यह नए मिजाज का भारत है…

यह नए मिजाज का भारत है, इंटीग्रेटेड बैटल ग्रुप के साथ भारतीय सेना अब पहले की तरह कुछ दिनों में नहीं बस कुछ घंटों में दुश्मन की सरहदों में घुसकर आक्रामक और रक्षात्मक दोनों तरह के युद्ध में चौका सकती है.

भारत-पाकिस्तान की 1965 की लड़ाई में कृष्णस्वामी सुंदरजी(सुंदरजी के नाम से लोकप्रिय) इन्फेंट्री(पैदल सेना) की एक बटालियन के कमांडिंग अफसर थे. उस लड़ाई में उन्होंने अपनी बटालियन की मुश्किलों को बहुत नजदीक से समझा था. दूरदर्शी सेना अधिकारी यह समझते थे कि वायुसेना युद्ध की स्थिति भले ही बदल देती है लेकिन उस बदली हुई स्थिति को अपने देश के पक्ष में बनाए रखने के लिए पैदल सेना की ही भूमिका होती है. वायुसेना के कुल खेल दो से चार दिनों का होता है जबकि इन्फेंट्री को महीनों और कई बार वर्षों तक उन्हीं मुश्किलों में डटे रहना पड़ता है. इसलिए सुंदरजी ने इन्फेंट्री को नए दौर की चुनौतियों से लड़ने में सक्षम इन्फेंट्री बनाने का प्रस्ताव दिया. वह भाग्यशाली रहे कि तत्कालीन सेना प्रमुख और राजनीतिक वर्ग ने उनके प्रस्तावों को गंभीरता से लिया और वह सेना के स्वरूप को बदलने में सफल हुए.

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भारत की सेना को तब एक मैकेनाइज्ड इंफेंट्री रेजीमेंट मिला जिसमें सेना रूसी बीएमपी-1 बख्तरबंद से लैस किया गया. इस रेजीमेंट की श्रीलंका, पंजाब और जम्मू-कश्मीर में तैनाती हुई और परिणाम इतने अच्छे रहे कि प्रायोगिक तौर पर शुरू मैकेनाइज्ड इन्फेंट्री रेजीमेंट की 25 बटालियनें बनाई गईं. उसके बाद 2014 तक भारतीय सेना को आज के दौर की चुनौतियों के योग्य सेना बनाने की कोई खास कोशिशें ही नहीं हुई. 2014 में अमेरिकी कोल्ड स्टार्ट की तर्ज पर भारत के पास भी एक विशेष बल की जरूरतें उभरने लगीं. यह चर्चा करगिल रिपोर्ट के कुछ हिस्सों के बाहर आ जाने के बाद और तेज हो गई.
अफगानिस्तान की लड़ाई के दौरान छापामार युद्ध से परेशान अमेरिका ने सैन्य रणनीति का कोल्ड स्टार्ट शब्द दिया जिसमें हर संघर्ष को एक युद्ध की बराबर की गंभीरता के साथ लिया जाता है और सारी तैयारियां युद्ध के स्तर की कर ली जाती हैं, भले ही उनका इस्तेमाल हो या न हो. आम बोलचाल की भाषा में कहें तो अमेरिका ने दुश्मन से मुकाबले के लिए अपनी जल, थल और वायुसेना तीनों का एक प्रोटोटाइप तैयार किया जो किसी भी क्षेत्र से दुश्मन के प्रहार को बहुत सीमित समय के भीतर करारा जवाब दे सके. जब तक अमेरिका अपनी पूरी सैन्य तैयारी के साथ नहीं पहुंचता तब तक इसी कोल्ड स्टार्ट टीम को युद्धभूमि में अमेरिका का झंड़ा मजबूती से थामे हुए आक्रामक लड़ाई लड़नी होती है. यह रक्षात्मक नहीं आक्रामक टीम होती है जो आगे बढ़कर हमले करती जाती है और दुश्मन को चौंका देती है.

