दुनिया की रक्षा मंडी का उभरता कारोबारी भारत

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भारत जिसे अब तक दुनिया के सबसे बड़े रक्षा आयातक के रूप में ही जाना गया है, दुनिया की रक्षा मंडी में अपने स्वदेसी उत्पादों की सेल लगाई है और ग्राहक भी जुटाए हैं.

13 सितंबर 2019 का दिन भारतीय वायुसेना और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिडेट(एचएएल) के लिए एक महत्वपूर्ण दिन था. रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने बेंगलुरू में एचएएल द्वारा तैयार स्वदेसी लड़ाकू विमान तेजस में उड़ान भरी थी. रक्षा मंत्री करीब 30 मिनट हवा में रहे. वायुसेना के लिए यह दिन इसलिए खास रहा क्योंकि तेजस, रूसी मिग-21 बाइसन की जगह लेने वाला है. वही बाइसन जिससे विंग कमांडर अभिनंदन ने पाकिस्तान के एफ-16 को ढेर कर दिया था. एचएएल के लिए इसलिए खास कि इसे 83 तेजस बनाने का करीब 45 हजार करोड़ रुपए का ऑर्डर मिलने वाला है. जाहिर है इतनी रकम से एचएएल अपने बहुत से रिसर्च आगे बढ़ा सकेगा. देसी लड़ाकू जहाज में रक्षामंत्री आधे घंटे तक हवा में रहे, एचएएल के लिए इससे बड़ी बात क्या होती कि उसके प्रोडक्ट की ब्रांडिंग खुद देश के रक्षा मंत्री कर रहे हों?

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रक्षामंत्री के एक देसी जहाज में उड़ान भरने के पीछे कुछ रणनीति थी. उन्होंने उड़ान भरने के लिए तेजस को ही क्यों चुना, मीडिया से बात करते हुए उन्होंने इसका कारण भी बताया, “ तेजस को इसलिए चुना, क्योंकि यह देसी विमान है. मैं चाहता था कि देसी विमान में उड़ान भरूं. तेजस पूरी तरह से भारत में बना है और दुनिया के दूसरे देश भी इसे मांग रहे हैं. तेजस को एक्सपोर्ट करने का सिलसिला भी अब भारत ने शुरू कर दिया है.” बता दें कि स्वदेसी तेजस हल्का लड़ाकू विमान है, जिसे हिंदुस्तान एरोनोटिक्स लिमिटेड (HAL) ने तैयार किया है. वायुसेना ने 83 तेजस विमानों के लिए एचएएल को तो ऑर्डर दिया ही है अन्य देश भी अब इसकी डिमांड कर रहे हैं.

रक्षा मंत्रालय भारत के स्वदेसी या भारत में बने रक्षा उत्पादों के निर्यात को प्रोत्साहन देने के लिए एक नई रक्षा उत्पाद निर्यात लाइसेंस पॉलिसी तैयार कर रहा है जिसके तहत भारतीय कंपनियों को या विदेशी कंपनियों के साथ साझेदारी उपक्रम के तहत रक्षा निर्माण करने वाली भारत की कंपनियों को विदेशों से रक्षा ऑर्डर लेने संबंधी कई सहूलियतें दी जाएंगी जिस तरह यूरोप और अमेरिका अपने रक्षा निर्माताओं के लिए करते हैं. भारत के रक्षा व्यापार को देखते हुए यह जरूरी भी है. 2014 में भारत का रक्षा निर्यात मात्र 5.5 करोड़ डॉलर का था जबकि आयात 3.58 अरब डॉलर का. भारत के रक्षा निर्यात में पिछले तीन सालों में बहुत गति आई है. भारत के रक्षा उत्पादन विभाग के आंकड़े बताते हैं कि 2015 से 2018 के बीच भारत का रक्षा निर्यात 1500 करोड़ से बढ़कर 10,000 करोड़ के आसपास पहुंच गया है.

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भारत ने 2018-19 में करीब 80,000 करोड़ का रक्षा उत्पादन देश में किया उसमें से 11,000 करोड़ रुपए मूल्य की सामग्री निर्यात कर दी गई. यह रक्षा निर्यात की दिशा में एक उत्साहजनक कदम है.

