब्याज दोनों वसूलता है. रिज़र्व बैंक की कमाई होती है.

तीसरा स्रोत है विदेशी मुद्रा को भुनाने के एवज में मिलने वाला पैसा. मान लीजिए कि अमेरिका से लोग आए हैं ताजमहल घूमने. वे तो सब डॉलर लेके आए हैं लेकिन अगर उन्होंने आगरा में टैक्सी वाले को डॉलर दिया तो वह लेगा क्या? उसके लिए बने होते हैं मनी एक्सचेंज काउंटर यानी विदेशी मुद्रा लाइए, देशी मुद्रा पाइए. यह सब रिज़र्व बैंक कराता है सीधे अपनी निगरानी में. विदेशी मुद्रा को अपने पास रखता है. और उसने अमेरिकियों से जो डॉलर बदला वह समाज सेवा में नहीं किया. उसके बदले लेता है कुछ कमीशन.

इस तरह तीन तरीके से होती है रिजर्व बैंक की कमाई. अब ये है सभी बैंकों का बैंक. यानी सबसे ज्यादा होशियार. इसलिए यह सारा पैसा कई जगह रखता है. जैसे माता जी रखती हैं कुछ आटे के डब्बे में, कुछ खूंटे में, कुछ कपड़ों के बीच और कुछ पड़ोसियों के पास. तो रिज़र्व बैंक चार तरह के खाते में अपनी कमाई रखता है. 2017-18 के आंकड़ों के मुताबिक आरबीआई के पास करीब 9 लाख 60 हजार करोड़ रुपए का रिज़र्व था जो इन चार खातों में पड़ा था:

  1. करेंसी एंड गोल्ड रिजर्वः सोना और मुद्रा वाला खाता. आरबीआई के पास करीब 6.95 लाख करोड़ रुपए का सोना और नोट-सिक्का आदि पड़ा हुआ है.
  2. एसेट डेवलपमेंट फंडः अपने लिए भविष्य में और संपत्ति जुटाने के लिए कुछ पैसे संभालकर रखता है आऱबीआई. क्या पता किस दिन सरकार कोई बॉण्ड लेकर आ जाए और वह बैंक को लगता हो कि बड़ा फायदे का है इसे खरीद लेते हैं. जैसे आपके सामने कोई प्रॉपर्टी औने-पौने दाम पर बिकने आती है और आप उसे खरीद लेने को ललचा जाते हैं. आरबीआई के पास इस खाते में 22,811 करोड़ रुपए हैं.
  3. निवेश खाताः इस खाते के पैसे भी निवेश के लिए होते हैं जिसका इस्तेमाल रिजर्ब बैंक अपनी जरूरत के हिसाब से करता है. इसमें 13,285 करोड़ रुपए पड़े हैं.
  4. कंटिंजेंसी फंडः इसको आकस्मिक निधि खाता यानी किसी संकट के समय निकालने वाला पैसा कह सकते हैं. यह वही पैसा है जो माताजी ने जमा किया था और जिस पर पिताजी की नजर है कि गाड़ी टूट गई है, म्युजिक सिस्टम खराब हो गया है, मेरा काला चश्मा भी नहीं है. सब खरीदना है, मुझे सारे पैसे दे दो मालकिन. सारा हंगामा इसी खाते के पैसे को लेकर बरपा है.

रिज़र्व बैंक जो भी लाभ कमाता है, उसका एक हिस्सा कंटिंजेंसी फंड में आता है. अपनी कमाई का दूसरा हिस्सा सरकार को लाभांश यानी डिविडेंड के रूप में दे दिया जाता है. जैसे कोई भी व्यक्ति आमदनी पर आयकर देता है. आरबीआई को हमारे-आपके या किसी बिजनेस की तरह टैक्स नहीं देना होता है. अपनी आमदनी में से अपना खर्चा आदि सब निकालकर बाकी पैसा सरकार को डिविडेंड की तरह दे देता है. करेंसी और गोल्ड रिजर्व के बाद इसी खाते में सबसे ज्यादा पैसा है. फिलहाल इस खाते में करीब 2.32 लाख करोड़ रुपए हैं जो सरकार मांग रही है. अब सरकार इसलिए भी मांग रही है कि अन्य खातों में पर्याप्त तो हैं ही. इसलिए आरबीआई के कामकाज पर कुछ असर होना नहीं है इसलिए ये पैसा हमको दे दे.

यानी मिलाजुलाकर आरबीआई के पास 10 लाख करोड़ रूपए हैं. और इन्हीं पैसों के लम्बे-चौड़े हिस्से पर मोदी सरकार की नज़र है. सरकार का कहना है कि रिजर्व पहले से ही काफी है, और बनाने की क्या जरूरत है. जो भी पैसा है हमें दे दो हम इसे खर्चेंगे. तो आप कहेंगे कि इसमें पंगा क्या है. आखिर पैसा तो सरकार को ही देना ही है, आज नहीं तो कल तो फिर आज क्यों नहीं. और सरकार को भी तो वह पैसा देश में ही खर्च करना है. जो घूम-फिरकर वापस रिजर्व बैंक होते हुए फिर से सरकार के पास ही आने वाला है. इत्ती सी बात के लिए इत्ता ड्रामा काहे हो रहा है.

