पांच दशक के ख़ून-खराबे का अंतः बोडो एग्रीमेंट 2020…

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अलग बोडो लैंड की मांग के लिए हिंसक संघर्ष के पांच दशक ने तीन हजार बेगुनाह जानें ली हैं. नया समझौते के साथ भारत के उत्तर-पूर्व में शांति का नया सबेरा हुआ है.

भारत सरकार और असम में अलग बोडो राज्य की मांग करने वाले विद्रोही गुट के बीच की समझौता वार्ता लगता था कि अब किसी निर्णायक मोड़ पर पहुंच जाएगी कि इसी बीच 24 नवंबर, 2019 को भारत सरकार ने घोषणा की कि नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडो लैंड यानी NDFB पर प्रतिबंध को 5 साल के लिए और बढ़ा दिया. असम में एनआरसी का प्रयोग उम्मीदों पर खरा नहीं उतरने के बाद इसके केंद्र सरकार, खासतौर से अमित शाह की अगुवाई वाली गृह मंत्रालय के लिए एक और बड़े झटके के रूप में देखा जा रहा था. लेकिन शाह कह रहे थे कि बातचीत सही दिशा में जा रही है और देर-सबेर बात बनेगी भी. आखिरकार करीब डेढ़ महीने बाद नए साल में असम से अच्छी खबर आ ही गई. आखिरी बोडो उग्रवादी गुट NDFB-S ने 11 जनवरी को सरकार के सामने समर्पण की घोषणा कर दी. गुट के करीब 50 लड़ाकों ने म्यांमार का अपना बेस छोड़ा और चीफ बी साओराइग्वारा के साथ भारत-म्यांमार सीमा के पास आत्मसमर्पण कर दिया.

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गुवाहाटी में औपचारिकताओं के बाद ये लोग नई दिल्ली के लिए निकल गए. 24 जनवरी को गुवाहाटी हाईकोर्ट की एक विशेष डिविज़न बेंच ने रंजन दैमारी को चार हफ्तों के लिए बेल पर रिहा कर दिया. 25 जनवरी को उन्हें जेल से सीधे गुवाहाटी के हवाईअड्डे ले जाया गया, जहां से उन्हें दिल्ली लाया गया. तभी से लग रहा था कि बोडो गुटों के साथ शांति समझौता होने ही वाला है. इस प्रकार 27 जनवरी को अलग बोडो राज्य की मांग को लेकर 50 सालों से चल रहा विवाद समाप्त हो गया. केंद्र, असम और बोडो उग्रवादियों के प्रतिनिधियों ने ‘2020 बोडो अग्रीमेंट’ पर हस्ताक्षर किए.

50 साल पुराने एक खूनी संघर्ष, जिसमें तीन हजार निर्दोषष लोगों, खासकर आदिवासियों की जान गई है, की समाप्ति इस नए दशक की एक बड़ी उपलब्धि मानी जाएगी. इस समझौते पर केंद्र और असम सरकार के साथ-साथ सेना ने भी खुशी जताई. तो क्या था यह बोड़ो विवाद. और क्या है इस समझौते का मतलब, इसे सरल शब्दों में बिंदुवार समझते हैं.

बोडोलैंड विवाद क्या है?

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बोडो जनजाति असम में सबसे बड़ा आदिवासी समूह है. बोडो असम की जनसंख्या का 5-6 फीसदी हैं. असम में चार ज़िले कोकराझार, बक्सा, उदलगुड़ी, चिरांग बोडो टेरिटोरियल एरिया डिस्ट्रिक्ट यानी BTAD के तहत आते हैं. यहां कई बोडो जनजातियां बसती हैं. प्लेन ट्राइबल्स काउंसिल ऑफ असम (PTCA) के तहत 1966-67 में अलग बोडो राज्य ‘बोडोलैंड’ की मांग उठाई गई. यह एक राजनीतिक संगठन था.