भारत में कोल्ड स्टार्ट की चर्चा तो हुई लेकिन बात बहुत आगे नहीं बढ़ पाई. तभी जनरल विपिन रावत ने भारतीय सेना की कमान संभाली और इस सैन्य तैयारी की बात आगे चल पड़ी. जनरल रावत ने पैदल सेना, टैंक, तोपखाने और मशीनीकृत पैदल सेना से लैस, एक इंडिग्रेटेड बैटल ग्रुप यानी आईबीजी बनाने की प्रक्रिया तेज कर दी. आईबीजी के बारे में अब तक जानकारियां मिली हैं उसके अनुसार उसकी कमांड एक मेजर जनरल के हाथों में सौंपी जाएगी और यह सेना के 14 कोर-आकार की संरचना के तहत सीधे संचालित होगी. भारत की आईबीजी की तुलना अमेरिका मनूवर युनिट, और चीन की पीएलके के ज्वाइंट आर्म्ड ब्रिगेड जैसी ही है, जिसे चीन 2013 से शुरू अपने सैन्य पुनर्गठन अभियान के तहत तैयार कर रहा है.

आईबीजी की जरूरत क्यों है?
आईबीजी अब केवल वैचारिक स्तर पर नहीं है बल्कि इसकी कुछ ब्रिगेड पूरी तरह से तैयार है. आईबीजी के प्रस्ताव को जल्द ही सरकार के पास मंजूरी के लिए भेजा जाएगा ताकि यह ग्रुप पैदल सेना की मूल ‘ऑल-आर्म्स’ युनिट की जगह ले सके. फिलहाल युद्ध की स्थिति में एक पूरी डिवीजन को आक्रमण के लिए मोर्चे पर भेजा जाता है. इसे बेहतर समझने के लिए पहले भारतीय सेना के मौजूदा ढांचे को समझिए. सेना की फॉर्मेशन में सबसे ऊपर कमांड होती है. कमांड के नीचे कोर और कोर के नीचे डिवीजन होता है. डिवीजन के बाद ब्रिगेड और फिर बटालियन. पैदल सेना के हर डिविजन में करीब 18,000 सैनिकों के साथ 80 टैंकों का एक बख्तरबंद ब्रिगेड और 500 तोपों के साथ एक आर्टिलरी (तोपखाना) ब्रिगेड, सिग्नल और इंजीनियरिंग रेजिमेंट भी शामिल होता है जो स्वतंत्र रूप से युद्धक्षेत्र में एक जमीनी युद्ध लड़ने में सक्षम है. एक डिविजन की तैनाती बहुत श्रमसाध्य है. इसके अलावा इसकी गति बहुत धीमी. डिविजन को युद्ध क्षेत्र में अपनी युद्ध रणनीति के अनुसार मोर्चा लेने में कई दिन तक लग जाते हैं. यह कई बार एक बड़ी बाधा बनता है क्योंकि आज के दौर के युद्ध 10 दिनों के भीतर समाप्त हो जाते हैं, खासतौर से परमाणु शक्ति संपन्न देशों के बीच युद्ध के तो एक हफ्ते से भी कम समय में अंतरराष्ट्रीय दबावों के कारण बंद हो जाने की संभावना रहती है.

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युद्ध का एक नियम शाश्वत है. जो सबसे पहले और सबसे ज्यादा दुश्मन के इलाके को अपने कब्जे में लेता है उसी की बढ़ रहती है और युद्ध विराम के बाद वही सबसे अधिक फायदे में रहता है. यानी भारत के पास भी एक ऐसा फॉर्मेशन चाहिए जो युद्ध क्षेत्र में कुछ दिनों में नहीं बल्कि कुछ घंटों में मोर्चा ले ले और आक्रामक तथा रक्षात्मक दोनों तरह की लड़ाई में भारत को बढ़त दिलाए. सेना ने डिविजन से छोटे और ब्रिगेड से बड़े एक ऐसे नए फॉर्मेशन की जरूरत समझी जो ज्यादा आधुनिक टैंकों, आर्टिलरी, हेलीकॉप्टर आदि से लैस हो और कुछ घंटों के अंदर ही आक्रामक के साथ-साथ रक्षात्मक लड़ाई दोनों में जुट जाए. आईबीजी का गठन उन्हीं जरूरतें को ध्यान में रखकर हुआ है. इसमें दो टीमें होंगी. पहली टीम युद्धक्षेत्र में आगे बढ़कर दुश्मन के इलाके पर कब्जा करती जाएगी और दूसरी टीम उस क्षेत्र में सेना के सामान्य डिविजन के पहुंचने तक अपनी पकड़ बनाए रखेगी. सेना की सामान्य डिविजन के हवाले उस क्षेत्र को करके वह आगे बढ़ जाएगी. यानी तीन से पांच दिनों की जंग में भी भारत की सेना दुश्मन के गले तक पहुंच सकती है.

