
‘मुखिया जी, याद कर लें. एक करोड़ रुपये से अधिक की राशि से पंचायत का भवन आपको ही बनाना है.’ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शुक्रवार को जब सरकार के ‘हर घर नल का जल’ निश्चय एवं ‘हर घर तक पक्की गली-नालियां’ निश्चय कार्यक्रम में विभिन्न परियोजनाओं के उदघाटन और लोकार्पण कार्यक्रम में यह बात कही तो इसके राजनीतिक मायने निकाले जाने लगे हैं. पीने का साफ पानी और पक्की नालियों के निर्माण का यह कार्यक्रम पंचायती राज विभाग, नगर विकास एवं आवास विभाग, लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग द्वारा संयुक्त रूप से चलाया जा रहा है.
एक करोड़ वाले मुखियाजी, चुनाव में अब गिनती के दिन ही शेष हैं. पहले प्रवासियों की समस्याएं, फिर कोरोना और उसके बाद बिहार, तीन-तीन मोर्चों पर घिरने के बाद नीतीश कुमार दबाव में हैं. उनकी लोकप्रियता में लगातार गिरावट आई है. उनकी ही पार्टी के पुराने नेता और वर्तमान में मुजफ्फरपुर जिले की एक पंचायत के मुखिया, नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, “मुख्यमंत्री ने जो कहा उसमें कुछ भी नया नहीं है. गांवों में नीतीश कुमार ने पिछले 10 साल में जो लोकप्रियता अर्जित की थी आज वह सबसे निचले स्तर पर है. ग्रामीण जनता सरकार से बहुत नाराज है. मुखिया अपने स्तर से सहयोग कर रहे हैं लेकिन यह पर्याप्त नहीं है. मुखिया का घर खुद ही डूबा होगा तो वह क्या कहेगा?”
न्यूजऑर्ब ने विभिन्न दलों से जुड़े मुखियाओं से बात की. जो लब्बोलुआब था वह नीतीश सरकार के लिए शुभ संकेत तो नहीं है. दिल्ली के एक नामी कॉलेज से राजनीति विज्ञान के स्नातक और बिहार के एक युवा मुखिया बताते हैं, “सत्तारूढ़ दल से जुड़े मुखियाओं और पंचायत सदस्यों को लोगों से बहुत कुछ सुनना पड़ रहा है. यह फीडबैक सरकार को मिली है. गांवों के बूथ मैनेजमेंट की जिम्मेदारी आमतौर पर मुखिया संभालते हैं. हो सकता है कि सरकार ने भांप लिया हो कि अगर स्थिति ठीक नहीं रही तो जदयू के लिए बूथ मैनेजमेंट में दिक्कत आ जाएगी.”
यह पूछे जाने पर कि नीतीश कुमार के इस बयान कि ‘जबसे हमलोगों को काम करने का मौका मिला, तभी से हमने कहा है कि केवल हम ही सरकार नहीं हैं. ग्राम पंचायत भी सरकार है’ को धरातल पर कितना सही पाते हैं, के जबाव में मुखिया का कहना था,
“बेशक पंचायतों के पास आज पहले से अधिक अधिकार हैं लेकिन पंचायती राज व्यवस्था का तब माखौल उड़ जाता है जब महिला मुखिया की जगह ‘मुखियापति’ मीटिंगों में पहुंचते हैं. इसके अलावा पंचायत को अफसरशाही से इतना जूझना पड़ता है कि बात घूम-फिरके वहीं आ जाती है. जैसी ट्रेनिंग और जितना अधिकार होना चाहिए वह है नहीं. बहुत से मुखिया तो ऐसे हैं जिन्हें कुछ नहीं पता. वे बस अपने हिस्से का कमीशन टटोलकर फाइलों पर साइन कर देते हैं. उनके लिए यही पंचायती राज है.”
एक करोड़ वाले मुखियाजी, मुख्यमंत्री ने अपने संबोधन में एक और बात कही जो पंचायती राज व्यवस्था के बीच खींचतान को उजागर कर देती है. नीतीश कुमार ने सवालिया लहजे में कहा “पहले वार्ड के सदस्यों को कोई पूछता था? अब देख लीजिए. हमने हर वार्ड सदस्य को जिम्मेदारी दी गई है. वहीं मुखिया का भी काम पहले से बढ़ गया है. सबको काम करने का मौका मिला. सबलोग मिलकर चलिए, एक-दूसरे का सम्मान करिए.”
दरअसल 2017 में नीतीश कुमार एक सार्वजनिक सभा के दौरान राज्य के मुखियाओं पर भड़क गए थे. उन्होंने मुखियाओं पर पंचायतों में काम में अडंगा लगाने और लोगों को सरकार के खिलाफ लामबंद करने का आरोप लगाया था. प्रदेश में मुखियाओं के संगठन ने नीतीश सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था. उसके बाद से वार्ड के सदस्यों का रोल बढ़ा दिया गया. माना जाता है कि ऐसा मुखियाओं पर लगाम कसने के लिए किया गया.
नीतीश कुमार के बयान पर प्रदेश के राजनीतिक विश्लेषकों ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी है. कुछ का मानना है कि उन्होंने मुखियाओं को इशारों में समझा दिया कि आपके हाथ का एक करोड़ का बजट खिसक जाएगा अगर सरकार को सहयोग नहीं कर रहे. वार्ड के सदस्यों के अधिकारों की चर्चा करके उन्होंने अपनी एक बैकअप टीम तैयार करने की कोशिश की है. मुखिया द्वारा असहयोग की स्थिति में वार्ड सदस्य काम आ सकते हैं.
कुछ लोग तो इसपर चुटकी लेते हुए कहते हैं कि जब नरसिम्हा राव की सरकार खतरे में आ गई थी तो उन्होंने 1993 में सांसद विकास निधि शुरू कर दी थी और सांसदों को अपने क्षेत्र में खर्चने के लिए 10 लाख रुपए दिये जाते थे. जिसे बढ़ाकर बाद में एक करोड़ किया गया.
क्या सीएम की बात को नरसिंह राव सरकार की सांसद निधि योजना से जोड़कर देखा जाना चाहिए? इसके जवाब में मुखिया कहते हैं,
“इसका जबाव तो आप सीएम की बात में ही ढूढ़ सकते हैं. उन्होंने कहा कि जिन्हें काम की जानकारी और समझ नहीं है, वे उल्टा-पुल्टा बोलते रहते हैं. कुछ लोग गांवों में जाकर भड़काएंगे भी, दायें-बायें भी करेंगे हीं पर सबलोग याद रखिएगा पंचायत भवन में सरपंच और पंच के बैठने की जगह भी दी जा रही है. क्या आपको नहीं लगता कि सीएम बहुत कुछ कह गए? इसे पुरानी घटनाओं से जोड़कर देखना-समझना तो पत्रकारों और विश्लेषकों का उत्तरदायित्व है”.