सबसे पहले अवैध प्रवासियों को मुद्दा बनाकर 1979 में असम आंदोलन शुरू हुआ. 1985 तक चले इस आंदोलन का अंत तब हुआ, जब राजीव गांधी ने ऑल असम स्टूडेंट यूनियन (AASU) और असम सरकार को साथ बिठाकर एक असम अकॉर्ड पर दस्तखत कराए. असम आंदोलन के तहत असमिया संस्कृति और पहचान को सहेजने का वादा किया गया. बोडो गुटों की मांग भी संस्कृति और पहचान की रक्षा की ही थी. जो एनआरसी तैयार हुआ है उसकी पृष्ठभूमि इसी असम अकॉर्ड में है जिस पर न्यूजऑर्ब360 में विस्तार से बताया गया था जिसे आप यहां पढ़ सकते हैं.

पहली बार कब उठी थी पृथक बोडोलैंड की मांग, कब लिया हिंसक मोड़?

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ऑल बोडोस स्टूडेंट्स यूनियन (ABSU) ने 1972 में अलग बोडोलैंड राज्य की मांग को लेकर आंदोलन शुरू किया था. इसी तरह, प्लेन ट्राइबल काउंसिल ऑफ असम (PTCA) ने 1974 में बोडो आबादी वाले एक अलग राज्य या केंद्र शासित प्रदेश की मांग की. ABSU ने मैदानी इलाके के जनजातियों के लिए एक अलग राज्य की मांग को लेकर 1987 में हिंसक आंदोलन शुरू किया. 1989 में एक हजार घंटे का असम बंद का आह्वान किया गया. 1989 में हिंसा की 1488 घटनाओं में 60 सुरक्षाकर्मी शहीद हो गए जबकि 102 ABSU काडर सहित 550 लोग मारे गए. 1991 के बाद से बोडो क्षेत्र में उग्रवाद और जातीय हिंसा में 2,829 आम लोगों की मौत हो गई, जबकि 239 सुरक्षा कर्मी शहीद हो गए. इस अवधि में बोडो के 939 काडर भी मारे गए.

बोडो समझौते का इतिहास?

2020 का समझौता बोडो आंदोलन को समाप्त करने की दिशा में तीसरा असम समझौता है और इससे पहले दो बार फरवरी 1993 और फरवरी 2003 में भी समझौते हुए थे. 1993 का समझौता भारत सरकार, राज्य सरकार, ABSU और बोडो पीपल्स ऐक्शन कमिटी के बीच हुआ था जिसमें बोडोलैंड ऑटोनोमस काउंसिल के गठन का प्रावधान था.

ठीक 20 साल बाद अटल बिहारी वायजपेयी सरकार की कोशिशों से 20 फरवरी 2003 को दूसरा समझौता हुआ जिसके तहत संविधान की छठी अनुसूची के तहत BTC की स्थापना की गई. यह समझौता केंद्र सरकार, असम सरकार और बोडो लिबरेशन टाइगर्स (BLT) के बीच हुआ था. समझौते के अनुसार, कोकराझार, बाक्सा, उदालगुरी और चिरांग जिलों को मिलकर BTAD का गठन किया गया. BTC को 40 विषयों के संबंध में विधायी अधिकार दिए गए. इसके लिए पहले एक 12 सदस्यीय काउंसिल बनाई गई. 13 मई 2005 और फिर नवंबर 2005 के उप-चुनावों के बाद से एक 40 सदस्यीय समिति विकास कार्यों की निगरानी कर रही थी. इसके द्वारा किए गए कार्यों के कारण बोडो उग्रवादियों का आधार लगातार घट रहा था और हताशा में वे बेकसूरों की हत्याएं कर रहे थे. जन समर्थन मिलने के बाद असम सरकार भी सेना के साथ मिलकर सख्ती बरतने लगी थी. जिससे उग्रवादियों के हौसले पस्त हो रहे थे. 2020 के बोडो समझौते के तहत इस समस्या के हमेशा के लिए खत्म होने की उम्मीद की जाती है.   

