प्यार और पब्लिसिटी में सब जायज है

दीपिका पादुकोण फिल्म पब्लिसिटी के अंधे कुएं में ‘छपाक’ से कूद तो पड़ी हैं लेकिन इसका पता हफ्तेभर में चल सकेगा कि कुएं में पानी था या सूखा था. पानी रहा तो हो सकता है कि आने वाली कुछ और फिल्मों के पब्लिसिटी में ऐसे हथकंडे अपनाए जाएं, और कुआं सूखा निकला तो…

कहते हैं न बदनाम हुए तो क्या नाम न हुआ? बदनाम होकर भी कई ऐसे बड़े काम हो जाते हैं जो नाम अर्जित करके नहीं होते. और यह बात ग्लैमर जगत के काराबोरी बखूबी समझते हैं. ग्लैमर की दुनिया में गिने-चुने ही कलाकार ऐसे हैं जो वास्तव में समाज के दायित्वों के प्रति सरोकार रखते हैं, शेष के लिए तो बस एक ही फंडा है  जो बॉलीवुड की एक फिल्म के गाने में कई दशक पहले महानायक ने ही पर्दे पर उतार दिया था- आपका तो बस यही एक सपना, राम नाम जपना पराया माल अपना. जवाहर लाल नेहरू युनिवर्सिटी (जेएनयू) में एक खास विचारधारा के विद्यार्थियों, जिन्होंने पहले से ही युनिवर्सिटी को अखाड़ा बना रखा है, के समर्थन में दीपिका पादुकोण का दिल्ली आना पब्लिसिटी स्टंट के अलावा कुछ और नहीं था.   

अपनी फिल्मों को पब्लिसिटी प्रमोशन दिलाने के लिए बॉलीवुड का आज के जमाने का सबसे बड़ा हथकंडा है विवाद खड़ा कर देना. क्योंकि इससे उनका प्रमोशन का बड़ा पैसा बच जाता है. उन्हें सिर्फ कुछ पब्लिसिटी मीडिया घरानों को मैनेज करना होता है बाकि सारे तो बस उनके पीछे-पीछे न्यूज को कवर करते रहते हैं वह भी एकदम मुफ्त. दीपिका पादुकोण इस धंधे को बखूबी समझती हैं क्योंकि उनकी पिछली फिल्मों पदमावत, बाजीराव मस्तानी, रामलीला, तमाशा और हॉलीवुड की फिल्म XXX रिटर्न ऑफ जेंडर केज ने विवादों के बूते करोड़ो के वारे-न्यारे किए थे. पदमावत के विवाद की चर्चा कई हफ्तों तक पूरे देश और यहां तक कि विदेशों में भी छिटपुट हुई. विवाद बढ़ता गया फिल्म चलती गई. दीपिका उस फिल्म की तो मात्र हीरोइन थी. जिस फिल्म छपाक के लिए वह इसी हथकंडे का सहारा ले रही हैं उसकी तो वह प्रोड्यूसर भी हैं यानी उनका बहुत पैसा लगा है. अब पैसा लगाया है तो उससे कई गुणा ज्यादा वसूलना भी तो है.

इसके लिए दीपिका ने कई हथकंडे पहले भी अपना रखे थे. छपाक की कहानी दिल्ली की एक एसिड अटैक सर्वाइवर युवती की कहानी है जिसकी भूमिका दीपिका निभा रही हैं. चूंकि यह मुद्दा संवेदनशील है इसलिए दीपिका को तो पहले से ही सहानुभूति मिली हुई थी लेकिन दिल है कि मानता नहीं. फिल्म प्रमोशन के दौरान उन्होंने जबरदस्त अदाकारी दिखाई, खूब आंसू बहाए. पीआर के सहारे उन आंसुओं को खूब भुनाया गया. हर छलकते आंसू के साथ टीवी चैनलों पर उनकी फिल्म का वह सीन या डायलॉग चलता जो लोगों को भावनात्मक रूप से जोड़ रहा था. ऐसा लगता था कि फिल्म कब रिलीज हो जाए. पर लालच है कि थमता नहीं.

दीपिका को फिल्म से पदमावत जैसी वसूली करनी थी. 300 करोड़ की कमाई वाले कल्ब में 2020 की पहली फिल्म बनाना था सो उन्होंने एक नया गेम प्लान किया. अब ईश्वर जाने कि यह प्लान उनका ही है या उनका कोई शुभचिंतक या पीआर एजेंसी उन्हें ऐसा करा रही है पर दीपिका ने जो किया वह दोधारी तलवार पर चलने सरीखा है.      

