एक था डॉन मुख्तार अंसारी

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गुरुवार (27 अगस्त, 2020) को ट्वीट किया और उसमें माफिया डॉन मुख्तार अंसारी का खुलकर नाम लेते हुए यूपी के सारे अपराधियों को चेतावनी दी. मुख्यमंत्री ने लिखा मुख्तार अंसारी के काले-साम्राज्य के अंत का समय आ गया है. इसके गिरोह के 97 साथी पुलिस की हिरासत में हैं और ये कार्रवाई आगे भी जारी रहेगी.

लखनऊ विकास प्राधिकरण (एलडीए) के अधिकारी 200 पुलिसबलों और 20 जेसीबी के साथ लखनऊ के डालीबाग स्थित अंसारी की कोठी पर पहुंचे और कुछ ही देर में बंगला मिट्टी में मिल चुका था. कार्रवाई यहीं नही रूकी. अगले दिन यानी शुक्रवार को अंसारी के गढ़ मऊ में ग्रीनलैंड की जमीन पर बने एक अवैध बूचड़खाने को भी प्रशासन ने देखते ही देखते ध्वस्त कर दिया.

उत्तर प्रदेश में कानून-व्यवस्था की चिंताजनक स्थिति से योगी दबाव में हैं. रोजाना प्रदेश के हर कोने से अपराधियों द्वारा बेखौफ अपराध की खबरें आ रही हैं. विकास दूबे कांड में पुलिस और सरकार दोनों की पहले ही बहुत किरकिरी हो चुकी है. ऐसे में माना जा रहा है कि सरकार ने आतंक का पर्याय रहे डॉन मुख्तार अंसारी पर कार्रवाई करके एक संदेश देने की कोशिश की है कि जब डॉन नहीं बख्शे जा रहे तो दूसरे अपराधियों की क्या बिसात.

मुख्तार अंसारी पर सख्ती से आखिर क्यों एक मैसेज जा सकता है, इस बात को डॉन के कारनामों की फेहरिस्त से बेहतर समझा जा सकता है. ऐसा कोई अपराध नहीं है जिसे जरायम की दुनिया से सफेदपोश बने डॉन मुख्तार अंसारी ने अंजाम न दिया हो.

क्राइम की दुनिया में डॉन की दस्तक…

– 1988 की बात है. मऊ में मंडी परिषद की ठेकेदारी के लिए बोली लग रही थी. लोकल ठेकेदार सच्चिदानंद राय तब बड़े और दबंग ठेकेदार माने जाते थे. राय की सरेआम हत्या कर दी गई. खोजबीन हुई तो हत्या में एक नए-नए शख्स का नाम सामने आया. इसी दौरान एक पुलिस कॉन्स्टेबल राजेंद्र सिंह की हत्या बनारस में कर दी गई. इसमें भी मुख्तार का ही नाम सामने आया. मुख्तार अंसारी के नाम की चर्चा होने लगी थी. स्थानीय अपराधियों के साथ दुश्मन हुई और जमकर खून खराबा हुआ. 1980 से 1990 के बीच अपने कारनामों से मुख्तार अंसारी अब डॉन बन चुका था.

माफि‍या डॉन ब्रजेश सिंह से हुई दुश्‍मनी

मुख्तार से पहले डॉन ब्रजेश सिंह का बनारस और आसपास के जिलों में सिक्का चलता था. 1990 में गाजीपुर जिले के तमाम सरकारी ठेकों पर ब्रजेश सिंह के गैंग का कब्जा होने लगा. मुख्तार अंसारी जिसकी पहले ब्रजेश के साथ दोस्ती हुआ करती थी, उसने अपने हिस्से के लिए ब्रजेश को ललकारा. ब्रजेश सिंह से बचाने के लिए लोगों से हफ्तावसूली शुरू कर दी. यहीं से ब्रजेश सिंह के साथ इनकी दुश्मनी शुरू हो गई.
– 1991 में मुखबिरी के कारण चंदौली में पुलिस ने मुख्तार को दबोच लिया और बनारस लाया जाने लगा. लेकिन आरोप है कि रास्ते में दो पुलिस वालों को गोली मारकर वह फरार हो गया. हालांकि इसमें पुलिस की मिलीभगत की बात कही गई थी और कहानी फिल्मों में भी आई है.
– इसके बाद बनारस के आसपास के जिलों में सरकारी ठेकों, शराब के ठेकों, कोयला के काले कारोबार पर डॉन का कब्जा हो गया.

