शराब के बाद नीतीश अब गुटखे पर गरम…

बेशक शौक बड़ी चीज होती होगी, और दाने-दाने में केसर का दम भी होता होगा पर नीतीश कुमार ने शराब के बाद पान मसालों का भी दम निकाल दिया है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक के बाद एक ऐसे फैसले ले रहे हैं कि खाने-पीने(नशे और संबंधित चीजों) के शौकीनों की शामत आ जा रही है. सरकार ने बिहार में एक साल के लिए राज्य में 12 प्रकार के पान मसालों के उत्पादन, बिक्री, भंडारण और वितरण पर रोक लगा दी है. रजनीगंधा, राज निवास, सुप्रीम पान पराग, पान पराग, बहार, बाहुबली, राजश्री, रौनक, सिग्नेचर, पैसन, कमला पसंद और मधु पान मसाला पर प्रतिबंध लगाया गया है. सरकार का कहना है कि इन पान मसालों में मैगनेशियम कार्बोंनेट पाया गया है जिससे हाइपरमैग्नेशिया और हार्ट अटैक की आशंका रहती है.
बिहार में तंबाकू नियंत्रण के क्षेत्र में काम करनेवाली संस्था सीड्स के कार्यपालक निदेशक दीपक मिश्रा के मुताबिक महाराष्ट्र के बाद बिहार देश का दूसरा ऐसा राज्य बन गया है जहां पर सादा पान मसाले के भी बिक्री पर भी पाबंदी लगाई गई है. हालांकि गुटखा या पान मसाले पर यह प्रतिबंध पहली बार नहीं है. बिहार में तंबाकू युक्त गुटखा पर 30 मई, 2013 को भी प्रतिबंध लगाया गया था. इसके बाद प्रतिबंध के दायरे को बढ़े हुए 7 नवंबर, 2014 से राज्य में सभी तरह के तंबाकू पदार्थों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाया गया था लेकिन वह निष्प्रभावी हो गया. इस तरह के प्रतिबंध देश के कई अन्य राज्यों में भी लगाए गए हैं लेकिन अक्सर गुटखा कंपनियों की मजबूत लॉबी और चालाकी से ये प्रतिबंध दिखावे के रह जाते हैं.

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जब भी प्रतिबंध लगते हैं, गुटखा बनाने वाली कंपनियां नियम-कानून को झांसा देने के लिए सादा पान मसाला के नाम पर अपने विभिन्न ब्रांड मार्केट में उतार देती हैं. उसके साथ अलग से तंबाकू दिया जाता है यह कहते हुए कि असली मजा तो दोनों को मिलाकर खाने में है. तंबाकू वाले पाउच पर लिख दिया जाता है कि यह कैंसर कारक हो सकता है और कंपनियों का सारा दायित्व इतने में समाप्त हो जाता है. पर बिहार सरकार ने तू डाल-डाल तो मैं पात-पात वाली नीति अपनाई है. जिन ब्रांड पर रोक लगाई है उनका बिहार बाजार के पान मसाले के बाजार में तीन चौथाई से ज्यादा कब्जा है. हालांकि यह रोक फिलहाल एक साल के लिए ही लगाई गई है इसलिए इस पर प्रश्न भी उठ रहे हैं लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि नीतीश कुमार नशीली और आदी बनाने वाली चीजों पर बहुत सख्त हैं. उन्होंने जिस स्तर पर सख्ती और इच्छाशक्ति दिखाई है वह भी ऐतिहासिक है. उनमें से एक है सरकारी नौकरियों में सेवारत सभी कर्मचारियों से शराब के इस्तेमाल के खिलाफ शपथपत्र और हलफनामा ले लेना.

पीने की कसम डाल दी, पिएंगे किस तरह…
नीतीश सरकार ने अपने कर्मचारियों को शराब के विरूद्ध एक शपथ लेने को कहा है. क्या इसका कुछ असर होगा?

जुलाई महीने के आखिरी सप्ताह में बिहार के पांच लाख से अधिक सरकारी कर्मचारियों को एक शपथ दिलाई गई. कि वे अपने जीवनकाल में कभी शराब का सेवन नहीं करेंगे और अगर मैं शराब से जुड़ी किसी भी गतिविधि में कभी भी लिप्त पाए गए, तो वे कड़ी कार्रवाई के उत्तरदायी होंगे.”

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बिहार सरकार ने अप्रैल 2016 में राज्य में पूर्ण शराबबंदी कानून लागू किया था लेकिन लगातार शराब की बरामदगी और सरकारी अधिकारियों द्वारा खुलेआम इसके सेवन की खबरें आ रही थीं. एक पुलिस थाने में तो जब्द की गई करीब 200 लीटर शराब गायब पाई गई तो थानेदार ने तर्क दिया कि थाने के आसपास के चूहे बहुत शौकीन मिजाज के हैं. सारी शराब चूहे पी गए. यह मामला बहुत सुर्खियों में रहा था. देशभर की मीडिया में यह छाया रहा था. सरकार की भी खिल्ली उड़ रही थी. आजिज आकर सरकार ने शपथ दिला दी है.