बात जितनी सरल दिखती है उतनी है नहीं. अगर सरकार के हाथ में पैसा बहुत रहा तो वह फिजूलखर्ची भी कर सकती है. पिताजी के पास पैसा दे दिया जाए तो हो सकता है वह एक साथ पूरे साल का राशन लाकर रख दें जो कि समझदारी की बात नहीं क्योंकि क्या पता आने वाले महीने में चीनी, तेल, साबुन, मसाला का दाम कम हो गया तो नुकसान हो जाएगा. बढ़ने का भी रिस्क है लेकिन घर में लाकर रख देने से खराब होने का भी तो रिस्क है. उसी तरह अंतरराष्ट्रीय गतिविधियों के कारण अगर कहीं अंतरराष्ट्रीय बाजार में उथल-पुथल मच जाए तो उसे संभालने के लिए रिजर्व बैंक के पास एक फंड होना चाहिए. वैसे ही जैसे कर्फ्यू के अंदेशे में लोग कैश निकालकर रख लेते हैं साथ में क्या पता एटीएम में पैसे खत्म हो जाएं. मान लीजिए कि अमेरिका ने इरान पर हमला कर दिया. तेल निकालने का काम बंद हो जाए. दुनिया के कुल तेल उत्पादन का वह 20 प्रतिशत निकालता है. यानी सप्लाई कम हो जाएगी. तो दाम बढ़ेगा. यानी भारत को ज्यादा पैसा खर्चना पड़ेगा. और अगर यह स्थिति लंबी चली तो धीरे-धीरे विदेशी मुद्रा भंडार घटेगा और रुपया का भाव गिरने लगेगा क्योंकि देश से ज्यादा से ज्यादा पैसा बाहर जा रहा होगा. ऐसी स्थिति में रिजर्व बैंक अपने रिजर्व से स्थितियों को संभालता है. यानी सरकार की मांग वाजिब नहीं है. उसे संतोष करना चाहिए.

फिर बवाल कैसा है? 
बवाल जितना बनाया जा रहा है उतने बवाल की जरूरत है नहीं और न ही ऐसा है कि कुछ हुआ ही नहीं है. पिताजी को मम्मी से पैसे लेने पड़ रहे हैं यह पिताजी के लिए ठीक स्थिति नहीं. मम्मी अपनी तरफ से दे देतीं तो पिताजी थोड़ा चौड़े होते लेकिन यहां मांगना पड़ रहा है यानी अपना बजट ठीक से नहीं बनाए. इस बात के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. साथ ही सरकार ने पैसे तो पहले ले लिए लेकिन बताया नहीं कि कहां खर्चने का इरादा है. वैसे सरकार बजट के अलावा खर्च से जुड़े दूसरे विषयों का खुलासा करने को बाध्य नहीं है. इसलिए विपक्ष का जरूरत से ज्यादा रोना वाजिब नहीं है. लेकिन कहते हैं न कि जो आप करेंगे वही आप भरेंगे. मनमोहन सिंह कहते रहे कि कोयला घोटाला कहां हुआ? स्पेक्ट्रम घोटाला कहां हुआ? कोयला खदान में पड़ा है चाहो तो फिर से उसका दाम तय कर लेते हैं. स्पेक्ट्रम तो हवा में ही रहता है, उसे कौन लेकर जा सकता है. फिर से दाम तय कर लेते हैं. पर सबसे कहा घोटाला हुआ. क्यों कहा, क्योंकि सरकार ने पहले ही ज्यादा से ज्यादा पैसा वसूलने की कोशिश क्यों नहीं की. बात खुलने पर उसने क्यों कहा कि फिर से रेट तय कर लेते हैं. टेक्निकली मनमोहन सिंह भी सही थे, विपक्ष भी. तो चलिए गड़बड़ी टेक्निक में ही थी, ऐसा ही मान लेते हैं.

उसी तरह टेक्निकली सरकार भी ठीक है, विरोधी भी. गड़बड़ी टेक्निक की मान लेते हैं. बाकी चर्चा आगे करेंगे. न्यूजऑर्ब360 से जुड़े रहिए. आशा है आपको घरेलू उदाहरण से समझाने की जो कोशिश हुई है, उसे मोटे-मोटे रूप में आप समझ गए होंगे. अर्थव्यवस्था की बात थोड़ी ज्यादा मोटी होती है, टाइम लगता है पूरा समझने में. फिर मिलेंगे किसी नए पहलू पर चर्चा के साथ.

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