तिरंगे की कहानी

भारत के राष्ट्रीय ध्वज ने एक लंबी यात्रा के बाद तीन रंग और अशोक चक्र को शामिल किया है. भारत की शान तिरंगे की कहानी  

किसी भी देश का राष्ट्रीय ध्वज उसके गर्व और शौर्य का प्रतीक होता है. भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज यानी तिरंगे में समान अनुपात में केसरिया, सफेद और हरे रंग की तीन क्षैतिज पट्टियां हैं. ध्‍वज की लंबाई और चौड़ाई का अनुपात 3 अनुपात 2 का है. सफेद पट्टी के मध्‍य में गहरे नीले रंग का चक्र सम्राट अशोक द्वारा बनवाए सारनाथ के सिंह स्‍तंभ से लिया गया है. इस चक्र में 24 तीलियां हैं.

भारत के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे का इतिहास भी काफी रोचक है. अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ संघर्ष में जब तेजी आई तो स्वतंत्रता सेनानियों को एक झंडे की ज़रूरत महसूस हुई.  विवेकानंद की शिष्या सिस्टर निवेदिता ने 1904 में लाल, पीले और हरे रंग की क्षैतिज पट्टियों वाला एक ध्वज बनाया जिसे सिस्टर निवेदिता ध्वज के नाम से जाना जाता है. हरी पट्टी में सफेद रंग के आठ अधखिले कमल के फूल बने थे. पीली पट्टी में हिन्दी में वंदे मातरम् अंकित था जबकि लाल रंग की पट्टी में एक सूर्य और चंद्रमा बना था. इसे बंगाल विभाजन के विरोध में हुए प्रदर्शन के दौरान 7 अगस्‍त 1906 को पारसी बागान चौक (ग्रीन पार्क) कलकत्ता में फहराया गया था.

मैडम भीकाजी कामा और उनके साथ निर्वासित किए गए कुछ क्रांतिकारियों द्वारा 1907 में पेरिस में एक झंडा फहराया गया था जिसमें सबसे ऊपरी की पट्टी पर केवल एक कमल था और सप्‍तऋषि को दर्शाते सात तारे थे. इसे बर्लिन में हुए समाजवादी सम्‍मेलन में भी प्रदर्शित किया गया था.

तृतीय ध्‍वज 1917 में आया जब हमारे राजनीतिक संघर्ष ने एक निश्चित मोड लिया. डॉ. एनी बीसेंट और लोकमान्‍य तिलक ने घरेलू शासन आंदोलन के दौरान इसे फहराया. इस ध्‍वज में 5 लाल और 4 हरी क्षैतिज पट्टियां एक के बाद एक और सप्‍तऋषि के अभिविन्‍यास में इस पर बने सात सितारे थे. बांयी और ऊपरी किनारे पर (खंभे की ओर) यूनियन जैक था. एक कोने में सफेद अर्धचंद्र और सितारा भी था.

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सत्र के दौरान जो 1921 में बेजवाड़ा (अब विजयवाड़ा) में किया गया. आंध्र प्रदेश के एक युवक पिंगली वैंकेया ने एक झंडा बनाया और गांधी जी को दिया. यह दो रंगों का बना था. लाल और हरा रंग जो दो प्रमुख समुदायों अर्थात हिन्‍दू और मुस्लिम का प्रतिनिधित्‍व करता है. गांधी जी ने सुझाव दिया कि भारत के शेष समुदाय का प्रतिनिधित्‍व करने के लिए इसमें एक सफेद पट्टी और राष्‍ट्र की प्रगति का संकेत देने के लिए एक चलता हुआ चरखा होना चाहिए.

पिंगली वेंकैया ने एक तीन रंग का झंडा बनाया. उनकी इस पहल को एस.बी. बोमान जी और उमर सोमानी जी का साथ मिला और इन तीनों ने मिल कर नेशनल फ़्लैग मिशन का गठन किया. राष्ट्रीय ध्वज में रंग को लेकर तरह-तरह के वाद-विवाद चलते रहे. अखिल भारतीय संस्कृत कांग्रेस ने सन् 1924 में ध्वज में केसरिया रंग और बीच में गदा डालने की सलाह इस तर्क के साथ दी कि यह हिंदुओं का प्रतीक है. फिर इसी क्रम में किसी ने गेरुआ रंग डालने का विचार इस तर्क के साथ दिया कि ये हिन्दू, मुसलमान और सिख तीनों धर्मों को व्यक्त करता है.

काफ़ी तर्क वितर्क के बाद भी जब सब एकमत नहीं हो पाए तो सन् 1931 में ‘अखिल भारतीय कांग्रेस’ के ध्वज को मूर्त रूप देने के लिए 7 सदस्यों की एक कमेटी बनाई गई. इसी साल कराची कांग्रेस कमेटी की बैठक में पिंगली वेंकैया द्वारा तैयार झंडे पर सहमति बन गई. इसी ध्वज के तले आज़ादी का आंदोलन चला.

तिरंगे की कहानी, आज़ादी की घोषणा से कुछ दिन पहले फिर कांग्रेस के सामने ये प्रश्न आ खड़ा हुआ कि अब राष्ट्रीय ध्वज को क्या रूप दिया जाए. इसके लिए फिर से 22 जुलाई 1947 को डॉ. राजेंद्र प्रसाद के नेतृत्व में एक कमेटी बनाई गई और तीन सप्ताह बाद 14 अगस्त को इस कमेटी ने ‘अखिल भारतीय कांग्रेस’ के ध्वज को ही राष्ट्रीय ध्वज के रूप में घोषित करने की सिफ़ारिश की. बस इसमें चरखे की जगह पर गहरे नीले रंग के अशोक चक्र को स्वीकार किया गया. 15 अगस्त, 1947 को तिरंगा हमारी आज़ादी और हमारे देश की आज़ादी का प्रतीक बन गया.

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