सेना के अंदर एक मत है कि सभी 45 इन्फैंट्री डिविजनों को लगभग 140 आईबीजी में बदल दिया जाना चाहिए. इसके लिए मौलिक तैयारियां शुरू हो गई हैं लेकिन बहुत कुछ दो बातों पर निर्भर करेगा. पहला इस साल चंडीमंदिर स्थित सेना के पश्चिमी कमान के दो कोर में होने वाले एक परीक्षण जहां यह समझने के लिए एक फील्ड एक्सरसाइज किया जाएगा कि आईबीजी किस प्रकार काम करेगा. दूसरा रांची स्थित माउंटेंन स्ट्राइक कोर(17 कोर) के रांची स्थित मुख्यालय के ब्रिगेड साइज के तीन आईबीजी की वास्तविक सीमा रेखा (एलएसी) पर पहली बार हो रहे अभ्यास पर. खबर है कि आईबीजी डोकलाम से बहुत करीब अपना पहला युद्ध अभ्यास करने वाला है जहां भारत और चीन के बीच 2017 में 72 दिनों तक सैन्य गतिरोध चला था. संदेश स्पष्ट है. पाकिस्तान के अंदर घुसकर और चौंकाते हुए हमले करके भारतीय सेना इस क्षेत्र को तो आजमा चुकी है, अब बारी चीन के साथ किसी भी संभावित युद्ध की तैयारियों की है. चूंकि यह बैटल ग्रुप अब रक्षा सेवाओं के प्रमुख बन चुके जनरल बिपिन रावत का ड्रीम प्रोजेक्ट है इसलिए वह और उनके जनरल इस अभ्यास को बहुत ध्यान से देखेंगे. इस अभ्यास में कई ऐसी चीजों का परीक्षण होना है जिसके लिए जनरल रावत और उनकी टीम ने महीनों तक काम किया है. सेना के वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि उत्तरी युद्धक्षेत्र में अपनी तरह के इस पहले अभ्यास में चीन के साथ अप्रैल 2005 के उस प्रोटोकॉल के अनुरूप है जिसमें दोनों पक्षों ने एलएसी पर एक डिवीजन (लगभग 15,000 सैनिकों) से ज्यादा बड़े पैमाने के सैन्य अभ्यास से बचने का वचन दिया है.

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सेना अपने इस अभ्यास को लेकर बहुत गोपनीयता बरत रही है और इसलिए अभी इसे नाम भी नहीं दिया गया है. सैन्य रणनीति के जानकार बताते हैं कि इस बैटल ग्रुप के अभ्यास से संभवतः उसकी तीन क्षमताओं को विशे। रूप से परखा जाएगा. पहला, रणनीतिक महत्व वाले राजमार्ग को बंद कर देना, आक्रामक कार्रवाई शुरू करने के लिए एक अग्रिम मोर्चा बनाना, चुम्बी घाटी के लिए खतरा पैदा करने वाले क्षेत्र को कब्जे में लेना या एक जमी हुई नदी को पार करके आक्रमण करके दुश्मन के पोस्ट पर कब्जा करना. सूचना है कि यह अभ्यास 10,000 फीट से अधिक की ऊंचाई पर किया जाएगा. इन तीनों माउंटेन आईबीजी को 17 कोर के पानागढ़ स्थित 59 माउंटेन डिवीजन से छांटकर तैयार किया गया है.

