जीडीपी, सही तो आप एकदमे नहीं पकड़े हैं…

वित्त वर्ष 2021 में भारत की जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद की बोहनी ही खराब हो गई है. इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) के लिए जीडीपी के आंकड़े जारी हुए तो दिमाग चकरा गया. भारत की जीडीपी ने माइनस 23.9 प्रतिशत की दर से विकास किया है. अब माइनस में कौन सा विकास होता है. मने विकास नहीं बल्कि 23.9 प्रतिशत ह्रास हुआ. जाहिर है कि कोरोना के कारण देश-दुनिया में सारे काम-धंधे बंड करने पड़े थे तो तरक्की कहां से होती.

अगर बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की बात करें तो अमेरिका के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था ने दुनिया में सबसे खराब प्रदर्शन किया है. पिछले 40 साल की यह हमारी सबसे बड़ी गिरावट है. जीडीपी गिरी, किस सेक्टर में कितनी गिरी, किसने थोड़ी लाज बचाई और कौन पूरी तरह लुट-पिट गया इन सबपर बात करेंगे. पर पहले उससे जरूरी बात.

अर्थव्यवस्था का मामला होता है थोड़ा पेचीदा. इसलिए सेक्टर वार बात करने से पहले थोड़ी बात उस जीडीपी की ही कर लें जिसके आंकड़ों ने बाजार और सरकार दोनों की आंखों में आंसू ला दिए हैं. आखिर जीडीपी क्या बला है? इसके लिए इतनी छाती क्यों पीटी जा रही है?  

किसी बच्चे ने पूरे साल कितनी पढ़ाई की और कितनी मटरगश्ती इसका अंदाजा कैसे लगाते हैं- उसकी मार्कशीट देखकर. वैसा ही कुछ मामला अर्थव्यवस्था के साथ जीडीपी के आंकड़े का है. जीडीपी किसी देश की और किसी सेक्टर की आर्थिक गतिविधियों के स्तर को दिखाता है. मतलब अर्थव्यवस्था का मामला ठीक-ठाक चल रहा है या नहीं. वगैरह, वगैरह.  

जीडीपी ही बताती है कि देश किन-किन क्षेत्रों में कैसा काम कर रहा था. अगर सभी अच्छा काम करें तो अर्थव्यवस्था की बल्ले-बल्ले हो जाती है. कुछ अच्छा करें और कुछ उतना अच्छा न करें तो एक दूसरे को सहारा देकर अर्थव्यवस्था की गाड़ी खींच ले जाते हैं. लेकिन अगर सारे फिसड्डी रहें तो? बस अब आप सही पकड़े हैं. यही तो हुआ है इस बार. मामला आउट ऑफ कंट्रोल.

जीडीपी की गणना सांख्यिकी कार्यालय या NSO करता है. एनएसओ देश के आठ प्रमुख क्षेत्रों से आंकड़े के आधार पर जीडीपी का आंकड़ा तैयार करता है. इनमें कृषि वानिकी एवं मत्स्य, रियल एस्टेट और कंस्ट्रक्शन, मैन्युफैक्चरिंग, विद्युत और गैस सप्लाई, खान और खनन,  होटल और पर्यटन,  ट्रेड और कम्युनिकेशन, फाइनेंसिंग और इंश्योरेंस, बिजनेस सर्विसेज और कम्युनिटी के अलावा सोशल व सार्वजनिक सेवाएं शामिल हैं.

देश में एक साल के भीतर सेवाओं या वस्तुओं का जो भी उत्पादन होता है उसकी कीमत जोड़ दी जाती है. वही सकल घरेलू उत्पाद या जीडीपी (GDP) कहलाता है. जीडीपी के आंकड़े हर तीन माह में जारी होते हैं. इसे तिमाही आंकड़े कहते हैं. इस तरह साल में चार बार आंकड़े जारी किए जाते हैं. जो भी सेवा या वस्तु का उत्पादन होता है उसकी गणना चार घटकों- उपभोग पर हुआ खर्च, सरकारी व्यय, निवेश और शुद्ध निर्यात पर आधारित होती है.

जो ताजा आंकड़े आए हैं उसके अनुसार वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में मैन्युफैक्चरिंग या विनिर्माण सेक्टर में सकल मूल्य वर्धन (GVA) माइनस 39.3 फीसदी रहा. कंस्ट्रक्शन सेक्टर में यह माइनस 50.3 फीसदी, बिजली में माइनस 7 फीसदी उद्योग में माइनस 38.1 फीसदी और सर्विस सेक्टर में माइनस 20.6 फीसदी रहा. खनन क्षेत्र में GVA माइनस 23.3 फीसदी, ट्रेड और होटल में माइनस 47 फीसदी, पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में माइनस 10.3 फीसदी और फाइनेंस माइनस 5.3 फीसदी रहा है. सब माइनसे माइनस हो गया? बस कृषि क्षेत्र ऐसा रहा जिसने इज्जत बचा ली. इसमें 3.4 फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई. तो अब आप जीडीपी का मामला समझ गए होंगे.

वित्तमंत्री निर्मली सीतारमण जी ने कहा कि यह गिरावट एक्ट ऑफ गॉड यानी ईश्वर की करतूत या थोड़ा सुंदर शब्दों में कहें तो आकस्मिक आपदा है. मंत्री जी ने कोरोना के माथे सारा ठीकरा फोड़ दिया है. इसमें कोई शक नहीं है कि कोरोना ने हालात को बद से बदतर कर दिया लेकिन ध्यान में रखने वाली बात यह भी है कि पिछले चार साल से भारतीय अर्थव्यवस्था में सुस्ती दिख रही है.

2016-17 में जीडीपी 8.3 फ़ीसदी से बढ़ी थी. इसके बाद 2017-18 में सात फ़ीसदी, 2018-19 में यह 6.1 फ़ीसदी और 2019-20 में गिरकर 4.2 फ़ीसदी पर आ गई. नोटबंदी की मार से भारतीय अर्थव्यवस्था उबर ही नहीं पाई है. इसीलिए विपक्ष इसे ईश्वर की करतूत की जगह सरकार की करतूत बताता है. कांग्रेस कहती है कि प्रधानमंत्री ने भारत की अर्थव्यवस्था को मंदी में पहुंचा दिया.

हालांकि अगर एक तिमाही में अर्थव्यवस्था में विकास दर माइनस में रहे तो उसे मंदी नहीं कहा जाता. आमतौर पर लगातार दो तिमाही में जीडीपी की दर नकारात्मक रहने पर मंदी माना जाता है. अब अगली तिमाही के परिणाम बताएंगे कि हम पूरी तरह लुढ़क गए हैं या बस फिसल रहे हैं. फिसलने वाला सहारा लेकर गिरने से बचा सकता है पर लुढ़कने वाले के पास तो बस….

सरकार से उम्मीद है कि कुछ ठोस चीज पकड़के लुढ़कने से बचा ले. हालांकि अभी तक तो जो भी प्रयास किए वे सारे गड्ढे में ही गए लगते हैं. आगे देखते हैं. आगे की पोस्ट में सरल शब्दों में बताएंगे कौन सा सेक्टर कितना लुटा. और लुटा तो क्यों लुटा. बच सकेगा या कोमा में जाने वाला है. न्यूजऑर्ब 360 के साथ बने रहिए.   

Leave a Reply

Related Posts