क्या शपथ से शराबबंदी रोकने में फायदा मिलेगा? नाम न छापने की शर्त पर राज्य के अतिरिक्त सचिव स्तर के एक पदाधिकारी न्यूज़ऑर्ब360 को बताते हैं, “शपथ में जो शर्त जोड़ी गई है कि मैं शराबबंदी के नियम के उल्लंघन के बाद किसी भी सख्त कार्रवाई के लिए उत्तरदायी समझा जाऊंगा, यह एक बड़ा भय पैदा करता है. शराब का सेवन या भंडारण में पकड़े जाने पर अब वे तत्काल सस्पेंड किए जा सकते हैं. उन पर दूसरी विभागीय कार्रवाई भी हो सकती है. पहले जुर्माना देकर बचा जा सकता था लेकिन अब मुश्किल होगा. इसके अलावा यदि किसी सरकारी कर्मचारी को किसी अन्य व्यक्ति को शराब के सेवन में सहायता करते पाया गया तो भी उस पर कार्रवाई होगी.” यानी सरकार ने एक तरह से सरकारी कर्मचारियों से तो शपथ ले लिया है कि पीएंगे, न पीने देंगे.

इससे पहले, नीतीश सरकार ने विधायकों और पुलिसकर्मियों से शराब के सेवन के खिलाफ शपथ दिलाई थी. थानेदारों से यह लिखित में लिया गया था कि वे अपने इलाके में में शराब की बिक्री या खपत को रोकना सुनिश्चित करेंगे. यदि किसी थानेदार के इलाके में शराब की बरामदगी होती है तो उसका ट्रांसफर कर दिया जाएगा और 10 साल तक उसे किसी भी थाने में तैनाती नहीं दी जाएगी. जुलाई महीने में, 21 इंस्पेक्टर रैंक के अधिकारियों सहित 41 पुलिसकर्मियों की पदोन्नति और पोस्टिंग पर 10 साल के लिए रोक भी लगाई गई थी.

बिहार सरकार ने अप्रैल 2016 में पूर्ण शराबबंदी कानून लागू किए जाने के बाद जुलाई 2018 में निषेध कानूनों को थोड़ा नरम किया था और शराब सेवन का अपराध करते पहली बार पकड़े जाने पर दोषी व्यक्ति को 50,000 रुपये का जुर्माना भरने पर छोड़ा जा सकता है.

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शराब को लेकर नीतीश कुमार की नीति सबसे ज्यादा बदलाव वाली रही है. उन्होंने करीब 14 साल के अपने कार्यकाल में शराब को लेकर कई यूटर्न लिए हैं. अपने पहले कार्यकाल में उन्होंने शराब को प्रोत्साहन देने की योजना चलाई. राज्य में किसी को शराब की तलाश में एक किलोमीटर से अधिक नहीं जाना पड़े इसके लिए एक प्रत्येक किलोमीटर पर शराब के ठेकों का लाइसेंस बांटने की पहल शुरू हुई. राज्य में छलकते जाम नाम से शराब की दुकानों की बाढ़ आ गई. लेकिन इससे कानून-व्यवस्था का संकट खड़ा हुआ तो सरकार थोड़ी संभली. उसके बाद सरकार ने प्रस्ताव दिया कि राज्य में शराब की डिलिवरी से पोस्ट ऑफिसों को जोड़ा जाएगा और डाकिए शराब पहुंचाएंगे. सहयोगी भारतीय जनता पार्टी के मातृ संगठन आरएसएस से जुड़े कई इकाइयों ने इसका जबरदस्त विरोध किया तो सरकार को यूटर्न लेते हुए इस योजना से हाथ पीछे खींचने पड़े.

उसके बाद यूटर्न लेते हुए नीतीश कुमार ने 2015 के जदयू के चुनाव घोषणा पत्र में पूर्ण शराबबंदी का वादा किया. हालांकि बहुत से लोगों को लगता था कि यह चुनावी वादा है लेकिन उन्होंने वादा निभाया. बिहार शराब निषेध और आबकारी अधिनियम, 2016 के तहत बिहार के विभिन्न थानों में करीब 116,670 संबंधित मामले दर्ज किए गए हैं. 1,61,415 व्यक्ति गिरफ्तार किए गए हैं. सरकारी आंकड़ों के अनुसार कानून लागू होने के बाद से मार्च 2019 तक लगभग 50,63,175 लीटर अंग्रेजी और देसी शराब जब्त की गई है. अकेले 2019 में ही जनवरी से मार्च के बीच तकरीबन 2,25,586 लीटर अंग्रेजी शराब और 98,066 लीटर देसी शराब जब्त की गई. शराब की तस्करी बिहार में मोटा पैसा कमाने का जरिया बनी है. हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों से तस्करी करके शराब बिहार लाई जा रही है.

बहरहाल महात्मा गांधी के भारत आने के बाद पहले आंदोलन की प्रयोगशाला बिहार ही बना था. गांधी का सपना था नशामुक्त भारत. नशामुक्ति की दिशा में आगे बढ़कर बिहार को साबित करना होगा वास्तव में वहां से शुरू होने वाला जनांदोलन देश को हमेशा रास्ता दिखा सकता है.

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