दिल्ली के जेएनयू में हॉस्टल की फीस बढ़ाने को लेकर कई महीने पहले शुरू हुए विवाद छात्रों की पुलिस के साथ झड़प के बाद सोमवार 6 जनवरी को छात्रों के दो गुटों के बीच आपस में जोरदार मारपीट हुई. दर्जनों के सर फूटे, हड्डियां टूटीं. छात्र संघ अध्यक्ष आईशी घोष समेत कई छात्र घायल हो गए. हमलावरों ने चेहरे ढंक रखे थे सो अंधेरे में निशाना लगाने के काम शुरू हुआ. वामपंथी और दक्षिणपंथी छात्र संगठनों के बीच आरोप-प्रत्यारोप और दोनों पक्षों की ओर से एक के बाद एक व्हॉट्सऐप चैट और विडीयो जारी करके एक दूसरे पर हमला बोला ही जा रहा था कि दीपिका ने इसमें अपने लिए मौका देख लिया. कहानी दिल्ली की एक एसिड हमले की शिकार महिला पर आधारित है. विवाद दिल्ली में हुआ, छात्रसंघ की अध्यक्ष महिला है और माथे पर पट्टी बांधे, हाथ में प्लास्टर टीवी-टीवी इंटरव्यू दे रही है. प्रोड्यूसर दीपिका के लिए तो जैसे थाली में परोसकर प्रमोशन का मौका मिल गया था. एक कुशल व्यवसायी की तरह वह इसे कैसे जाने देतीं भला. सो वह मंगलवार को काले कपड़ों में जेएनयू कैंपस आईं. आईशी घोष को गले लगाकर उनके साथ संवेदना जताई. कन्हैया कुमार आजादी के और प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ नारे लगाते रहे और दीपिका वहां 10 मिनट रूककर अपना मौन समर्थन देती रहीं.

इसके बाद तो वही हुआ जिसकी आस में दीपिका आई थीं. सबकुछ उनके दिमाग में चल रही स्क्रिप्ट के हिसाब से हो रहा था. दक्षिणपंथी संगठनों से तीखी प्रतिक्रिया आने लगी. और यह प्रतिक्रिया तब और तीखी हो गई जब पाकिस्तानी सेना के जनरल गफूर ने ट्वीट करके दीपिका की हौसलाआफजाई की और उनकी तारीफों के पुल बांधे. दक्षिणपंथी संगठनों ने एक सवाल पूछा कि आखिर दीपिका का वहां आने का क्या मकसद था? वह किसके साथ खड़ी हैं और उनके कदम को पाकिस्तानी सेना की सराहना मिल रही है तो इसे क्या समझा जाए?

बायकॉट छपाक और सपोर्ट छपाक का कैंपेन ट्रेंड चलने लगा. यानी दीपिका को उम्मीद से दुगना मिल रहा था. पर उनकी प्रमोशन स्क्रिप्ट का एक और सीन बाकी था. इसी बीच खबर उड़ाई गई कि एसिड हमलावर जो कि एक मुसलमान युवक था उसकी जगह फिल्म में एक हिंदू युवक को एसिड फेंकता दिखाया गया है. अब विवाद में एक और तड़का लगा. मामला अब हिंदू-मुसलमान वाला भी हो गया. इसी बीच स्क्रिप्ट का एक और सीन खुला. कहा गया कि फिल्म में हमलावर राजेश शर्मा है. दीपिका ब्राह्मणों की छवि धूमिल कर रही हैं. अब तो छिटपुट साधु-संत भी कूद पड़े. दीपिका का प्रमोशन स्क्रिप्ट तो उम्मीद से अधिक सफल हो गया है.

पर यहां तक तो मामला प्रमोशन स्टंट का था जिसकी सफलता के दीपिका ने निःसंदेह पुराने सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं. पर असली कसौटी तो बॉक्स ऑफिस की होगी जिसपर झंडा गाड़ने के लिए ये सारी कवायद हुई है. फिल्म 10 तारीख को रिलीज हो रही है. उसी दिन अजय देवगन की भी एक फिल्म तान्हाजी रिलीज हो रही है जो एक मराठा क्षत्रप की कहानी है. तान्हाजी भी बड़े बजट की और बड़े स्टार वाली फिल्म है. दीपिका ने तान्हाजी को पटखनी देने के लिए यहां तक की सारी कहानी तो तैयार की है लेकिन इस सारे खेल में उन्हें सचमुच कुछ मिला या सब गंवा दिया इसका पता तो एक हफ्ते में लग जाएगा जब बॉक्स ऑफिस क्लेक्शन के रिकॉर्ड आएंगे. दीपिका पादुकोण दोधारी तलवार पर चली हैं. हो सकता है कि उनका स्टंट उन्हें फायदा भी दे जाए लेकिन दीपिका ने यह तो दिखा ही दिया है कि प्यार और पब्लिसिटी में सब जायज है.      

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