नए राजद की नई कहानीः रघुवंश सिंह हो गए लोटाभर पानी

लालू प्रसाद के बड़े सुपुत्र तेज प्रताप यादव ने नाराज चल रहे राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के वरिष्ठ नेता और लालू के पुराने साथी रघुवंश प्रसाद सिंह के पार्टी छोड़ने की चर्चा पर टिप्पणी की. तेज प्रताप ने कहा कि रघुवंश बाबू आरजेडी के समंदर में केवल एक लोटा पानी भर हैं. एक लोटा पानी निकल जाएगा तो समंदर को क्या फर्क पड़ेगा?

तेज प्रताप की टिप्पणी जले हुए रघुवंश बाबू पर नमक छिड़कने जैसी रही. रांची में जेल में बंद लालू ने भांप लिया कि उनके पुत्र का यह बयान पार्टी के लिए भारी पड़ सकता है. वे डैमेज कंट्रोल में जुट गए और फौरन तेज प्रताप को हाजिर होने का फरमान सुनाया है और. लेकिन जो डैमेज हो चुका है उसके कंट्रोल होने की ज्यादा उम्मीद लगती नहीं है. पूरी घटना को सिलसिलेवार समझते हैं.

बाहुबली राम किशोर सिंह उर्फ रामा सिंह और रघुवंश प्रसाद सिंह की प्रतिद्वंद्विता जगजाहिर है. दोनों ही राजपूत नेता हैं और वैशाली लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. रामा सिंह ने 2014 में वैशाली से लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा और राजद के रघुवंश प्रसाद को हराया भी.

2019 के चुनाव में उनकी जगह उनकी पत्नी वीणा देवी को टिकट दिया गया और वह भी जीतीं. लेकिन लोजपा से उनका नाता टूट चुका है और कयास लगाए जा रहे थे कि रामा सिंह कोई बड़ी पार्टी ज्वाइन कर सकते हैं. 22 जून को तेजस्वी यादव की बाहुबली रामा सिंह के साथ मुलाकात हुई. इससे नाराज रघुवंश बाबू ने 23 जून को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया. लालू ने इस मामले में दखल दिया और तेजस्वी को अपना फैसला बदलना पड़ा.

राज्य में विधानसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है. राजद के संकटमोचक रहे डॉ. रघुवंश सिंह को खोने का रिस्क पार्टी उठा नहीं सकती थी. इसलिए मान-मनौव्वल की कोशिशें चल रही है पर रघुवंश सिंह टस से मस न हुए.

इसी बीच 25 अगस्त को रामा सिंह ने ऐलान कर दिया कि वे अगस्त के आखिर में औपचारिक रूप से राजद ज्वाइन कर लेंगे. उन्होंने कहा कि पार्टी के नेता तेजस्वी यादव और प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह की ओर से हरी झंडी उन्हें बहुत पहले मिल चुकी है. यानी रामा सिंह खुद को राजद में ही मान रहे थे, बस औपचारिकता की कमी थी.

इस घोषणा के साथ ही रामा सिंह ने हमला बोलकर आग में भरपूर घी डाल दिया है. उन्‍होंने कहा कि रघुवंश सिंह उनसे 1990 से लोकसभा से लेकर विधानसभा तक चुनाव में हारते रहे हैं. उनसे मेरी कोई व्‍यक्तिगत समस्‍या नहीं है लेकिन वे बड़े जनाधार वाले नेता होने का भ्रम पाले बैठे हैं. अगर रघुवंश प्रसाद सिंह राजद छोड़ते हैं तो इससे पार्टी की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता है. तेज प्रताप ने भी लोटा भर पानी कहके रही-सही कसर पूरी कर दी.

हालांकि रघुवंश सिंह की नाराजगी के और भी कारण रहे हैं, रामा सिंह की एंट्री तो तात्‍कालिक कारण बना है. उन्‍होंने जून में पार्टी के उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा तब दिया था जब वे पटना के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्‍थान में कोरोना संक्रमण का इलाज करा रहे थे. लालू प्रसाद यादव ने उनका इस्‍तीफा मंजूर नहीं किया है.

रघुवंश सिंह फिर बीमार हैं. फिलहाल वे दिल्ली एम्स में इलाज करा रहे हैं. तेजस्वी उनसे मिलने एम्स भी गए थे लेकिन वे नहीं माने. अब खुद लालू प्रसाद यादव ने डैमेज कंट्रोल की कोशिश शुरू की है क्योंकि रघुवंश प्रसाद की छवि एक साफ-सुथरे नेता की है.

रघुवंश प्रसाद सिंह पहले भी नाराज होते व मानते रहे हैं, लेकिन अब तक की कहासुनी से लगता है कि तीर कमान से निकल चुका है. उनके जेडीयू में शामिल होने की भी चर्चा है. जेडीयू के नेता उनके पक्ष में बयानबाजी करते हुए उनके लिए रेड कारपेट बिछा रहे हैं. अब देखना होगा कि क्या लालू साफ-सुथरी छवि वाले अपने पुराने विश्वस्त साथी को ही पार्टी में रखना चाहते हैं या फिर बाहुबली पर दांव खेलते हैं.  

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