भाजपा का प्लान बीः फड़नवीस का बिहार मॉडल

अब ऐसा लग रहा है कि बिहार एनडीए टूट चुका है. इसकी घोषणा होनी ही महज बाकी है. राम विलास पासवान की पार्टी लोकजनशक्ति (लोजपा) के लिए एनडीए में रहना या एनडीए के लिए लोजपा को साथ में रखना मुश्किल है. नीतीश की जदयू ने तो पहले ही साफ कर दिया था कि उनका गठबंधन भाजपा से है, लोजपा से नहीं. फिर धीरे-धीरे समन्वय की बात चली थी लेकिन नीतीश के सात निश्चय पार्ट-2 का मजाक उडाकर संभवतः लोजपा ने अपने रास्ते बंद कर लिए हैं. 

भाजपा के लिए भी नीतीश को नाराज करके लोजपा को एनडीए में रखना आसान नहीं होगा. बहरहाल 02 अक्टूबर की रात को भाजपा के केंद्रीय नेताओं की ओर से गठबंधन को बचाने का अंतिम प्रयास होगा लेकिन भाजपा के राज्यस्तरीय नेताओं और राज्य के प्रभारियें ने अपना प्लान बी तैयार कर लिया है. 

क्या है प्लान बी

पहले चरण के लिए नामांकन शुरू होने के बाद भी जब लोजपा के साथ बात नहीं बन पाई तो 01 अक्टूबर की रात उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी के सरकारी आवास पर दोपहर करीब साढ़े 12 बजे से भाजपा नेताओं ने मंथन शुरू किया. करीब तीन घंटे तक चली इस विशेष बैठक में बिहार चुनाव के प्रभारी देवेंद्र फडणवीस, बिहार पार्टी प्रभारी भूपेंद्र यादव, संगठन महामंत्री सौदान सिंह, प्रदेश अध्यक्ष डॉ संजय जायसवाल, संगठन महामंत्री नागेंद्र, शिवनारायण, स्वास्थ्य मंत्री और प्रदेश के पूर्व अध्यक्ष मंगल पांडेय समेत कई अन्य प्रमुख नेताओं ने प्लान बी तैयार किया.

प्लान बी के तहत मंथन इस बात पर हुआ कि अगर लोजपा गठबंधन में नहीं रहती है तो भाजपा के खाते में जो सीटें आएंगी उसके लिए जदयू के साथ जो मोल-तोल होगा उसमें क्या रणनीति रखी जाए. चूंकि अब फैसले लेने में देर करने में जोखिम है क्योंकि पहले दौर के चुनाव के लिए नामांकन खत्म होने में ज्यादा दिन शेष नहीं है. इसलिए सौदेबाजी के लिए भी ज्यादा समय नहीं मिलेगा. इसलिए भाजपा के नेता पहले से ही तैयारी रखना चाहते हैं.

प्लान बी के तहत भाजपा की जीत संभावनाओं का आकलन करते हुए सीटों की ए, बी, सी और डी चार श्रेणियां बनाई गई हैं. इनको लेकर मोल-भाव शुरू होगा.

, बी, सी और डी कैटेगरी की सीटों का फंडा

विशेष बैठक में भाजपा ने विधानसभा की सभी 243 सीटों को ए,बी,सी और डी कैटेगरी में चिह्नित किया. इसके लिए हर सीट पर मंथन हुआ. सबसे ज्यादा जोर पहले चरण के चुनाव वाली सीटों पर था. हर सीट के समीकरणों की चर्चा हुई जिसमें लोजपा के साथ रहने और न रहने दोनों ही मामलों में असर की तुलना हुई.

बताया जाता है कि पार्टी ने 55-60 ऐसी सीटें चिह्नित की हैं जिस पर जीत का परचम लहराना पक्का मानकर चलती है. पार्टी इसे ‘ए’ कैटेगरी की सीटें मानती है. इन सीटों के बारे में पार्टी का मानना है कि अगर प्रत्याशी अच्छा रहा तो ये सीटें बिना किसी बड़े नेता के जोर लगाए भी जीती जा सकती हैं. पार्टी का मानना है कि ये सीटें उसके लिए लहर बनाने में भी मददगार हो सकती है.

अगर इन सीटों पर स्टार प्रचारकों को लगाया जाए तो पहले से ही मजबूत स्थिति और मजबूत होगी ही साथ ही आसपास की सीटों पर भी उसका असर होगा. अगर ऐसी सीटों के आसपास की सीटें भी समझौते में भाजपा की झोली में आती हैं तो वहां स्टार प्रचारक लगाकर जीत बड़ी बनाई जाएगी.

पार्टी ने करीब 50-55 सीटों को ‘बी’ कैटेगरी का माना है. यानी संगठन और स्टार प्रचारकों का जोर लगाने से इन सीटों को जीता जा सकता है. ऐसी सीटों के लिए पार्टी कुशल चुनाव प्रबंधकों को विशेष जिम्मेदारियां दे सकती है. अन्य प्रदेशों के आजमाए हुए स्टार चुनाव प्रबंधक और संघ के काडर की मदद ली जा सकती है. 

