बिस्कुट कंपनी का ‘लॉलीपॉप’

जो पारले (बिस्कुट कंपनी) एक महीने पहले तक नुकसान के कारण 10 हजार लोगों की नौकरी खाने की बात कर रही थी वह पारले तो वास्तव में बड़ा मुनाफा उगाह रही थी क्या पारले ने अपने उपभोक्ताओं को और सारे देश को चकमा देने की कोशिश की है.

बीते अगस्‍त महीने की बात है. दुनिया में सबसे ज्यादा बिकने वाला पारले जी बिस्कुट बनाने वाली कंपनी पारले प्रोडक्ट्स के कैटेगिरी हेड मयंक शाह सभी टीवी चैनलों पर नजर आ रहे थे. वह हर जगह यह बताते नहीं थक रहे थे कि मंदी के कारण लोगों की क्रयशक्ति इतनी खराब हो गई है कि वे अपना पसंदीदा पांच रुपए का पारलेजी बिस्कुट नहीं खरीद पा रहे हैं. सरकार के खिलाफ हमले की फिराक में रहने वाले कुछ मीडिया चैनल्स के रिपोर्ट्स इंडस्ट्रियल एरिया की तरफ दौड़ पड़े जहां उन्हें बहुतायत में मजदूर मिल जाते हैं. उनसे पसंद की टीवी बाइट ली गई जिसमें वह कह रहे थे कि उन्होंने पारले जी बिस्किट खाना बंद कर दिया है क्योंकि बिस्कुट पर पांच रुपए खर्च करना अब उनकी हैसियत से बाहर की चीज है. बहरहाल उस दौरान किसी भी सेलफोन कंपनी के सब्सक्राइवर में कमी नहीं आई. लोगों ने मोबाइल के लिए 100 रुपए के करीब खर्चना बंद नहीं किया था हां पांच रुपए का बिस्कुट उनकी पहुंच से बाहर हो गया था. बहरहाल आज बात सिर्फ बिस्कुट की ही होगी. बिस्कुट में भी पारले जी बिस्कुट की, उसके मालिकान की, उनके नफे-नुकसान की.

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पहले मयंक शाह के पुराने दावे की बात कर लेते हैं. आखिर वह क्या कह रहे थे. वह कह रहे थे कि पारले की बिक्री और प्रोडक्‍शन में लगातार गिरावट आ रही है. इस वजह से कंपनी को आने वाले दिनों में 10 हजार कर्मचारियों की छंटनी करनी पड़ सकती है. मयंक शाह ने इस हालात के लिए सरकार की नीतियों को जिम्‍मेदार बताया था. वह सरकार पर इस बात को लेकर खूब बरसे कि सरकार ने बिस्‍किट पर जीएसटी बढ़ा दी है जिससे बिक्री प्रभावित हो रही है. अगर सरकार ने जीएसटी में कटौती न कि तो कंपनी को अपना घाटा रोकने के लिए प्लांट बंद करने होंगे और 10 हजार कर्मचारियों की छंटनी करनी पड़ेगी. देश में नौकरी का संकट गहराया हुआ. ऐसे में अगर पारले से 10 हजार लोगों की छंटनी का मतलब है 10 हजार परिवारों के लिए संकट. जाहिर है क्या सरकार के विरोधी और क्या समर्थक दोनों इसपर प्रतिक्रिया दे रहे थे. सरकार विरोधियों के लिए जहां यह एक मौका था और वे मीम्स से लेकर कार्टून तक, हर प्रकार से सरकार की खिल्ली उड़ा रहे थे. सरकार के समर्थकों को दुख हो रहा था कि इतने परिवारों के लिए संकट खड़ा हो जाएगा.

क्या कंपनी को 10 हजार लोग बेकार हो गए अभी तक तो ऐसी कोई खबर नहीं है लेकिन एक खबर है जो इससे एकदम उलटी है. ऐसी खबर जो कंपनी के सारे दावों की हवा निकाल देती है. खैर, उस खबर पर बाद में आउंगा. पहले यह समझ लेते हैं कि आखिर इस बिस्कुट कंपनी और उसके नुकसान को लेकर इतनी गहमागहमी क्यों है. संक्षेप में समझते हैं कि कंपनी देश की अर्थव्यवस्था में कितनी अहमियत रखती है.

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90 साल पुरानी पारले कंपनी के 10 प्लांट अपने और 125 प्लांट उसके कॉन्ट्रैक्ट वाले हैं. इन सबके साथ करीब 1 लाख कर्मचारी जुड़े हुए हैं. कंपनी का सालाना राजस्व 9,940 करोड़ रुपए है. भारत के ग्लूकोज बिस्कुट श्रेणी के 70% बाजार पर पारले जी का कब्जा है. इसके बाद ब्रिटानिया के टाइगर (17-18%) और आईटीसी के सनफीस्ट (8-9%) का नंबर आता है. पारले जी ब्रांड की अनुमानित कीमत 2,000 करोड़ रुपये से अधिक है और कंपनी के कुल कारोबार में इसका 50 प्रतिशत से अधिक का योगदान है. पिछले वित्त वर्ष में पार्ले की कुल बिक्री 3,500 करोड़ रुपये थी। यह दुनिया भर में भी लोकप्रिय है और पश्चिमी यूरोप तथा अमेरिका में भी इसकी बिक्री शुरू हो चुकी है. वैसे पार्ले प्रोडक्ट्स एक असूचीगत कंपनी है और इसके अधिकारीगण अक्सर इसके सही आंकड़ों का खुलासा करने से बचते रहते हैं. मयंक शाह को असल में परेशानी इसी बात की है क्योंकि जीएसटी आने के बाद बहुत हद तक चीजों को छुपाना संभव नहीं है. और इसीलिए उनकी वह बात सामने आ गई है जिसके कारण यह स्टोरी लिखी जा रही है.

