कहीं पे निगाहें, कहीं पर निशानाः पवन वर्मा का लेटर बम

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जदयू नेता द्वारा अपने पार्टी के मुखिया की खिंचाई पार्टी की अंदरुनी खटपट का नतीजा है या फिर भाजपा पर दबाव बनाने की एक सोची-समझी रणनीति जिसमें पवन वर्मा तो बस रंगमंच की कठपुतली भर हैं, डोर तो नीतीश के हाथ में है.

राजनीति का बड़ा लोकप्रिय जुमला है- ‘नाखून कटाकर शहीद होना’. आम बोलचाल की भाषा में इसे न हर्र लगे न फिटकरी, रंग चढ़ा चोखा भी कहते हैं. कहने का मतलब अपने पास से कुछ गया नहीं और महानता का तमगा मिल गया सो अलग. जनता दल युनाइटेड (जदयू) के उपाध्यक्ष और पूर्व राज्यसभा सांसद पवन के वर्मा के पिछले कुछ महीनों के रूख को गौर से देखें तो यह कहावत चरितार्थ होती है. पवन वर्मा कभी जदयू प्रमुख नीतीश कुमार के करीबी हुआ करते थे और उनकी ही कृपा से राज्यसभा पहुंचे, पार्टी में बड़ा ओहदा हासिल किया. लेकिन वह वक्त कुछ और था, यह वक्त कुछ और है. आजकल वर्मा नीतीश की गुडबुक में नहीं हैं. और ऐसी ही गति पार्टी में अचानक नंबर दो की हैसियत में पहुंच गए पीके के नाम से प्रसिद्ध चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की भी है. दोनों के बारे में कहा जाता है कि अब वे नीतीश के दुलारे नहीं रहे. दोनों में एक और समानता है कि वे मोदी सरकार की नीतियों के बहाने नीतीश पर हमले बोलते हैं.

नागरिकता संशोधन विधेयक पर जदयू ने केंद्र सरकार का साथ दिया तो पीके और पवन के वर्मा दोनों को नीतीश को घेरने का मौका मिल गया. उन्होंने इसके लिए ट्विटर और अखबारों के लेख का सहारा लिया. दोनों ने सीएए को समर्थने देने के नीतीश कुमार के फैसले पर हैरानी जताई और उनसे इस पर अपनी स्थिति स्पष्ट करने को कहा. जदयू ने साफ कर दिया कि उसका जो रूख था वह था. नीतीश ने पीके को मिलने बुलाया. बंद कमरे में बैठक हुई और नीतीश के स्वभाव को करीब से जानने वालों को लगता था कि वह पीके पर तत्काल एक्शन लेंगें लेकिन ऐसा हुआ नहीं. पीके मुख्यमंत्री आवास से मुस्कुराते हुए निकले और नीतीश ने भी कहा कि उन्होंने अपनी बात कही- मैंने बातें ध्यान से सुनीं. यानी नीतीश ने नाखून कटाकर शहीद का होने का मौका न दिया. हालांकि पहले यही कहा जा रहा था कि नीतीश खुद भी मोदी सरकार की नीतियों से परेशान हैं और आगामी विधानसभा चुनावों को देखते हुए वह इस गुणा-भाग में लगे हैं कि भाजपा के साथ रहने में फायदा है या भाजपा से छिटकने में फायदा है. यदि साथ रहते हैं तो फिर कैसे भाजपा की बाहें मरोड़कर ज्यादा से ज्यादा सीटें हासिल की जाएं और उसी रणनीति के तहत नीतीश कभी पीके तो कभी पवन के का इस्तेमाल कर रहे हैं.

पर अब की स्थितियां कुछ और संकेत दे रही हैं और जदयू के बिहार प्रदेश अध्यक्ष जो कि नीतीश के विश्वासपात्र हैं की मानें तो पीके और पवन के पर अनुशासनात्मक कार्रवाई हो सकती है.

 पवन के वर्मा ने नीतीश कुमार को एक पत्र लिखा है जिसे उन्होंने सोशल मीडिया पर शेयर किया है. इस पत्र में उन्होंने दिल्ली चुनाव में भाजपा के साथ गठबंधन करने के लिए नीतीश कुमार को खरी-खोटी सुनाई है. पत्र में उन्होंने जो लिखा है उससे साफ होता है कि नागरिकता कानून के मुद्दे पर भाजपा और जेडीयू में दरार आई थी और वह लगातार बढ़ती ही जा रही है. जेडीयू के नेता मोदी सरकार पर हमला बोलने के बहाने नीतीश कुमार को भी निशाने पर लेते रहते हैं.

