एनडीए के खेमे में नहीं जलेगा अब दुसाध वोटों का चिराग

वही हुआ जिसके कयास लगाए जा रहे थे. विधानसभा चुनाव से पहले बिहार में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में दरार पड़ गई. राम विलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) जिसकी कमान अब उनके बेटे चिराग पासवान के हाथ में है, को जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) का साथ रास नहीं आ रहा है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से चिराग खुश नहीं है. लिहाजा रविवार 04 अक्टूबर को दिल्ली में हुई पार्टी की संसदीय दल की बैठक के बाद लोजपा ने एनडीए से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी.

लोजपा एनडीए से अलग नहीं होगा. उसे भाजपा से शिकायत नहीं है लेकिन नीतीश कुमार का नेतृत्व भी मंजूर नहीं. इसलिए पार्टी ने घोषणा की कि वह जदयू के खिलाफ सभी सीटों पर प्रत्याशी देगी. लोजपा के जो विधायक जीतकर आएंगे वे नरेंद्र मोदी का हाथ मजबूत करेंगे. चूंकि लोजपा 143 सीटों पर प्रत्याशी उतारने की बात कर रही है तो जाहिर है कुछ सीटों पर उसका भाजपा के साथ दोस्ताना मुकाबला भी हो सकता है.

लेकिन पार्टी जदयू के खिलाफ पूरी मजबूती से लडेगी. माना जाता है कि मुद्दा नीतीश को पसंद करने नहीं करने का नहीं था बल्कि लोजपा तमाम हथकंडे अपनाने के बाद भी एनडीए में अपने लिए उतनी सीटों का जुगाड़ नहीं कर पाई जितनी वह चाहती थी.

चिराग पासवान ने 42 सीटों पर दावेदारी जताई थी. लेकिन भाजपा उनके लिए 20 सीटों से अधिक छोड़ने को तैयार नहीं थी. चूंकि नीतीश ने पहले ही साफ कर दिया था कि लोजपा की जिम्मेदारी भाजपा की है इसलिए लोजपा को सीटें भाजपा को अपने खाते से देनी होंगी. भाजपा नीतीश से कम सीटों पर चुनाव लड़ने को तैयार नहीं है. उसने लोकसभा में घाटा उठाते हुए बराबरी की साझेदारी की थी इसलिए विधानसभा में वह छोटा साझीदार नहीं बनना चाहती. और बात यहीं से बिगड़ गई.

अब दो सवाल हैं कि चिराग ने ऐसी जिद आखिर क्यों पकड़ ली थी और एनडीए से बाहर होकर वे अपने पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने में सफल हो पाएंगे, खासकर तब जब रामविलास गंभीर रूप से बीमार हैं?  पहले बात करते हैं लोजपा के सीटों के दावे के पीछे के तर्कों की.

लोजपा की दलील थी कि 2014 में वह 7 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ी थी तो उसे प्रति लोकसभा सीट के अनुपात से 6 विधानसभा सीटें मिली थी. इस तरह उसने एनडीए के साथ 42 सीटों पर विधानसभा चुनाव लड़ा था. 2019 लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी ने 6 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था और उन्हें एक राज्यसभा सीट मिली थी. इस लिहाज से एलजेपी को इस चुनाव में भी 42 सीटें मिलनी चाहिए. 

भाजपा ने इसके लिए दू टूक मना कर दिया क्योंकि 2015 में उसके साथ जदयू नहीं था. अब जदयू है तो उसे जदयू का ख्याल अधिक रखना है. इसे भांपते हुए 42 सीटें न मिलने की हालत में चिराग पासवान ने भाजपा के सामने नया फॉर्मूला रखा है. एलजेपी को 33 विधानसभा सीटों के साथ बिहार में राज्यपाल द्वारा मनोनीत होने वाले 12 एमएलसी में से दो सीटें चाहिए. इसके अलावा अक्टूबर के अंत में उत्तर प्रदेश में होने वाले राज्यसभा चुनाव में एक राज्य सभा सीट की डिमांड भी रखी थी. दो एमएलएसी देने को भाजपा तैयार थी लेकिन राज्यसभा की सीट के लिए साफ मना कर दिया.

उसके बाद चिराग ने भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को एक और फॉर्मूला भी दिया. इसके तहत अगर उन्हें राज्यसभा की सीट नहीं दी जाती है तो बिहार में एनडीए सरकार बनने पर भाजपा के साथ-साथ लोजपा से चिराग पासवान को उपमुख्यमंत्री बनाया जाए. यानी दो उप-मुख्यमंत्री हों. एक भाजपा का और दूसरे चिराग पासवान.

भाजपा इसके लिए राजी थी लेकिन नीतीश ने इस पर वीटो कर दिया क्योंकि नीतीश भांप गए थे कि चिराग कैबिनेट में रहकर सिर्फ उनके लिए मुश्किलें खड़ी करेंगे. एक जदयू नेता कहते हैं कि तेजस्वी और तेज प्रताप को झेल चुके नीतीश अब कैबिनेट में ज्यादा किचकिच नहीं चाहते. उन्हें समझदार और नेतृत्व में भरोसा जताने वाली कैबिनेट चाहिए.

बहरहाल अब लगता है कि भाजपा जदयू और जीतन राम मांझी की पार्टी हम मिलकर लडेंगे. महागठबंधन से अलग हुए विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के मुकेश सहनी को एनडीए में लिया जा सकता है. भाजपा ने दिल्ली विधानसभा का चुनाव लोजपा के साथ लड़ा, वहीं झारखंड एवं मणिपुर में दोनों दलों में कोई गठबंधन नहीं था. मणिपुर में चुनाव परिणामों के पश्चात् भाजपा और लोजपा ने मिलकर सरकार बनाई थी.

बिहार की कुल आबादी में अनुसूचित जाति तकरीबन 16 फीसदी है. बिहार में 23 जातियां अनुसूचित जातियों की कैटगरी में आती हैं. बिहार में अब कोई दलित नहीं है क्योंकि नीतीश कुमार की सरकार ने अपने शासन काल में अनुसूचित जाति के सभी 23 वर्गों को महादलित की श्रेणी में रख दिया है. बिहार में अनुसूचित जातियों का दूसरा बड़ा समूह दुसाध समुदाय का है, जिसका प्रतिनिधित्व राम विलास पासवान करते हैं.  

दुसाध मतदाताओं की संख्या 5 फीसदी मानी जाती है. पिछले कुछ चुनावों के आंकड़े देखें तो दुसाध समुदाय के करीब 80 फीसदी वोट रामविलास की पार्टी को ही मिले हैं. एलजेपी को 2014 के लोकसभा चुनाव में 6.4 और 2019 में 7.86 फीसदी मत मिले थे जबकि 2015 के चुनाव में 4.8 फीसदी रहा. अब देखना होगा कि नीतीश इसकी भरपाई कैसे करते हैं.

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