कैसा हो सकता है इस मारक सेना का स्वरूप

सेना ने डिवीजन मुख्यालय को खुद ही खत्म करने का प्रस्ताव दिया है. हिमालय में ‘युद्ध’ में अपनी इस नई सैन्य तैयारियों का परीक्षण के बाद सेना इसके संदर्भ में कुछ औपचारिक सूचनाएं दे सकती है. लेकिन सेना पर निगाह रखने वाले विशेषज्ञों का कयास है कि जनरल रावत ने आईबीजी को एक खास पैटर्न पर गठित करने के पक्ष में नहीं हैं और तैयारियां भी उसी तरह की चल रही हैं.

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जहां 17 कोर चीन की सीमा से लगते पहाड़ी क्षेत्र में युद्धाभ्यास के लिए तैयार हो रही है, वहीं धर्मशाला के पास हिमालय की तलहटी में स्थित योल में स्थित 9 कॉर्प्स का पुनर्गठन किया जा रहा है. चंडीमंदिर स्थित पश्चिमी कमान के अंतर्गत आने वाले एक कोर को तीन आईबीजी में बांट दिया जाएगा. इस आईबीजी को पाकिस्तान से लगती अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर तैनात किया जाएगा.
2,900 किलोमीटर लंबी भारत-पाक सीमा एक समान नहीं है. कश्मीर में एलओसी का इलाका ऊबड़-खाबड़ पहाड़ों का है तो जम्मू में अखनूर और छंब में सीमा रेखा मैदानी इलाके में है. पंजाब के साथ लगने वाली सीमा नदियों के जाल के बीच आड़ी-तिरछी है जबकि राजस्थान और गुजरात के सीमावर्ती इलाके रेगिस्तान और दलदल वाले हैं. पाकिस्तान के साथ पश्चिमी सीमा पर प्रत्येक आईबीजी, उस क्षेत्र विशेष को ध्यान में रखकर होगा और युद्ध की स्थिति में अलग-अलग क्षेत्र को युद्ध के लिए सीमा पार करने हेतु अलग-अलग तरह के संसाधनों की आवश्यकता होगी. रेगिस्तानों में एक अलग व्यवस्था होगी. यहां तक कि आईबीजी को सेक्टर और क्षेत्र विशेष के हिसाब से तैयार करने की योजना है. कोई भी दो आईबीजी एक जैसे नहीं होंगे.
जनरल रावत ने पत्रकारों से बातचीत में कुछ समय पहले इसके संकेत दिए थे. उन्होंने कहा था, “अभी तक हर जगह के लिए एक जैसी व्यवस्था थी लेकिन अब हम सेक्टर और क्षेत्र को ध्यान में रखकर आईबीजी तैयार करने की ओर बढ़ रहे हैं.” आईबीजी का मार्गदर्शक पक्ष क्या होगा इसके उत्तर में जनरल रावत ने एक खास शब्द टीटीटीआर का इस्तेमाल किया था जिसका फुलफॉर्म है’ थ्रेट(खतरा), टेरेन (इलाका), टास्क(जिम्मेदारी) और रिसोर्सेज (संसाधन). किस आईबीजी को कितने टैंक, किस प्रकार की आर्टिलरी या तोपखाना और अन्य सैन्य उपकरणों से लैस किया दिए जाएगा वह सब इस बात से निर्धारित होगा कि उसका इलाका कैसा है और वहां जोखिम का स्तर क्या है. पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के मैदानी इलाकों के लिए जहां पाकिस्तान की तैनाती सबसे मजबूत है, वहां भारतीय आईबीजी टैंकों, भारी और हल्के एंटी-टैंक युनिट्स और डिच-कम-बंड (डीसीबी) से भारी प्रतिरोध की उम्मीद कर सकती है. इसलिए इस इलाके में कार्रवाई के लिए उन्हें एंटी-टैंक हथियारों, सैनिकों को ले जाने के लिए बख्तरबंद वाहनों और टैंक को उड़ाने में सक्षम बंदूकों से लैस भारतीय वायुसेना के नए अधिग्रहीत एएच-64ई अपाचे हेलीकाप्टर से हवाई मदद की आवश्यकता होगी. वहीं राजस्थान के रेगिस्तान में, जहां प्रतिरोध के बहुत जोरदार होने की संभावना नहीं है, वहां दुश्मन के विमानों से खतरा होगा. जाहिर है यहां वायुसेना का सपोर्ट के साथ-साथ एंटी एयरक्राफ्ट गन्स की मुख्य भूमिका होगी.