पवन वर्मा ने पत्र में लिखा है- ‘आपने कई मौकों पर भाजपा-आरएसएस पर सवाल उठाए हैं. अगस्त 2012 में तो आपने कहा था कि नरेंद्र मोदी और उनकी नीतियां देश के लिए नुकसानदायक हैं. जब आप महागबंधन के नेता थे तो आप आरएसएस मुक्त भारत की बात करते थे. आप जब 2017 में अपना रास्ता बदलते हुए दोबारा भाजपा से मिल गए तो भी भाजपा के लिए आपके विचार नहीं बदले. आपने कई मौकों पर मुझे बताया है कि कैसे भाजपा ने आपको परेशान किया है. आपने कई मौकों पर ये स्वीकार किया है कि भाजपा देश के खतरे की दिशा में ले जा रही है. आपने ही तो कहा था कि भाजपा संस्थाओं को बर्बाद कर रही है. मेरी ये समझ नहीं आ रहा है कि जेडीयू बिहार के बाहर भी भाजपा को अपना समर्थन क्यों दे रही है, जबकि भाजपा की बेहद पुरानी सहयोगी पार्टी अकाली दल भी ऐसा नहीं कर रही है. वो भी उस समय में जब भाजपा सीएए-एनआरसी-एनपीआर के जरिए समाज को बांटने वाला एजेंडा लेकर आगे बढ़ रही है. इन सबको देखते हुए मुझे लगता है कि जेडीयू को ये बताना जानिए कि पार्टी का संविधान क्या कहता है? पार्टी के लीडर की निजी सोच क्या है और वह पब्लिक में क्या सोच रखते हैं?

उनकी इस चिठ्ठी को बिहार के राजनीतिक गलियारे में लेटर बम कहा जा रहा है. अब सवाल उठता है कि क्या नीतीश कुमार सीएए को लेकर मोदी से नाराज हैं या फिर पवन वर्मा ने अपनी भड़ास निकालने के लिए बम फोड़ा है. केंद्रीय में मंत्रिमंडल में उचित भागीदारी न मिलने से आहत नीतीश ने मोदी सरकार में शामिल होने से मना कर दिया था और उसके बाद से दोनों दलों के बीच बहुत तल्खी देखी गई थी. झारखंड चुनावों में यह तल्खी और बढ़ गई लेकिन सीएए पर भाजपा का साथ देने से लगा कि शायद सुलह हो गई है. लेकिन इस लेटर बम की मानें तो यही लगता है कि मोदी और नीतीश कुमार के बीच सब ठीक नहीं है. बिहार में गठबंधन शायद दोनों दल की सिर्फ एक मजबूरी है और दोनों एक दूसरे का जितना फायदा उठाया जा सकता है उतना उठा लेना चाहते हैं. आगे की रणनीति आगे देखी जाएगी.

नीतीश के स्वभाव को देखते हुए वह सवाल बार-बार उठ जाता है कि कहीं नीतीश पीके और पवन के कंधे पर रखकर अपनी बंदूक तो नहीं चला रहे! जाहिर है निशाना मोदी होंगे. इसी साल के अंत तक बिहार में चुनाव होने हैं. लोकसभा चुनाव में भी भाजपा ने अपनी जीती हुई सीटें छोड़कर जेडीयू के साथ बराबरी की साझेदारी की थी. अब भाजपा विधानसभा में भी वही फॉर्मूला दोहराने को कह सकती है लेकिन उद्धव ठाकरे ने जिस प्रकार आंखें दिखाईं और भाजपा को सबक सिखाने के लिए धुर विरोधियों से जाकर मिल गए उससे एनडीए के गठबंधन सहयोगियों के हौसले बढ़े हुए हैं तो भाजपा रक्षात्मक हो गई है. नीतीश इसी का फायदा उठा लेना चाहते हैं. ऐसा इसलिए भी माना जा रहा है क्योंकि इससे पहले प्रशांत किशोर ने कहा था बिहार में भाजपा-जेडीयू आधी-आधी सीटों पर चुनाव नहीं लड़ सकतीं. उनका साफ-साफ कहना था कि बिहार में भाजपा छोटी पार्टी है, जबकि बड़े भाई की भूमिका में जेडीयू है. इसलिए इस गठबंधन में अधिक सीटें जेडीयू को मिलनी चाहिए. तब जो दबाव प्रशांत किशोर ने बनाया था, अब वही दबाव पवन वर्मा बना रहे हैं. देखना दिलचस्प रहेगा कि बिहार चुनाव में दोनों के बीच सीटों का बंटवारा कैसे होता है, या वहां भी महाराष्ट्र की तरह गठबंधन टूटता है.

हालांकि घटनाओं में कुछ बदलाव हुए हैं जो अलग संकेत भी देते हैं. नीतीश ने दिल्ली चुनावों के लिए पार्टी के स्टार प्रचारकों की जो लिस्ट जारी की है उससे पीके और पवन के वर्मा को बाहर रखा गया है. प्रदेश अध्यक्ष ने कार्रवाई के संकेत दे दी दिए हैं. उस पर प्रतिक्रिया देते हुए पवन वर्मा ने भी इशारों-इशारों में बता दिया है कि उनके पास भी राजनीतिक ठौर की कमी नहीं है. खैर, जदयू और नीतीश ज्यादा लंबे समय तक इस सस्पेंस को बनाए नहीं रख सकते क्योंकि इससे पार्टी में आपसी बयानबाजी शुरू हो जाएगी जिससे राजद और कांग्रेस को नीतीश पर हमले के नए मौके मिलेंगे. चुनावी साल में इतना रिस्क नीतीश लेंगे, ऐसा लगता नहीं है. बस चंद दिनों में सब दूध का दूध, पानी का पानी हो जाएगा.

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