40-45 सीटों को ‘सी’ कैटेगरी में रखा गया है. पार्टी को लगता है कि इनपर जीतने के लिए बहुत अधिक ताकत लगानी पड़ेगी. इन सीटों में से कुछ में पार्टी का संगठन या तो मजबूत नहीं है या फिर गुटबाजी का ज्यादा शिकार है. इसके अलावा इन सीटों का जातीय समीकरण साधने में भी भाजपा को मुश्किल होगी. इसलिए इन सीटों का इस्तेमाल प्रदेश में उम्मीदवारों के चयन में जातीय संतुलन को साधने के लिए किया जा सकता है. उदाहरण के लिए किसी सीट पर पार्टी ने उस जाति को प्रमुखता नहीं दी जिसे देनी चाहिए थी क्योंकि विपक्ष का उम्मीदवार भी उसी जाति का है तो उसकी भरपाई सी कैटेगरी वाली सीट से की जाएगी.

अन्य सीटें ‘डी’ कैटेगरी की मानी गई हैं, जहां पार्टी जीत की संभावना नहीं के बराबर देखती है. इनमें से ज्यादातर सीटें कोसी क्षेत्र की हैं जहां पार्टी पहले भी ज्यादा चुनाव नहीं लड़ी है. समझौते में सीटें जदयू को जाती रही हैं. वहां का जाति और धर्म का फैक्टर भी भाजपा के लिए फिट नहीं बैठता.

मोलभाव का संभावित फॉर्मूला

भाजपा अपने स्तर से तीन तरह के प्रस्ताव देगी. पहले प्रस्ताव में भाजपा, जदयू और लोजपा तीनों को साथ रखा गया है. सीटों का बंटवारा भी तीन भागीदारों को मानकर किया गया है. अपनी ए,बी,सी और डी कैटेगरी की सीटों को पहले जदयू और फिर लोजपा के साथ मिलकर बांटा जायेगा. भाजपा की कोशिश होगी कि वह अपनी ए और बी कैटेगरी की सभी या अधिकतर सीटें हासिल कर ले. नीतीश को बताया जा सकता है कि इससे ज्यादा बड़े बहुमत के पास पहुंचने में पार्टी को मदद मिलेगी.

पर यही बड़ा पेंच भी है. नीतीश नहीं चाहते कि भाजपा और लोजपा किसी भी भी सूरत में 90 की संख्या के आसपास पहुंचे. जदयू को लगता है कि इससे भाजपा को मध्य प्रदेश और कर्नाटक का तोड़-फोड़ का फॉर्मूला अपनाने के लिए बल मिलेगा. भाजपा के पास पैसा भी है और केंद्र में सत्ता भी है, साथ ही पुराना अनुभव भी. उसके लिए सत्ता की बाजी पलटना आसान रहेगा. 

कहां तक झुकेगी भाजपा

सूत्र बताते हैं कि भाजपा के नेताओं ने एकमत से फैसला किया है कि वे ‘ए’ कैटेगरी की कोई सीट किसी भी सूरत में नहीं छोड़ेंगे. अगर जदयू इसके लिए राजी नहीं होती तो पार्टी अड़ जाएगी और गठबंधन छोड़ने की भी धमकी दी जा सकती है. अब नीतीश बैकफुट पर हैं क्योंकि जो भी सत्ता विरोधी रूझान या एंटी इन्कंबेंसी है वह नीतीश के लिए है, भाजपा के लिए नहीं. इसलिए उनके पास ज्यादा हठ करने की गुंजाइश भी नहीं है.

फड़नवीस ऐसा मॉडल महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ आजमा चुके हैं और भाजपा को इससे फायदा मिला था. हालांकि, शिवसेना और फिर शिरोमणि अकाली दल जैसे पुराने सहयोगियों के साथ छोड़ने से भाजपा भी थोड़े दबाव में है और वह गठबंधन के साथियों का सम्मान न करने का आरोप झेलने की स्थिति में नहीं है. फिर अगर ए कैटेगरी की सीट पर बात फंसने लगती है तो क्या होगा.

सूत्र बताते हैं कि भाजपा थोड़ा लचीला रूख अपनाएगी और सहयोगी दल के सामने दो प्रस्ताव रखेगी. पहला तो उस ए कैटेगरी की सीट के बदले अपनी बी कैटेगरी की सीट जदयू को दे और वहां पर भाजपा के स्टार प्रचारकों से प्रचार करवाकर जदयू को सीट जीतने में पूरा जो लगाएगी. अगर जदयू इसके लिए राजी नहीं होती तो दूसरा फॉर्मूला यह दिया जा सकता है कि उसकी ए कैटेगरी की सीटों पर जदयू का प्रत्याशी लडे लेकिन सिंबल भाजपा का ही रहेगा. इसके बदले में दूसरी सीटों पर वह जदयू को भी ऐसी सुविधा दे सकती है. कहा जा रहा है कि ए कैटेगरी की अपनी सारी सीटें अपने पास रखने के लिए अगर भाजपा को समझौते में दो-चार सीटें जदयू को अतिरिक्त भी देनी पड़ें तो भी भाजपा उसके लिए राजी हो सकती है.

03 अक्टूबर को चिराग पासवान अंतिम फैसवा कर लेंगे कि वह एनडीए में रहना चाहते हैं या नहीं. उसके बाद भाजपा सीधे जदयू से बात करेगी. उम्मीद जताई जा रही है कि तीन अक्टूबर की रात तक एनडीए अपने समझौते की घोषणा कर सकता है.

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