आईबीजी- एक तीर से कई शिकार
भारत सेना को एक बड़े सुधार की जरूरत है. उसे अधिकारियों के प्रमोशन को बढ़ाना तो है ही साथ ही साथ ऐसे अंगों को खत्म भी करना है जो सेना के लिए बोझ बनते जा रहे हैं. वह आईबीजी की तैयारियों और इसके फायदे गिनाकर उसी के साथ-साथ अन्य सैन्य सुधार की प्रक्रिया को भी आगे बढ़ा सकती है. यानी सेना के लिए एक तीर से कई शिकार करने के काम आ सकती है. चूंकि आईबीजी कोर मुख्यालय के अधीन सीधे संचालित होंगे, यानी वे डिविजन मुख्यालयों से अलग हो जाएंगे. इस तरह लगभग 140 आईबीजी को कमांड करने के लिए लगभग 95 अतिरिक्त मेजर जनरलों की आवश्यकता होगी. इससे निचले रैंक के अधिकारियों की पदोन्नति की संभावना बढ़ जाएगी. वर्तमान में, एक कर्नल को ब्रिगेडियर बनने में लगभग 6-8 वर्षों तक इंतजार करना पड़ता है. सेना ने ब्रिगेडियर रैंक के महत्व को कम करके इसे चयन की जगह स्वाभाविक प्रोन्नति वाला ग्रेड कर देने का प्रस्ताव दिया है क्योंकि ब्रिगेडियर रैंक भारतीय वायु सेना के एयर कमोडोर और नौसेना में कमोडोर के समकक्ष रैंक ही है. इस प्रकार सभी कर्नल स्वतः रूप से ब्रिगेडियर बन जाएंगे, जिससे उन्हें उच्च वेतन प्राप्त होगा और उनके मेजर जनरल बनने की संभावना बढ़ जाएगी. इस तरह ब्रिगेडियरों की संख्या 1,165 से घटकर 936 तक हो जाएगी जबकि मेजर जनरलों की संख्या 301 से बढ़ाकर 396 हो जाएगी. यानी कुल मिलाकर सेना में 134 अधिकारी कम हो जाएंगे.

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भारत सेना ने अपने सभी डिवीजन मुख्यालयों को हटाने का प्रस्ताव सरकार को दे भी दिया है क्योंकि कोर अब सीधे आईबीजी को नियंत्रित करेंगे. इसके साथ ही उसने कई अन्य सुधारों जैसे एनसीसी निदेशालय, सैन्य प्रशिक्षण निदेशालय और उप महानिदेशक सैन्य फार्मों को भी खत्म करने का प्रस्ताव दिया है. कई अन्य निदेशालयों का विलय किया जाएगा. परिप्रेक्ष्य योजना (पर्सपेक्टिव प्लानिंग) और हथियार व उपकरण(वेपन एंड एक्विप्मेंट) के महानिदेशालयों का विलय करके एक महानिदेशक (पीपी एंड ड्ब्ल्यूवी) बनाया जाना है. महानिदेशक सिग्नल और दूरसंचार और महानिदेशक सूचना प्रौद्योगिकी का डीजी-एसटी में विलय किया जाना है.

इस प्रकार से बचे कुछ अधिकारियों को हाइब्रिड वारफेयर के लिए डायरेक्टरेट जनरल ऑफ शेपिंग ऑफ इन्फॉर्मेशन एन्वायरमेंट (डीजीएसआईई) में ले जाया जाएगा. हाइब्रिड युद्ध एक ऐसी सैन्य रणनीति है जो पारंपरिक युद्ध प्रणाली के साथ-साथ अनियमित युद्ध, कानूनी, साइबर युद्ध और कूटनीति का संयोजन करके एक बेहद घातक युद्धकौशल बन जाता है. यह प्रस्तावित विशेष बल, सेना को रक्षात्मक हाइब्रिड युद्ध की चुनौतियों से लड़ने में सक्षम बनाएगा.

