नीतीश का खेल बिगाड़ने को बेताब हैं चिराग

बिहार में एक शब्द बड़ा प्रसिद्ध है- महीनका मार. यानी बड़ी खामोशी से और बड़ी सफाई से ऐसा प्रहार कि दुश्मन तिलमिलाकर रह जाए. बिहार चुनाव में चिराग पासवान वही ‘महीनका’ मार जदयू पर कर रहे हैं, वह भी लगातार. वह क्या चाहते हैं इसका संकेत मंगलवार के उनके ट्वीट से साफ है.

चिराग ने ट्वीट में लिखा था- अगली सरकार बनते ही सात निश्चय योजना में हुए भ्रष्टाचार की जांच कर सभी दोषियों को जेल भेजा जाएगा व लम्बित राशि का तुरंत भुगतान किया जाएगा ताकि अधूरे पड़े कार्य पूरे हो सकें. सात निश्चय योजना मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का महत्वाकांक्षी संकल्प है जो उन्होंने 2015 में जताया था और उसका पार्ट-2 का खाका इस साल चुनाव की घोषणा होने के कुछ घंटों के अंदर मीडिया के सामने रखा था.   

चिराग पासवान जिस तेजी से नीतीश का खेल बिगाड़ने के मिशल पर बढ़ रहे हैं वह एक नई तरह की राजनीति की झलक है. एनडीए में हैं लेकिन एनडीए से चुनाव नहीं लड़ रहे लेकिन एनडीए के सभी दलों के खिलाफ भी नहीं लड़ रहे और चुनाव के बाद एनडीए के ही एक दल के साथ सरकार बनाने के दावे कर रहे हैं. बहुत कुछ अमिताभ बच्चन के कच्चा पापड़, पक्का पापड़ जैसा लगता है. बोलते जुबान लड़खड़ाती है सोचते दिमाग चकरा जाता है. लेकिन चिराग ने नीतीश को चक्कर में डाल दिया है. 

लोजपा अध्यक्ष एनडीए के सीट बंटवारे के बाद से भाजपा और जदयू के पांच बडे़ नेताओं को अपने दल में शामिल कर चुके हैं और उन्हें पार्टी का सिंबल दे चुके हैं.

लोजपा की झोली में आने वाले बड़े नेताओं के बारे में जानते हैं.

भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष राजेंद्र सिंह अब लोजपा के टिकट पर दिनारा से चुनाव लड़ेंगे. राजेंद्र सिंह ने 2015 में इसी सीट से चुनाव लड़ा था लेकिन महागठबंधन के प्रत्याशी और जदयू उम्मीदवार जय कुमार सिंह से चुनाव हार गए थे. उन्हें बिहार का सीएम मैटिरयल भी कहा जाता था.

राजेंद्र सिंह संघ के प्रचारक रहे हैं. 2015 के चुनाव में, तो यहां तक चर्चा थी कि अगर वह जीतते हैं, तो भाजपा मनोहर लाल खट्टर की तरह उन्हें सीएम बना सकती है. 2015 में यह चर्चा इसलिए थी कि राजेंद्र सिंह चुनावी मैदान में उससे पहले कभी नहीं उतरे नहीं थे. वे संघ के समर्पित प्रचारक ही रहे. उनके प्रचार के लिए संघ और एबीवीपी के बड़े-बड़े नेता पहुंचे थे. झारखंड चुनाव के दौरान इन्होंने चुनाव प्रबंधन का कार्य भी संभाला था.

राजेंद्र सिंह की ही तरह उसी जिले से भाजपा के एक और वरिष्ठ नेता और नोखा के पूर्व भाजपा विधायक लोजपा में चले गए हैं. चौरसिया भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय सचिव और उत्तर प्रदेश में पार्टी के सह-प्रभारी रहे हैं. नोखा सीट से तीन बार विधायक रहे चौरसिया को नीतीश के व‍िरोधियों में गिना जाता है. नोखा से लगातार तीन बार 2000, 2005 और 2010 में जीत चुके हैं. 2015 का चुनाव हार गए थे और इस बार नोखा सीट जदयू के खाते में चली गई है.

भाजपा की एक और पूर्व विधायक उषा विद्यार्थी भी लोजपा में आ गई हैं. वे पालीगंज सीट से चुनाव लडेंगी जिसका उन्होंने पहले प्रतिनिधित्व किया है. पालीगंज सीट पर जदयू ने जो प्रत्य़ाशी दिया है उनकी छवि अच्छी नहीं है. भाजपा के स्थानीय नेता उसका विरोध कर रहे हैं. जाहिर है उषा विद्यार्थी को मदद मिलेगी.

झाझा से भाजपा के विधायक रवींद्र यादव ने भी लोजपा के टिकट पर ताल ठोंकने का फैसला किया है. सीटिंग विधायक होने के बावजूद समझौते में झाझा की सीट जदयू के खाते में चली गई. नाराज रवींद्र यादव ने लोजपा से ताल ठोकने का फैसला किया है. यादव अपने क्षेत्र के लोकप्रिय नेता हैं. उन्हें स्थानीय भाजपा कार्यकर्ताओं का पूरा समर्थन प्राप्त है. जाहिर वे भी जदयू का खेल खराब करेंगे.  

चिराग ने भाजपा के अलावा जदयू में भी सेंध लगाई है. पूर्व मंत्री भगवान सिंह कुशवाहा भी जगदीशपुर सीट से लड़ने के लिए लोजपा में शामिल हो गए हैं. यह सीट तो समझौते में जदयू के खाते में ही है लेकिन नीतीश कुमार ने उनका टिकट काट दिया था. भगवान सिंह को कुशवाहा समाज का बड़ा नेता माना जाता है. जगदीशपुर में दुसाध जाति के मतदाता अच्छी खासी तादात में है. दुसाध वोटर लोजपा के मूल वोट बैंक माने जाते हैं.  

Leave a Reply

Related Posts