अभी तक भारत का मुख्य रक्षा निर्यातक, सरकारी कंपनी ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड (ओएफबी) रहा है. ओएफबी के मुख्य निर्यातों में छोटे हथियार, गोला-बारूद, हथियारों के पुर्जे, केमिकल और विस्फोटक, पैराशूट, चमड़े और कपड़े से बनी रक्षा सामग्री रही है जिसका निर्यात करीब तीस देशों में होता है. इनमें थाईलैंड, मलेशिया, इंडोनेशिया, श्रीलंका, बांग्लादेश, जर्मनी, बेल्जियम, टर्की, मिस्र, ओमान, इजरायल, केन्या, नाइजीरिया, बोत्स्वाना, चिली, सूरीनाम और अमेरिका शामिल हैं.
चमड़े और कपड़े से बनी सामग्री, केमिकल, छोटे हथियारों और गोला-बारूद के आपूर्तिकर्ता से धीरे-धीरे आगे बढ़ता हुआ भारत छोटे युद्धपोत, हल्के हेलिकॉप्टर, मिसाइलों का निर्यातक भी बना और अब उसकी नजर लड़ाकू विमानों पर है.
मार्च 2011 में भारत ने मॉरिशस को पूरी तरह स्वदेशी तटरक्षक युद्धपोत बाराकुडा की बिक्री का सौदा किया था जिसे 2014 में मॉरिशस को सौंप भी दिया गया. मार्च 2017 में भारत ने म्यांमार के साथ 3.79 करोड़ डॉलर के पूरी तरह से भारतीय टॉरपीडो आपूर्ति का सौदा किया. ऐसे ही टॉरपीडो श्रीलंका और वियतनाम को भी बेचे गए. सितंबर 2017 में ओएफबी को उसका सबसे बड़ा निर्यात सौदा यूएई से मिला. 322 करोड़ के इस सौदे में ओएफबी को 155 मिमी तोपों के लिए 40,000 गोले की आपूर्ति करनी थी. इसके बाद अगस्त 2019 में यूएई ने ओएफबी को 50,000 और तोप के गोलों की आपूर्ति का ऑर्डर दिया.

इससे पहले भी भारत हथियारों की आपूर्ति करता रहा है लेकिन वे सौदे बहुत छोटे स्तर के रहे हैं. भारत अपने इन्सास रायफल ओमान और नेपाल को बेचता रहा है. इक्वाडोर, इजरायल और नेपाल की सेनाओं को भी भारत ने सैन्य और व्यवसायिक दोनों तरह के हल्के ध्रुव हेलीकॉप्टर भी बेचे हैं. अफगानिस्तान को चीता हेलीकॉप्टर, नेपाल को बुलेटप्रूफ जैकेट्स, सुखोई 30 एवियोनिक्स और एमआईजी के कल-पुर्जे मलेशिया को और जगुआर के एवियोनिक्स और कल-पुर्जों की आपूर्ति ओमान को होती रही है.

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मेक इन इंडिया प्रोजेक्ट के बाद भारत ने उन्नत लड़ाकू साजो-सामान के भारत में निर्माण पर खासा जोर दिया है. इसका उद्देश्य भारत की जरूरतों को पूरी करने के साथ-साथ उन देशों को भी इन हथियारों की आपूर्ति करना है जिनके साथ भारत रक्षा हित नहीं टकराते. इसीलिए नरेंद्र मोदी सरकार ने भारतीय कंपनियों को दुनिया के बड़े रक्षा निर्माताओं के साथ साझेदारी करके भारत में हथियार निर्माण को प्रोत्साहित करने पर जोर दिया है. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एक रक्षा निर्माताओं के कार्यक्रम में भारत के रक्षा निर्यात की महत्वाकांक्षाओं का खुलासा किया. सिंह ने कहा, “भारत 2025 तक अपने रक्षा उद्योग को 26 अरब डॉलर तक पहुंचाने के लक्ष्य के साथ आगे बढ़ रहा है. भारत की अर्थव्यवस्था को 2024 तक 5 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचाने के लक्ष्य को पूरा करने में रक्षा उत्पादन की पहचान सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में की गई है. इसके लिए रक्षा उत्पादन और रक्षा निर्यात को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार हर प्रकार की सुविधाएं देने को तैयार है और इस संदर्भ में बड़े स्तर पर तैयारी भी चल रही है.” रक्षा मंत्री ने बताया कि सरकार 2024 तक भारत के रक्षा निर्यात को 5 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य लेकर चल रही है. रक्षा बाजार में पांव जमाने और बड़ा खिलाड़ी बनने को बेकरार भारत की रक्षा टोकरी में कौन से उत्पाद हैं जो उसके महत्वाकांक्षी लक्ष्य को पूरा करने में मददगार होंगे.