 – एक युवा पुलिस अधिकारी ने डॉन को सबक सिखाने की ठानी. नाम था उदय शंकर. डॉन से पंगा लेने के कारण 1996 में एएसपी उदय शंकर पर जानलेवा हमला में उनका नाम एक बार फिर सुर्खियों में आया.
– 1996 में डॉन ने सफेदपोश बनने की सोची. चुनाव लडे और पहली बार एमएलए बन गए. इसके बाद अपने कट्टर दुश्मन ब्रजेश सिंह का साम्राज्य ध्वस्त करने में जुट गया.

– 1997 में पूर्वांचल के सबसे बड़े कोयला व्यवसायी रुंगटा के अपहरण की खबर भारत के साथ-साथ विदेशी मीडिया में भी छप गई और फिर क्राइम की दुनिया में डॉन का सिक्का और जम गया.

– 2002 में ब्रजेश सिंह ने मुख्तार अंसारी के काफिले पर हमला कराया. इसमें मुख्तार के तीन लोग मारे गए लेकिन ब्रजेश सिंह को भी गोली लग गई. इसके बाद मुख्तार अंसारी को पूर्वांचल में टक्कर देने का साहस कोई नहीं कर पाया.

2005 में जेल

– अक्टूबर 2005 में मऊ जिले में हिंसा भड़की. मुख्तार पर कई आरोप लगे, हालांकि वे सभी खारिज हो गए. उसी दौरान उसने गाजीपुर पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और जेल में बंद हैं.
– मुख्तार की विरासत संभालने उनका बाई अफजाल अंसारी आगे आया. लेकिन भाजपा के कृष्णानंद राय से अफजाल अंसारी चुनाव हार गया. मुख्तार ने भाई को हराने वाले राय को अपने शार्प शूटरों मुन्ना बजरंगी और अतिकुर्रह्मान उर्फ बाबू की मदद से उनके 5 साथियों समेत हत्या करवा दी. हमलावरों ने 6 एके-47 राइफलों से 400 से ज्यादा गोलियां चलाई थी। मारे गए लोगों के शरीर से 67 गोलियां बरामद की गई थी. हमले का एक महत्वपूर्ण गवाह शशिकांत राय 2006 में रहस्यमई परिस्थितियों में मृत पाया गया था. उसने कृष्णानंद राय के काफिले पर हमला करने वालों में से अंसारी और बजरंगी के दो शूटरों को पहचान लिया था.

– 2010 में अंसारी पर राम सिंह मौर्य की हत्या का आरोप लगा. मौर्य, मन्नत सिंह नामक एक स्थानीय ठेकेदार की हत्या का गवाह था. मुख्तार और अफजाल दोनों भाइयों को 2010 में बसपा ने निष्कासित कर दिया.

– 2012 में महाराष्ट्र सरकार ने मुख्तार पर मकोका लगाया. उसके खि‍लाफ हत्या, अपहरण, फिरौती जैसे कई आपराधिक मामले दर्ज हैं.

जेल में मुख्तार को मारने की दी गई थी सुपारी

अपना साम्राज्य ध्वस्त हो जाने से बिफरे ब्रजेश सिंह ने मुख्तार के जेल में होने के कारण फिर से गैंग को जमा करना शुरू किया हालांकि उसे भी उडीसा से गिरफ्तार कर लिया गया था. ब्रजेश सिंह ने लंबू शर्मा को मुख्तार को मारने के लिए 6 करोड़ की सुपारी दी थी. इसका खुलासा साल 2014 में लंबू शर्मा की गिरफ्तारी के बाद हुआ था. मुख्तार को जेल के भीतर या कोर्ट में पेशी के दौरान ठिकाने लगाने की योजना थी पर लंबू पकड़ा गया. इसके बाद से जेल में अंसारी की सुरक्षा बढ़ा दी गई थी.

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