पहले से जले कंस्ट्रक्शन सेक्टर पर कोरोना का नमक

भारत की जीडीपी के जो नए आंकड़े सामने आए हैं उसमें सबसे ज्यादा मार कंस्ट्रक्शन और रियल एस्टेट क्षेत्र पर ही पड़ी है. कंस्ट्रक्शन क्षेत्र में माइनस 51.4 प्रतिशत की गिरावट आई है और यह सर्वाधिक है.

साल 2020 के पहले छह महीनों में कई मोर्चों पर भारतीय रियल एस्टेट में भारी गिरावट देखी गई. रिहायशी घरों की बिक्री से लेकर, नए प्रोजेक्ट के लॉन्च, ऑफिस स्पेस की जरूरतों में कमी और निर्माणाधीन प्रोजेक्टस का काम पूरा होने तक- रियल एस्टेट क्षेत्र हर तरफ मार खाता रहा है.

2020 के लिए रियल एस्टेट(कंस्ट्रक्शन) सेक्टर की जानी-मानी सलाहकार फर्म नाइट फ्रैंक इंडिया की छमाही रिपोर्ट कहती है कि आठ शीर्ष संपत्ति बाजारों में आवासीय बिक्री साल के शुरुआती छह महीनों में 54 प्रतिशत तक गिर गई. जनवरी और जून के बीच सिर्फ 59,538 घरों की बिक्री हो सकी है. इसी अवधि में साल 2019 में यह संख्या 129,285 थी. इसी तरह, आवासीय निर्माण में 46 प्रतिशत तक गिरावट आई है. पिछले साल शुरुआती छह महीनों में जहां 1,11,175 लॉन्च हुए थे वहीं इस साल यह संख्या 60,489 पर सिमट गई.

हालांकि रियल एस्टेट(कंस्ट्रक्शन) क्षेत्र की बड़ी सलाहकार कंपनियों ने कोरोना वायरस के चलते देशभर में घरों की बिक्री में इस साल 25-35 प्रतिशत गिरावट की आशंका जताई थी. जबकि ऑफिस प्रॉपर्टी में 13 से 30 फीसदी की गिरावट आने की बात कही गई थी. लेकिन अब तक की गिरावट के आंकड़े उम्मीद से कहीं ज्यादा हैं और यह इस क्षेत्र के लिए चिंता बढ़ाने वाले हैं.

लटक सकते हैं अधूरे प्रोजेक्ट
सेक्टर के लिए दी गई रिपोर्ट के मुताबिक इस साल घरों की बिक्री और नए घरों के निर्माण दोनों में, 25 से 35 प्रतिशत की गिरावट देखी जा सकती है. हालांकि अनबिके घरों की संख्या के कमोबेश स्थिर रहने या फिर इसमें साल के अंत में एक से 3 फीसदी की गिरावट देखी जा सकती है.

कोरोना के कारण मजदूरों के पलायन और सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के कारण कम से कम तीन महीने तक काम या तो ठप रहा या नहीं के बराबर हुआ. इससे निर्माण की लागत बढ़ी है और इन घरों की कीमतों पर असर हो सकता है. इसके अलावा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में प्रदूषण की चिंताजनक स्थिति के कारण भी कई महीने तक निर्माण कार्य पूरी तरह से बंद थे.

हाउसिंग प्रोजेक्ट की लॉन्च में सुस्ती

कोरोना के कारण जो आर्थिक व्यवस्था चरमराई है उसमें लोगों की बड़ी संख्या में नौकरियां गंवाने या सैलरी कट की रिपोर्ट है. ऐसे में खरीदार घर खरीदने की योजना को टाल सकते हैं क्योंकि वे पैसे को भविष्य की अनिश्चितताओं के लिए बचाकर रखना चाहते हैं.

सबसे ज्यादा प्रभाव सस्ते घरों पर पड़ने की आशंका है क्योंकि सीमित आय वाले लोग फिलहाल रिस्क लेने की स्थिति में नहीं हैं. मोदी सरकार द्वारा 2022 तक सबको अपना घर देने की योजना की घोषणा के बाद 2014 और 2015 में सस्ते घरों के निर्माण में जबरदस्त उछाल आया था और लगता था कि शायद सस्ते घर आगे चलकर गड्ढ़े में फंसे पूरे निर्माण क्षेत्र की गाड़ी खींच ले जाएंगे. पर उस उम्मीद पर भी फिलहाल काले बादल मंडरा रहे हैं.

इसी तरह भारत में ऑफिस सेक्टर पर भी असर दिख सकता है क्योंकि वर्क फ्रॉम के कारण लोगों के नए ऑफिस स्पेस लेने की संभावना कम हुई है. वर्क फ्रॉम होम का कल्चर विकसित होने के कारण प्रोफेशनल्स अब अपने लिए ऑफिस स्पेस का आइडिया छोड़ सकते हैं या फिर मीटिंग्स के लिए ऑफिस शेयर कर सकते हैं. हालांकि वर्क फ्रॉम होम के कारण लोगों को घरों में दफ्तर के लिए जगह की जरूरत होगी और बड़े घरों की बिक्री में उछाल आ सकता है.

2019 में 7 शीर्ष शहरों में आवासीय बिक्री 2.61 लाख युनिट की रही जिसके इस साल घटकर 1.70 लाख से 1.96 लाख के बीच रहने की संभावना जताई गई है. इसी तरह नए घरों की लांचिंग भी पिछले साल के 2.37 लाख से घटकर 1.66 या 1.78 लाख तक रह सकती है.

जाने माने प्रॉपर्टी कंसल्टेंट फर्म एनरॉक के मुताबिक भारत के शीर्ष सात शहरों में फिलहाल 15.62 करोड़ निर्माणाधीन घर हैं जिनमें से 4.66 करोड़ घर 2020 में खरीदारों को डिलीवर किए जाने थे.

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