भारत का सबसे ज्यादा जोर अपनी स्वदेसी मिसाइलों को बेचने पर है. पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ अपनी दोस्ती बढ़ाकर मोदी ने भारत के लिए मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था यानी एमटीसीआर की पूर्ण सदस्यता हासिल करने के साथ इसका रास्ता तैयार किया. एमटीसीआर मुख्य रूप से 300 किमी तक मार करने वाली और 500 किलोग्राम पेलोड ले जाने में सक्षम मिसाइलों और मानवरहित विमान प्रौद्योगिकी ड्रोन की खरीद-ब्रिकी पर नियंत्रण रखती है. भारत इस अहम समूह का 35वां सदस्य बन चुका है भारत के लिए अपनी मिसाइलें बेचने के विश्व बाजार के दरवाजे खुल गए हैं. भारत ने 90 प्रतिशत स्वदेशी तकनीक से मिसाइल क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल की है और इसके पास सतह से सतह, सतह से हवा और हवा से हवा में मार करने वाली कई मिसाइलें हैं जिनके दुनियाभर में खरीदार हैं.

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यही कारण है कि फिलहाल भारत के रक्षा निर्यातकों में जो कंपनी सबसे तेजी से आगे बढ़ रही है वह भारत डायनेमिक लिमिटेड. कंपनी जमीन से हवा में मार करने वाली आकाश मिसाइलों और एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइलों के कारोबार पर सबसे ज्यादा फोकस कर रही है. इसके लिए नीति तैयार की गई है और संभावित खरीदारों के साथ लगातार बात चल रही है. वियतनाम, तुर्की, कजाकिस्तान और कुछ अन्य देशों ने इसमें बहुत रूचि दिखाई है. उन देशों की जरूरतों के मुताबिक रद्दोबदल से जुड़ी कई स्तर की बातचीत हो भी चुकी है. भारत फिलहाल अपने 15 हथियारों के निर्यात पर सबसे ज्यादा फोकस कर रहा है. इसमें अर्जुन मार्क 2 टैंक, हर मौसम के लिए अनुकूल 70 किलोमीटर तक हवा से हवा में मार करने वाली अस्त्र मिसाइल, सोनार, हल्के लड़ाकू जहाज तेजस, अवाक्स टोही विमान, प्रहार मिसाइल, मिसाइलों के परीक्षण और टोह लेने में इस्तेमाल होने वाले पायलटरहित विमान अभ्यास, ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइल प्रमुख हैं. खबर है कि भारत रूस से एक-47 और 56 रायफलों की टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की बात पर भी कर रहा है ताकि उसका निर्यात किया जा सके. एके-रायफलों की दुनियाभर में बहुत मांग है.

दुनिया के सबसे बड़े हथियार आयातक देश के रूप में जाना जाने वाला भारत, रक्षा निर्यात में तेजी से आगे बढ़ रहा है. रक्षा सेवाओं के प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने डीआरडीओ की स्थापना दिवस के कार्यक्रम में कहा कि भारत अगला युद्ध देश में ही विकसित रक्षा तकनीक के साथ लड़ेगा और जीतेगा भी. भारत के लिए रक्षा अनुसंधान करने वाले मंच से नवनियुक्त रक्षा सेवाओं के प्रमुख की यह बात भारत के दुनिया के सबसे बड़े रक्षा आयातक के टैग से मुक्ति की छटपटाहट को तो दर्शाती ही है, रक्षा निर्यात में भारत की बढ़ती महत्वाकांक्षाओं को भी प्रतिबिंबित करती है.

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