2016 में पाकिस्तान के साथ संबंधों में तनातनी के नए स्तर पर पहुंचने के बाद से भारतीय सेना ने अपनी रणनीति में बदलाव किए हैं और 10 दिनों के गहन युद्ध के लिए आवश्यक मिसाइल, टैंक और गोला-बारूद का स्टॉक जमा कर रही है जिसे 10 आई गोला बारूद का नाम दिया जाता है. इसके लिए सरकार ने तीनों रक्षा सेवाओं के प्रमुखों और उप-प्रमुखों को एक नीयत राशि तक की रक्षा खरीद के फैसले स्वयं करने की अनुमति दे दी है. इजरायल से अचूक लेजर गाइडेड बम और अमेरिका से 155 मिमी तोपखाने के लिए अत्याधुनिक गोला—बारूद के ऑर्डर आपातकालीन आधार पर दिए गए और सेना को ये आयुध प्राप्त ही हो गए हैं. प्रमुख युद्ध योजनाकार डायरेक्टर जनरल ऑफ मिलिट्री ऑपरेशंस (डीजीएमओ) जम्मू-कश्मीर से लेकर कच्छ के रण तक के इलाक़ों का अध्ययन कर रहे हैं और उन क्षेत्रओं में आईबीजी की तैनाती की संभावनाओं का पता लगा रहे हैं.

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सेना दिवस की पूर्व संध्या पर जनरल रावत का एक बयान बहुत कुछ कहता है. “आप युद्ध की घोषणा नहीं करते हैं. युद्ध की नौबत आने पर चौंकाने वाली लड़ाई लड़ने वाली सेना हमेशा शत्रु पर भारी पड़ती है.” संदेश साफ है. दिल्ली की हुकूमत अब युद्ध संबंधी फैसले लेने में रक्षा बलों को ज्यादा छूट देती है. युद्ध का स्वरूप कैसा होगा इसका फैसला अब राजनीतिक कम, सामरिक कर्ता-धर्ताओं का ज्यादा होता है. पाकिस्तान के अंदर घुसकर दो बार हुए सर्जिकल स्ट्राइक इसका प्रमाण हैं. जाहिर है, अब रक्षाबल किसी भी तरह की चूक का दायित्व राजनीतिक इच्छाशक्ति में कमी के माथे नहीं थोप सकते. रक्षा सेवाओं को ज्यादा अधिकार दिए गए हैं, उनमें सुधार को सरकार तैयार है. करगिल युद्ध के समय से एक एकीकृत रक्षा कमान की मांग उठ रही थी. प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त को लाल किले से रक्षा सेवाओं के प्रमुख (चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी) बनाने की घोषणा कर दी. यह एक ऐसी घोषणा थी जिसकी मांग रक्षा सेवाओं में तीन दशक से ज्यादा समय से उठ रही थी और कई रक्षा समितियों ने कई बार इसकी अनुशंसा की थी. नरेंद्र मोदी सेना के हाथ बांधने नहीं चाहते. वह उसे वह सब दे रहे हैं जिसकी उसे जरूरत है. बदले में वह भी रक्षाबलों से बहुत कुछ आशा रखते हैं.

देश के पहले चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी जनरल बिपिन रावत इसे बखूबी समझते हैं. “कोई भी युद्ध में नहीं जाना चाहेगा, लेकिन अगर स्थिति हाथ से बाहर निकलने लगे तो हम कुछ सीमित कार्रवाई करने में संकोच नहीं करेंगे.” जनरल रावत द्वारा इस्तेमाल किया गया ‘हाथ से निकलना’ बहुत कुछ कहता है. सीमा पार से ऐसा आतंकी हमला जिसमें बड़े पैमाने पर नुकसान हो, गंभीर उकसावे की कार्रवाई माना जा सकता है और यह सेना के लिए सीमित कार्रवाई को विवश कर सकता है. सीमित कार्रवाई को हम भविष्य में नए स्तर की सर्जिकल स्ट्राइक समझ सकते हैं क्या? संभवतः हां. यह नए मिजाज का भारत है, पाकिस्तान संभलके रहा करे.

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