‘2020 बोडो अग्रीमेंट के क्या मायने हैं?

समझौते के तहत उग्रवादी संगठन NDFB के 1550 हथियारबंद विद्रोहियों ने 30 जनवरी को 500 हथियारों के साथ आत्‍मसमर्पण किया और संगठन के विभिन्न गुटों जैसे NDFB/P, NDFB/RD, NDFB/S ने देश की मुख्यधारा में शामिल होने का फैसला किया. सरकार ने वादा किया है कि आत्मसमर्पण करने वाले काडर का पुनर्वास किया जाएगा. खुद प्रधानमंत्री ने इस पर निगरानी बनाए रखी. इसके तहत बोडो क्षेत्रों के विकास के लिए तीन वर्षों में 1500 करोड़ रुपये का विकास पैकेज दिया गया. मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेज आदि खोलने का वादा किया है ताकि बोडो क्षेत्र हथियार को छोड़कर उच्च शिक्षा में रचे बसे. इस तरह की कई और लोकप्रिय घोषणाएं हुई हैं. प्रधानमंत्री ने बोड़ो आतंकियों को उदाहरण के रूप में पेश करते हुए कश्मीरी आतंकवादियों और नक्सलियों से भी मुख्यधारा में शामिल होने का आह्वान किया.

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किसके-किसके बीच हुआ है बोडो अग्रीमेंट 2020?

इस समझौते में केंद्र सरकार, राज्य सरकार के साथ बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल, एबीएसयू, एनडीएफबी का गोविंदा बासूमातरी घटक, एनडीएफबी का धीरेंद्र बोड़ा घटक, एनडीएफबी का रंजन दायीमारी घटक, एनडीएपएभी का सरायगारा घटक, यूनाइटेड बोडो पीपल्स ऑर्गनाइजेशन (यूबीपीओ) शामिल है.

बोडो समुदाय की सांस्कृतिक पहचान के लिए सरकार का संकल्प

बोडो समुदाय के सामाजिक, सांस्कृतिक, भाषायी विषयों को सुरक्षित किया जाएगा. जनजातियों के भूमि अधिकारों का सरंक्षण होगा. जनजातीय क्षेत्रों का तेजी से विकास किया होगा. उपेन्द्रनाथ ब्रह्मा के नाम पर कोकराझार जिले में सांस्कृतिक परिसर की स्थापना होगी. प्रधानमंत्री ने कोकराझार की रैली में कहा कि वह उपेन्द्रनाथ ब्रह्मा ने जिस आदर्श बोडोलैंड का सपना देखा था उसे पूरा करने के लिए बोडो आबादी के साथ खड़े हैं. बोडो आंदोलन के छात्र नेता और सामाजिक कार्यकर्ता उपेंद्रनाथ की मृत्यु के बाद उन्हें बोडोफा यानी बोडो के पिता की उपाधि दी गई.

कौन से प्रमुख प्रशासनिक बदलावों को मंजूरी दी गई है?

बोडोलैंड टेरिटोरियल एरिया डिस्ट्रिक्ट (BTAD) के बाहर बोडो कचारी वेलफेयर काउंसिल की स्थापना की जाएगी. 125वें संविधान संशोधन द्वारा BTC की वित्तीय व प्रशासनिक शक्तियों में सुधार किया जाएगा. BTAD में एक अलग डीआईजी पद तैयार किया जाएगा. बोडो माध्यम स्कूलों के लिए अलग शिक्षा निदेशालय गठित किया जाएगा.

बोडो आंदोलन के दौरान जान गंवाने वालों के परिजनों को मुआवजा 50 साल के दौरान हुई हिंसा में आधिकारिक रूप से 2823 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. अनाधिकारिक रूप से आंकड़े कहीं ज्यादा बताए जाते हैं. बोडो आंदोलन में मारे जाने वाले लोगों के परिजनों को सरकार ने 5-5 लाख रुपये मुआवजा देने का फैसला किया है.

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