अब क्या हुआ है जो पारले प्रॉडक्ट्स दो महीने पहले ऐसे नुकसान की बात कर रही थी जिसके कारण उसे अपनी फैक्ट्रियां चलानी मुश्किल थी और 10,000 नौकरियां खत्म करने की बात कर रही थी, अब उसी कंपनी के 15.2 फीसदी मुनाफा बढ़ने की खबर है. ताजा आंकड़ों में पारले बिस्किट्स का वित्त वर्ष 2018-19 के लिए शुद्ध मुनाफा 410 करोड़ रुपये रहा है, जबकि पिछले वित्त वर्ष 2017-18 में यह 335 करोड़ रुपये था. इस साल कंपनी का कुल रेवेन्यू 6.4 फीसदी बढ़ा है, जिससे इसकी आय 9,030 करोड़ रुपए हो गई है, जबकि पिछले साल कंपनी का रेवेन्यू 6 फीसदी की दर से बढ़ा था और आय 8780 करोड़ रुपये हुई थी.

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पारले के मुनाफे की खबरें ट्रेंड हो रही हैं और तेजी से शेयर हो रही हैं. लोग कह रहे हैं कि कुछ समय पहले जहां कहा जा रहा था कि लोगों के पास पारले जी के 5 रुपये के बिस्किट खरीदने तक के पैसे नहीं हैं, वह कंपनी मुनाफा कमा रही है. पारले बिस्किट्स का मुनाफा बढ़ने की खबर इसलिए अहम है क्योंकि नुकसान की आशंका को देखते हुए बिस्किट मैन्युफैक्चरर्स ने सरकार जीएसटी कट की मांग की थी.

अगस्‍त में इंटरव्‍यू के दौरान शाह ने बताया था, “बिस्‍किट को मुख्‍य तौर पर दो कैटेगरी (100 रुपये प्रति किलो से ज्‍यादा और 100 से कम) में बांटा गया है. जीएसटी लागू होने से पहले 100 रुपये प्रति किलो से कम कीमत वाले बिस्किट पर 12 फीसदी टैक्स लगाया जाता था. लेकिन जीएसटी लागू होने के बाद हालात बदल गए और सभी बिस्किटों को 18 फीसदी स्लैब में डाल दिया. यह ठीक नहीं था.”

तो क्या पारले के प्रोडक्ट्स हेड के पास उनके सबसे हॉट ब्रांड बिक्री के आंकड़े नहीं थे? ऐसा तो कोई अनाड़ी भी नहीं मान सकता. तो फिर एक संबावना तो यही के शाह एक प्लान के तहत कंपनी के नुकसान का रोना रो रहे थे. दरअसल वह समझ रहे थे कि नौकरियों के मोर्चे पर सरकार के हाथ दबे हुए हैं. वह बाजार में तेजी लाने के लिए लगातार घोषणाएं कर रही है. इसलिए पारले ने इसे फूड प्रोडक्टस के लिए जीएसटी कम कराने से लेकर कई अन्य तरह की रियायतें हासिल कर लेने का एक अच्छे मौके के रूप में देखा. जहां पारले सरकार से कुछ हासिल कर लेने की जुगत लगा रहा था वहीं उसने अपने ग्राहकों के साथ भी थोड़ी सी चालाकी कर ली.

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पहले जो पारले जी का पैकेट 4 रुपए का आता था, जिसमें 16 बिस्कुट होते थे. लेकिन जीएसटी आने के बाद बिस्कुट पर टैक्स 12 फ़ीसदी से बढ़कर 18 फ़ीसदी हो गया. कंपनी ने बिस्किट के पैकेट पर 1 रुपए का दाम बढ़ाया दिया यानी दाम में 25 फीसदी का इजाफा कर दिया गया. इसके साथ ही कंपनी ने तीन बिस्कुट कम कर दिए यानी करीब 18 फीसदी माल भी कम हो गया. सरकार ने जीएसटी छह प्रतिशत बढ़ाया और कंपनी ने माल में 18 फीसदी की कमी करके दाम में 25 फीसदी इजाफा कर दिया. जाहिर है मुनाफा मोटा होना ही था.

पारले ने जो दाव खेला है उससे कॉरपोरेट की विश्वसनीयता घटती है जो पहले से ही माल्या, मोदी, चौकसी, बधावन और इन जैसे कई और की वजह से विश्वसनीयता के गहरे संकट से जूझ रहा है.

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